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गोशाला बनी पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला, लोगों को भा रहे गोबर के गमले और हवन सामग्री

जालंधर से 7 किलोमीटर दूर बुलंदपुर रोड पर स्थित गोशाला पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला बनी हुई है। यहां गाय के गोबर से गमले बनाए जा रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 01:02 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 10:40 AM (IST)
गोशाला बनी पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला, लोगों को भा रहे गोबर के गमले और हवन सामग्री
गोशाला बनी पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला, लोगों को भा रहे गोबर के गमले और हवन सामग्री

जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। जालंधर से 7 किलोमीटर दूर बुलंदपुर रोड पर स्थित गोशाला पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला बनी हुई है। यहां गाय के गोबर से गमले बनाए जा रहे हैं। साथ ही हवन में इस्तेमाल की जाने वाली अन्य वस्तुएं भी गोबर से तैयार की जा रही है।

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गोशाला में कुल 575 गाय हैं। सात एकड़ में स्थित गोशाला में रोजाना करीब 5 हजार किलो गोबर निकलता है। पहले इसे ठिकाने पर लगाना एक बड़ी चुनौती होता था। अब प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद यह समस्या भी हल हो गई है। पंजाब के जालंधर में छोटी-बड़ी करीब 280 डेयरियां हैं। इनमें 28,122 गायें हैं। इनसे रोजाना दो लाख 80 हजार किलो गोबर निकलता है। गाय के गोबर में पर्यावरण को बचाने वाले मौजूद तत्वों के चलते इनसे बनने वाले गमलों व हवन सामग्री को लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं।

प्रोजेक्ट की निगरानी करने वाले नगर निगम के सहायक हेल्थ अफसर राजकमल कहते हैं कि गमलों के अलावा हवन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की मांग भी लगातार बढ़ रही है। जबलपुर की कंपनी में इसे बनाने की मशीन तैयार की जा रही हैं। इनकी कीमत भी 80 हजार रुपये है। वहीं, नर्सरी में पौधो को लगाने के लिए पॉलीथिन की बजाय गोबर से तैयार गमलों में पौधे लगाने को लेकर नर्सरी वालों  को जागरूक किया जा रहा है।

नगर निगम की ज्वाइंट कमिश्नर आशिका जैन बताती हैं कि वह कुछ समय पहले खजुराहो गईं थीं। वहां की गौशालाओं में इस प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं। वहीं से यह आइडिया मिला। जालंधर आकर उन्होंने यहां की गौशालाओं  में इस प्रोजेक्ट को शुरू करवाने की कवायद की।

गोबर से बनी हवन सामग्री।

गोशाला के प्रधान रविंदर कक्कड़ बताते हैं कि ज्वाइंन कमिश्नर ने जब यह आइडिया दिया तो यूनिक लगा। गोबर का इस्तेमाल व खपत भी हो रही है। हम अब इस आइडिया को बाकी की गौशालाओं को दे रहे हैं।

इस गमले के लाभ

  • गोबर से बने गमले पौधों के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर ऑक्सीजन देते हैं।
  • एक ग्राम गोबर में 300 जीवाणु होते हैं।
  • गोबर में विटामिन बी के चलते रेडियोधर्मिता को गमला सोखता है।
  • पॉलीथिन के विकल्प के रूप में नर्सरियों में गमले का इस्तेमाल हो सकता है।
  • गमले को पौधे सहित जमीन में लगाया जा सकता है।
  • गमले में पौधे लगाकर घर में भी रख सकते हैं।
  • गमलों को रंग करके भी अपनी पसंद का लुक दिया जा सकता है।

हवन सामग्री के लाभ

  • आम लकड़ी से हवन करने पर कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है।
  • गोबर से बनी लकड़ीनुमा हवन सामग्री से हवन करने पर ऑक्सीजन निकलती है।
  • कोयले की जगह भी इस लकड़ी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • गोबर में नीम के पत्ते व चंदन का बुरादा मिलाया जाता है। इससे हवन से निकलने वाला धुआं भी सुगंधित हो जाता है।

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