यह है जालंधरः रस्से और टोकरियां बनाने वालों ने बसाई थी बस्ती वाण वट्टां Jalandhar News
सन 1830 तक यह बस्ती बहुत बड़ा रूप ले चुकी थी। यहां के बने हुए रस्से टोकरी आदि की मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई।
जालंधर, जेएनएन। पंजाब में सिखों की बारह मिसलों का प्रभाव था। महाराजा रणजीत सिंह ने जब सभी मिसलों को एक झंडे के नीचे लाने का कार्य किया तो एक मिसल इन्कार कर दिया। यह मिसल खुशहाल सिंह के अधीन थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे बुद्ध सिंह ने जालंधर में सुरक्षा के लिए किला बनवाया परंतु महाराजा रणजीत सिंह के साथ हुए युद्ध में बुद्ध सिंह मारा गया। इसके बाद एक शक्तिशाली सेना का पंजाब में उदय हुआ। महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में सिख राज की स्थापना की।
इसके बाद जो परिश्रमी लोग इधर-उधर भटक रहे थे, वे अपने काम-धंधे में लग गए। पंजाब में रस्से, टोकरियां और इन जैसी अन्य वस्तुएं बनाने वाले जालंधर के बाहरी क्षेत्र में आकर रहने लगे। धीरे-धीरे उन्हें शाही खजाने से धन भी उपलब्ध होने लगा और उनकी वस्तुएं उपयुक्त मूल्यों में सिख सेना ने खरीदनी आरंभ कर दी। इन परिवारों, जिन्हें वाण वट्टों का समाज कहा जाता था, के घरों में सुख-समृद्धि आने लगी। इससे उनका जीवन स्तर स्थिर और खुशहाल हो गया। धीरे-धीरे ये लोग एक बस्ती के रूप में रहने लगे, जिसे बस्ती वाण वट्टां का नाम दिया जाने लगा।
सन 1830 तक यह बस्ती बहुत बड़ा रूप ले चुकी थी। यहां के बने हुए रस्से, टोकरी आदि की मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये दूर-दूर तक जाने लगे। जब सन 1847 में पंजाब अंग्रजों के अधीन आ गया, तब इस बस्ती के लोग बिखरने लगे, क्योंकि वाण वट्ट अधिकतर सिख समुदाय से ही आते थे। यह बस्ती जहां आजकल रेलवे स्टेशन का पुराना गोदाम है, उसके पीछे का क्षेत्र जिसे काजी कोठी और काजी मंडी वाला इलाका कहा जाता है, वहां हुआ करती थी।
सिख सरदारों ने बसाई थी बस्ती नौ
बस्ती नौ सिख सरदारों ने बसाई थी लेकिन इसका क्षेत्र छोटा था। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद यह बस्ती वीरान हो गई। अंग्रेजों ने जब एक और बस्ती बनाने की योजना बनाई तो उन्हें यही स्थान उपयुक्त लगा। सन 1860 में इस बस्ती के एक कोने पर एक फकीर झंडियां लगा कर बैठा करता था और लोग उसे सम्मान स्वरूप झंडियां वाला पीर कहने लगे। उसके निकट कई मुस्लिम परिवारों को लाकर बसाया गया ताकि अन्य बस्तियों के साथ-साथ जालंधर नगर के प्रभावशाली लोगों पर अपना वर्चस्व बना सकें। इस बस्ती को कई सुविधाएं भी दी गईं। अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां कई व्यापारिक केंद्र स्थापित किए ताकि इस क्षेत्र पर नजर रखी जा सके। बस्ती नौ का अर्थ है नई बस्ती।
विभाजन के बाद यहां के अधिकतर निवासी जो मुस्लिम समाज से संबंधित थे, पाकिस्तान चले गए। उनके स्थान पर पाकिस्तान के सियालकोट क्षेत्र से खेल का सामान बनाने में माहिर लोग यहां आकर रहने लगे। इससे यह खेलों के सामान की बहुत बड़ी मंडी बन गई। इसके अतिरिक्त झंडियां वाले पीर के मजार पर मेला भी लगता है। इस बस्ती का आज धार्मिक महत्व इसलिए भी बन गया है कि यहां निजात्म आश्रम और वेदांत आश्रम हैं। इसी के साथ आदर्श नगर जो आरंभिक काल में एक पॉश कालोनी कही जाती थी, वहां कई व्यापारी, जिनके कारखाने इसी बस्ती में हैं, वे रहने लगे।
(प्रस्तुतिः दीपक जालंधी- लेखक शहर के पुराने जानकार हैं)
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