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किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से...

ऑनलाइन दुनिया के कारण किताबों से दूरी बढ़ती जा रही है। पंजाब की कई लाइब्रेरियों में पुस्तकें धूल फांक रही हैं। हालांकि कुछ जगह पुस्तकालयों का क्रेज बरकरार है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 23 Apr 2017 10:01 AM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 09:04 PM (IST)
किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से...
किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से...

जेएनएन, जालंधर। मशहूर शायर गुलजार ने जब किताबों को लेकर अपना दर्द बयां किया तो उनके लफ्जों में यह चिंता साफ थी कि आने वाली पीढ़ी किताबों से कटती जा रही है। ऑनलाइन दुनिया के कारण किताबों से दूरी बढ़ती जा रही है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पढ़ने-लिखने की अच्छी परंपरा वाले सूबे पंजाब के अधिकतर पुस्तकालयों में किताबों की संख्या तो लाखों में है, लेकिन पढ़ने वाले नहीं हैं। पंजाब के कई पुस्तकालयों में तो यह अनमोल खजाना धूल फांक रहा है। हालांकि, इस सब के बीच शहरों में किताबें पढ़ने की रुचि बढ़ रही है या पहले जैसी कायम है।

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शाही शहर पटियाला में स्थापित राज्य की इकलौती मुसाफिर मेमोरियल सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी में एतिहासिक ग्रंथों के अमूल्य खजाने के अलावा 1.50 लाख से अधिक बहुमूल्य किताबों का खजाना उपलब्ध है। इस लाइब्रेरी में हस्तलिखित ग्रंथों की भी विशाल रेंज संग्रहित है। यह लाइब्रेरी राज्य की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है।

सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी का शिलान्यास पेप्सू राज्य के मुख्यमंत्री वृष भान ने एक फरवरी 1955 को किया। इसका उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल सीपीएन सिंह ने 23 जुलाई 1978 को किया। यह लाइब्रेरी 23 बीघा व दो विस्वे में शहर की माल रोड पर स्थित है। इस लाइब्रेरी में राज्य के 14 जिलों की लाइब्रेरी अधीन है। इस लाइब्रेरी में नाभा, संगरूर, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, रोपड़, जालंधर, अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर, मानसा व कपूरथला की लाइब्रेरी आती हैं। इस लाइब्रेरी में राज्य सरकार से केवल सेलरी व अन्य जरूरी खर्च का ही फंड आता है, जबकि कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी से किताबों को भेजा जाता है।

अमृतसर के रानी का बाग स्थित कामरेड सोहन सिंह जोश सरकारी पुस्तकालय में 48,200 पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह सेवादार के हवाले है। इस पुस्तकालय में बाल विभाग, धार्मिक विभाग के साथ-साथ हिंदी, पंजाबी, इंग्लिश, उर्दू के और कुछ अन्य भाषाओं की पुस्तकें हैं। महान शख्सियतों की जीवनी को दर्शाने वाली पुस्तकों का अकूत भंडार है। बरसों हो गए हैं, उन्हें अपने पाठक नहीं मिले। पुस्तकालय के 1500 सदस्य हैं, जिसमें से महज 100 ही सक्रिय हैं। यह सदस्य भी कभी कभार पुस्तकें लेने के बाद हफ्ता या महीने के बाद ही फिर पुस्तकालय में दस्तक देते हैं।

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लुधियाना में इंटरनेट के प्रचलन ने पुस्तकालय का रुझान कम कर दिया है। आज बड़ी संख्या में युवा किताबों की बजाय नेट के माध्यम से पढ़ाई करने लगे हैं। बड़ी एकेडमी में से एक पंजाबी साहित्य अकादमी की ओर से पंजाबी भवन में बनी रेफ्रेंस और रिसर्च लाइब्रेरी का दौरा किया गया, तो पता चला कि समय-समय पर किताबें तो लाइब्रेरी में आ रही हैं, पर पढ़ने वाले युवाओं की संख्या में काफी कमी आई है। वर्ष 1965 में बनी रेफ्रेंस और रिसर्च लाइब्रेरी में वर्तमान में करीब 57,000 किताबें हैं, जिसमें हिंदी की एक हजार, इंग्लिश की दो हजार, उर्दू की चार सौ तथा अन्य किताबें पंजाबी से संबंधित हैं। लेकिन इन्हें पढ़ने वालों की कमी है।

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मशहूर शायर गुलजार ने एेसे किया था दर्द बयां

बड़ी हसरत से तकती हैं

महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं

जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं

अब अक्सर गुजर जाती हैं कंप्यूटर के पर्दो पर,

बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें

उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है,

जो कदरें वो सुनाती थीं कि जिनके ‘सेल’ कभी मरते नहीं थे

वो कदरें अब नजर आतीं नहीं घर में,

जो रिश्ते वो सुनाती थीं वह सारे उधड़े-उधड़े हैं,

कोई सफा पलटता हूं तो इक सिसकी निकलती है

कई लफ्जों के मानी गिर पड़े हैं

बिना पत्ताें के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फाज,

जिन पर अब कोई मानी नहीं उगते

जबां पर जो जायका आता था सफा पलटने का

अब अंगुली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है

किताबों से जो जाती राब्ता था, वो कट गया है

कभी सीने पर रखकर लेट जाते थे कभी गोदी में लेते थे,

कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर नीम सजदे में पढ़ा करते थे,

छूते थे जबीं से वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी

मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक्के वो नहीं होंगे

किताबें मांगने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे

उनका क्या होगा वो शायद अब नही होंगे।

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