Heritage: कपूरथला के महाराजा हरनाम सिंह से जुड़ा है पंजाब के सबसे पुराने गोलकनाथ मेमोरियल चर्च का इतिहास
गोलकनाथ की पड़पोती हो या फिर परिवार के अन्य सदस्य क्रिश्चियन समुदाय से संबंध रखते हों लेकिन उनके नाम के साथ आज भी खुराना या कौशल लगा है।
जालंधर, [शाम सहगल]। शहर के जेल रोड पर स्थित पंजाब का सबसे पुराने चर्च ‘गोलकनाथ मेमोरियल चर्च’ का संबंध कपूरथला के महाराजा हरनाम सिंह के साथ रहा है। वर्ष 1885 में गोलकनाथ चटर्जी को समर्पित इस चर्च का निर्माण चार्ल्स बैटी न्यूटन ने करवाया था। विशाल क्षेत्र में निर्मित पंजाब के पहले चर्च में राज्य भर से ईसाइयों के साथ-साथ हर धर्म के लोग पहुंचते थे। गोलकनाथ मेमोरियल चर्च के साथ जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मूल रूप से ब्राह्मण रहे गोलकनाथ और कपूरथला के राजा हरनाम सिंह का इस चर्च के साथ भावनात्मक जुड़ाव रहा है। बताया जाता है कि गोलकनाथ ने अंतिम समय तक जनेऊ धारण किए रखा था, ईसाई धर्म का प्रभाव उन पर कभी नहीं हुआ। गोलकनाथ की पड़पोती हो या फिर परिवार के अन्य सदस्य क्रिश्चियन समुदाय से संबंध रखते हों, लेकिन उनके नाम के साथ आज भी खुराना या कौशल लगा है।
गोलकनाथ परिवार की सदस्य नमिता खुराना बताती हैं कि समाज में छुआछूत व जातिवाद के भेदभाव ने गोलकनाथ को क्रिश्चियन बनने पर विवश कर दिया था। एक घटना के मुताबिक गोलकनाथ ने एक छोटी जाति के शख्स को छू लिया था। इसका समाज में न सिर्फ विरोध किया बल्कि गोलकनाथ को खुद को शुद्ध करने के लिए विभिन्न प्रकार की औपचारिकताएं पूरी करने को विवश कर दिया। समाज की इस संकीर्ण मानसिकता से खफा होकर गोलकनाथ कलकत्ता (कोलकाता) से चलकर पंजाब पहुंचे तो यहां पर उन्होंने बाइबल से ज्ञान प्राप्त किया। इससे प्रभावित होकर उन्होंने मिशनरी को अपना लिया।
जालंधर के जेल रोड स्थित गोलकनाथ मेमोरियल चर्च की इतिहास के बारे में बताती हुईं गोलकनाथ परिवार की सदस्य विमल गोलकनाथ।
अंग्रेजी सीखने आए राजा हरनाम सिंह यहीं के होकर रह गए
कपूरथला के राजा हरनाम सिंह ने गोलकनाथ के बारे में सुना तो उनके अंदर अंग्रेजी सीखने और व मिशनरीज के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। इसके लिए वह रोजाना गोलकनाथ के पास जाने लगे। इस बीच उनका संपर्क गोलकनाथ की पुत्री पोली के साथ हुआ। हरनाम सिंह ने पोली से शादी कर ली। इसके बाद इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए स्कूल, कॉलेज व अस्पताल की शुरुआत खुद महाराजा हरनाम सिंह ने ही की थी। अंतिम समय तक उनका इस चर्च के साथ भावनात्मक लगाव रहा।
जंगल में मंगल
गोलकनाथ परिवार की सदस्य दिशा रुबीन दास बताती हैं कि जेल को पार करके पूरा इलाका जंगल के समान था। लेकिन गोलकनाथ मेमोरियल चर्च और यहां पर चलाए जा रहे मिशनरी स्कूल के बाद पूरा क्षेत्र 'मंगल' हो गया। देखते ही देखते इसके आसपास घनी आबादी वाली रिहायशी कालोनियां बस गईं। पंजाब का यह एकमात्र ऐसा चर्च है. जो इतने विशाल रकबे में बने होने के साथ-साथ शहर के बीच में है।
सप्ताह भर चलेगा क्रिसमस का इवेंट
गोलकनाथ चर्च में क्रिसमस का त्योहार सप्ताह भर चलता है। क्लब के पूर्व संचालक जॉर्ज सोनी बताते हैं कि क्रिसमस ईव की शुरुआत 23 दिसंबर को हो जाती है जो एक जनवरी तक निरंतर चलता है। पहले दिन क्रिसमस प्ले डिनर के अलावा 24 दिसंबर को क्रिसमस ट्री सेलिब्रेशन क्रिसमस विद लाइट सर्विस क्रिसमस सर्विस का आयोजन होता है वहीं 25 दिसंबर को क्रिसमस सर्विस का आयोजन होगा। इसी तरह 31 दिसंबर से लेकर एक जनवरी तक निरंतर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिसे लेकर व्यापक स्तर पर तैयारियां की गई हैं।
चार्ल्स बैटी न्यूटन ने करवाया था निर्माण
गोकलनाथ को समर्पित इस चर्च का निर्माण वर्ष 1885 में चार्ल्स बैटी न्यूटन ने करवाया था। इसके सामने सड़क पार करके पास्टर हाउस बना है। इसी तरह गोकलनाथ परिवार के लिए अलग से घर बनाया गया है।
नए जैसा लगता है 125 वर्ष पुराना फर्नीचर
चर्च के अंदर प्रार्थना करने को लगाए गए लकड़ी के डेस्क 125 वर्ष पुराने हैं। आज भी यह नए जैसा ही लगता है। चूने की दीवारें व क्रॉस शेप में बनी इस चर्च की इमारत शहर के लिए धरोहर से कम नहीं है। देश-विदेश से लोग यहां पर आकर फोटोग्राफी करके पलों को यादगार बनाते हैं।
जालंधरः जेल रोड स्थित गोलकनाथ मेमोरियल चर्च का फर्नीचर भी करीब 125 वर्ष पुराना है पर आज भी नया जैसा लगता है।
‘गोलक द हीरो’ में दर्ज है दास्तां
चर्च का इतिहास पंजाब ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी विख्यात है। चर्च तथा इससे जुड़े हुए तमाम किस्सों का संग्रह ‘गोलक द हीरो’ किताब में दर्ज है। इसमें गोलकनाथ से लेकर राजा हरनाम सिंह के जीवन से जुड़ी कई तस्वीरें शामिल की गई हैं।
नेहा व अश्विनी कौशल भी है मिसाल
गोलकनाथ परिवार की बेटी नेहा व उनके पति अश्विनी कौशल भी बड़ी मिसाल हैं। जिन्होंने इस मिशनरी को अपनाया है। नेहा के पति अश्विनी भी कौशल यानी ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हैं। अश्विनी बताते हैं भले ही आज भी नाम के पीछे जाति कौशल लगा रहे हैं लेकिन अध्यात्मिकता का ज्ञान क्रिश्चियन मिशनरी से ही मिला है।
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