Move to Jagran APP

गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में बिना वीजा जाने की जगी आस

पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के बिना वीजा दर्शनों की बरसों पुरानी मांग पूरी होने की उम्मीद जगी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 03:55 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 03:55 PM (IST)

गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में बिना वीजा जाने की जगी आस
गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में बिना वीजा जाने की जगी आस

जागरण टीम, जालंधर : पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के बिना वीजा दर्शनों की बरसों पुरानी मांग पूरी होने की उम्मीद जगी है। पाकिस्तान ने कॉरिडोर खोलने का प्रस्ताव दिया है। अब फैसला भारत सरकार के हाथ में हैं। यदि ऐसा हुआ तो विभाजन के बाद पहली बार होगा, जब लोग बिना किसी रोक-टोक के इस ऐतिहासिक गुरु घर के दर्शन कर सकेंगे।

loksabha election banner

कस्बा बाबा बकाला के गाव पक्खोके टैली साहिब से सरहद के उस पार करीब चार किलोमीटर दूर स्थित श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन के लिए लोगों को अटारी से होकर 150 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर करना पड़ता है। विभाजन से पहले यह सब बहुत आसान था। डेरा-बाबा नानक के गाववासी साहिब सुबह चार बजे उठकर गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने जाते थे तब वहा पर माहौल एकदम शात था। डेरा बाबा नानक के कुछ बुजर्ग बताते हैं कि विभाजन के बाद सरहद पर बाड़ लगा दी गई। अब बीएसएफ दूरबीन से संगत को गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करवाती है।

हर साल करीब 60 हजार संगत पहुंचकर दूरबीन से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के दर्शन करती है। सरहद के पास स्थित गाव के बुजुर्गो का कहना है कि अगर सरकार श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा कॉरिडोर खेल दे तो उनकी जिंदगी के आखिरी पलों में बड़ी तमन्ना पूरी हो जाएगी।

कस्बा बाबा-बकाला से ठीक 2 किलोमीटर दूर सरहद पर पास बैठे बुजुर्ग एक सुनहरी सपने की उम्मीद में कहते हैं,'दो देशों के बीच डाली गई लकीर को हटा दिया जाए, तो आपसी मर-मुटाव दूर हो जाएगा। दोनों देशों के लोगों में प्यार बढ़ेगा। विभाजन से पहले श्री करतारपुर साहिब भारत का ही हिस्सा था। विभाजन के बाद से लोगों का प्यारा गुरुघर उनके बिछड़ गया। किरत करो, नाम जपो, वंड छको

गुरुद्वारा करतारपुर साहिब सिख धर्म का सबसे पहला धार्मिक स्थान है। यहा गुरु साहिब ने खुद एक मोहड़ी गाड़ कर करतापुर साहिब गुरुद्वारा की नींव 13 माघ संवत 1522 को रखी थी। यही वह स्थान है, जहा गुरु साहिब ने साधुओं वाले वस्त्र उतार कर साधारण व्यक्तियों वाले वस्त्र धारण कर खेती की, गृहस्थ जीवन निभाया और जात-पात के बंधन से मुक्त करने के लिए संगत को उपदेश दिया। कहते हैं कि इसी स्थान पर सबसे पहले लंगर व पंगत की परंपरा शुरू की गई। इस जगह से गुरु साहिब ने 'किरत करो, नाम जपो, वंड छको' का संदेश दिया।

लोगों की यादें आज भी हैं ताजा : पहले रोज सेवा करने जाता था, अब दूरबीन से करता हूं दर्शन

वीरातेजा निवासी 80 वर्षीय हरजिंदर सिंह कहते हैं, 'विभाजन से पहले हम काफी छोटे हुआ करते थे, तब हर रोज पिता के साथ श्री करतारपुर साहिब में स्थित गुरुद्वारा में सेवा करने के लिए जाते थे। उन्हें सेवा करने में पूरी लगन थी, जिस कारण उन्हें वहा के पाठी व जत्थेदार खासा प्यार करते। देशों का विभाजन हो गया। मन को बहुत ठेस पहुंची। अब दूरबीन के जरिए हर रोज सरहद से गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करता हूं।' हरजिंदर सिंह आगे कहते हैं, 'पाकिस्तान ने श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर बिना वीजा संगत को दर्शन करने का प्रस्ताव दिया है। तब से जिंदगी के आखिरी पलों में बाबा जी के दर्शन करने की हसरत जागी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान की यह पहल कुबूल करनी चाहिए।' बेबे के साथ जाती थी, अब फिर उम्मीद जगी है

गाव शिकार माछीया की दलजीत कौर कहती हैं, 'हमारे गांव से गुरुद्वारा साहिब आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। विभाजन से पहले जब मैं 7 वर्ष की थी तो सुबह चार बजे उठकर अपनी बेबे के साथ गुरुद्वारा साहिब जाती थी। संगत के साथ सेवा करती थी। विभाजन के बाद कई सरकारों ने करतारपुर लांघा खोलने का भरोसा दिया, लेकिन कोई सरकार इसे खोलने में कामयाब साबित नहीं हुई। इस बार पाक सरकार ने करतारपुर साहिब मार्ग खोलने का भरोसा दिया, इससे बरसों पुरानी उम्मीद फिर जगी है।'

