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छोटा काम-बड़ी मिसाल, एचएमवी जालंधर रद्दी कागजों में भरकर जान, उम्मीदों को दे रहा बड़ी उड़ान

जालंधर का एचएमवी कालेज रद्दी से फाइल कवर व कागज तैयार कर रहा है। इससे 70 प्रतिशत तक स्टेशनरी का खर्च घट गया है। प्रिंसिपल का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए इस माडल को अन्य संस्थानों व बड़े दफ्तरों को भी अपनाना चाहिए।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 24 May 2022 08:11 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 08:11 PM (IST)
छोटा काम-बड़ी मिसाल, एचएमवी जालंधर रद्दी कागजों में भरकर जान, उम्मीदों को दे रहा बड़ी उड़ान
छात्राएं प्रोजेक्ट की मदद से रद्दी रिसाइकिल करते हुए। जागरण

अंकित शर्मा, जालंधर। कई बार छोटे-छोटे प्रयास भी बड़ी मिसाल बन जाते हैं। मेहनत का उद्देश्य यदि बड़ा हो तो परिणाम मायने नहीं रखता। जालंधर के हंसराज महिला महाविद्यालय (एचएमवी) ने भी एक छोटा सा प्रयास किया था, जिसका बड़ा परिणाम अब सामने है।

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कालेज प्रबंधन ने कालेज परिसर में ही रद्दी को रिसाइकिल करने का प्लांट लगाया और अब यहां हर माह 50 किलोग्राम कागज तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही कागज से लिफाफे, कार्ड और फाइल कवर भी तैयार किए जा रहे हैं। इस प्रयास से संस्थान ने अपने यहां इस्तेमाल होने वाले कागज, फाइल कवर व लिफाफों पर होने वाले खर्च में 70 प्रतिशत तक की कटौती कर ली है।

प्रिंसिपल डा. अजय सरीन कहती हैं, बिना पेड़ काटे अगर कागज व बाकी स्टेशनरी की मांग पूरी हो जाए, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। पर्यावरण संरक्षण के लिए इस माडल को अन्य संस्थानों व बड़े दफ्तरों को भी अपनाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि संस्थान में बड़ी मात्रा में रद्दी जमा हो रही थी। कई कमरे व स्टोर पूरी तरह रद्दी से भर गए थे। इनमें कुछ कागज तो ऐसे भी होते हैं जो रद्दी होने के बावजूद किसी को नहीं दिए जा सकते। हमारे लिए रद्दी का भंडारण करना बड़ी समस्या बनता जा रहा था। पहले हम यह रद्दी पेपर रिसाइकिल करने वाली मिल को दिया करते थे।

पहले हमने अपने काम को पेपरलेस बनाने का प्रयास किया, लेकिन इसके बावजूद कई ऐसे काम में हैं, जिनमें कागज का इस्तेमाल अनिवार्य है। फिर हमने सोचा कि क्यों ने खुद ही पेपर को रिसाइकिल किया जाए और इसका इसका इस्तेमाल अपने दैनिक कार्यों के लिए किया जाए। इस पर रिसर्च की तो यह काफी लाभदायक प्रतीत हुआ। 2018 में हमने कालेज में ही पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट लगा लिया। इसमें लगभग छह लाख रुपये की लागत आई। इसके बाद हमने कागज को रिसाइकिल करने का काम शुरू किया। हमें इसके बेहतरीन नतीजे मिले।

डीसी कार्यालय से भी आ रही रद्दी

डीन (स्टूडेंट्स वेलफेयर) डा. अंजना भाटिया के अनुसार विभिन्न संकायों के प्रैक्टिकल की फाइलों का भंडारण हमारे लिए चुनौती बन गया था। प्रिंसिपल डा. अजय सरीन के प्रयास से यह प्लांट लग सका। अब डीसी कार्यालय से भी रद्दी को रिसाइकिल करने के लिए यहां भेजा जा रहा है।

कागज बनाने में केमिकल का इस्तेमाल नहीं

डा. अंजना भाटिया ने बताया कि प्लांट में कागज बनाने में पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसमें केमिकल का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता। मशीन से पहले रद्दी का पेस्ट बनाया जाता है फिर इसे कागज का रूप दिया जाता है। रंग-बिरंगी डाई का प्रयोग करके अलग-अलग रंग के कागज, लिफाफे व कार्ड तैयार किए जा रहे हैं।

बिजली व पानी की भी बचत

डा. अंजना भाटिया के अनुसार कागज बनाने वाली यह मशीन मैनुअल है। इसलिए रिसाइकिल कर कागज बनाने से 95 प्रतिशत तक ऊर्जा की बचत होती है। इतने ही पानी की भी बचत होती है, क्योंकि नया कागज बनाने में पानी और बिजली की अधिक खपत होती है। इस प्लांट को छात्राएं भी चलाती हैं। वह अपने हास्टल या घर में जमा होने वाली रद्दी को यहां रिसाइकिल करती हैं। वे यहां कई तरह के कार्ड व सजावटी वस्तुएं बनाती। कालेज में समय-समय पर इन सजावटी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जाती है, जिससे छात्राओं को आय भी होती है। वह इसका इस्तेमाल अपनी फीस आदि का भुगतान करने में करती हैं।


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