वडाला ने 18 वर्ष तक बॉर्डर पर जाकर की थी 208 बार अरदास

जालंधर : बात वर्ष 2001 की है। विभाजन के बाद गुरु घरों के बिछुड़ने का दर्द रह-रह कर संगत को सताता रहता था। शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता जत्थेदार कुलदीप सिंह वडाला ने न सिर्फ इसे महसूस किया, बल्कि इसके लिए 'गुरुद्वारा करतारपुर साहिब रावी दर्शन अभिलाषी' संस्था का गठन करके मुहिम भी शुरू की। इस मुहिम के तहत उन्होंने लगातार 18 वर्षो तक हर माह अमावस्या पर डेरा बाबा नानक जाकर इसके लिए अरदास की। उनके निधन के बाद अब इस पंरपरा को उनके बेटे विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला निभा रहे हैं। सात सितंबर को पाकिस्तान की ओर से रास्ता खोलने की पेशकश के बाद न सिर्फ वडाला परिवार, बल्कि समूची सिख संगत को आशा की किरण दिखी है। विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला कहते हैं, 'मेरे परिवार के लिए इससे बढ़कर और कोई खुशी की बात हो ही नहीं सकती। पिता का सपना साकार करना हर संतान की जिम्मेदारी होती है। कॉरिडोर को न सिर्फ खोलने, बल्कि इसे स्थायी रूप से खुला रखने को लेकर भी अब अरदास की जाती है।' उनका कहना है कि पिता कुलदीप सिंह वडाला ने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर मदद की गुहार लगाई थी। पाकिस्तान सरकार से भी इसके लिए पहल करने को प्रेरित किया। उम्र के हिसाब से कुलदीप सिंह वडाला को कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन वे डटे रहे।' पाकिस्तान की पेशकश ने खोला सद्भाव का रास्ता

उन्होंने बताया कि गुरु घर के लिए मार्ग खुलवाना कुलदीप सिंह वडाला के जीवन का लक्ष्य बन चुका था। यही कारण रहा कि खुद की परवाह किए बगैर उन्होंने पाकिस्तान जाकर गुरु घर को जाती सड़क को पक्का करवाने से लेकर गुरु घर के साथ लगती 10 एकड़ जमीन को भी कब्जा मुक्त करवाया। ऐसा करके जब वह वापस लौटे, तो उनकी खुशी का ठिकाना न था। उन्होंने बताया कि पिता के निधन के बाद यह कमान उन्होंने संभाली। इसके तहत अभी तक पाच बार वहा जाकर अरदास कर चुके हैं। पिता के निधन के बाद मिशन को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात चल रही थी। उन्होंने श्री गुरु नानक देव महाराज के 550वें शताब्दी समारोह के मौके पर मार्ग खुलवाने का विश्वास दिलाया था। पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार पर विश्वास जताते हुए गुरप्रताप कहते हैं कि इस पेशकश के बाद दोनों देशो में आपसी सद्भाव का नया मार्ग भी खुल गया है।

-1522: श्री गुरु नानक देव जी ने गुरुद्वारे की स्थापना की और एक किसान की तरह जिंदगी बिताने का निर्णय किया।

-1539: श्री गुरु नानक देव जी ने देह का त्याग कर गुरु अंगद देव को उत्तराधिकारी बनाया।

-1947: विभाजन के दौरान गुरदासपुर जिला भी दो हिस्सों में बंट गया और गरुद्वारा करतारपुर साहिब पाकिस्तान चला गया।

-1971: पाकिस्तान के नारोवाल और भारत के गुरदासपुर को जोड़ने वाला रावी नदी पर बना पुल भारत-पाक युद्ध में तबाह हो गया।

-1995: पाकिस्तान सरकार ने गुरुद्वारे की मरम्मत करवाई।

-2000: पाकिस्तान ने करतारपुर के वीजा फ्री यात्रा की घोषणा की।

-2001: पाकिस्तान ने विभाजन के बाद पहली बार भारतीय जत्थे को करतारपुर साहिब जाने की अनुमति दी।

-2002: अप्रैल में जत्थेदार कुलदीप सिंह वडाला और करतारपुर रावी दर्शन अभिलाषी संस्था ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिख कर पाकिस्तान के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की मांग की।

-2004: पाकिस्तान सरकार ने गुरुद्वारे का पूरी तरह कायाकल्प किया।

-2006: तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अम¨रदर सिंह ने कहा कि वे इस मुद्दे पर पीएम मनमोहन सिंह से मुलाकात करेंगे।

-2008: तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने डेरा बाबा नानक का दौरा किया और फिजिबिलिटी रिपोर्ट बनाने की बात कही।

-2008: एसजीपीसी ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को पत्र लिख कॉरिडोर के निर्माण की माग की।

-2018: 17 अगस्त को सिद्धू पाकिस्तान के नए पीएम इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और पाक सेना प्रमुख को जफ्फी डाली। विवाद पर सिद्धू ने बताया कि पाक सेना प्रमुख ने उन्हें करतारपुर मार्ग खोलने का भरोसा दिया है।

-2018: 22 अगस्त को कैप्टन अम¨रदर सिंह ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिख यह मामला पाकिस्तान से उठाने को कहा।

-2018: 7 सितंबर को पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कॉरिडोर खोलने का एलान किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.