Positive India: पचास दिन में दस हजार लोगों को दिया एक-एक महीने का राशन
हरपाल सिंह के मुताबिक मदद करने के लिए उन परिवारों को चुना जिन तक ना तो कभी सरकारी मदद पहुंची थी व ना ही किसी अन्य संस्था ने इनकी सुध ली थी। इसके लिए खुद सड़कों पर घूमना पड़ा।
जालंधर [शाम सहगल]। डगर बहुत मुश्किल थी। एक तरफ कोरोना वायरस की महामारी मौत बनकर लोगों के लिए दहशत का पर्याय बन चुकी थी, तो वहीं दूसरी तरफ सुनी सड़कें व वीरान शहर किसी प्रलय का संकेत दे रहे थे। ठप्प पड़ा कारोबार तथा इंडस्ट्री व तथा घरों में दुबके लोगों का मिशन केवल खुद की जान की हिफाजत करना बन चुका था। ऐसे में दिहाड़ी लगाकर परिवार पालने वाले मजदूर तथा गरीब परिवारों का मिशन परिवारिक सदस्यों का पेट भरना भी था। बिना किसी साधन तथा व्यवस्था के इस वर्ग के सामने कोरोना वायरस से ज्यादा भूख के साथ मरने वाली स्थिति बन गई। ऐसे में जीवन भर सिख धर्म के प्रचार व प्रसार के लिए जुटे रहे हरपाल सिंह चड्ढा की संवेदना जागी तो उन्होंने इस वर्ग की भलाई करने को ही अपना मिशन बना लिया।
उनका यह मिशन आसान ना था। बावजूद इसके श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र श्लोक 'अनपावनी भगति नहीं उपजी भूखै दानु न दीना' ( मानवता की सेवा के बिना भक्ति की भावना पैदा करना संभव नहीं) को जीवन का हिस्सा बना चुके हरपाल चड्ढा ने गरीबों की मदद करने की ठान ली। फिर क्या था देखते ही देखते जिले के 10 हजार से अधिक परिवारों को माह भर का राशन उपलब्ध करवा दिया। नेक काम को देखते हुए हरपाल चड्ढा के साथ कई अन्य सदस्य भी जुड़ गए।
मुश्किल थी डगर, लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया
हरपाल सिंह के मुताबिक मदद करने के लिए उन परिवारों को चुना, जिन तक ना तो कभी सरकारी मदद पहुंची थी व ना ही किसी अन्य संस्था ने इनकी सुध ली थी। इसके लिए खुद सड़कों पर घूमना पड़ा। देखते ही देखते 10 हजार के गरीब परिवारों की सूची तैयार कर ली। जिन्हें क्रमवार राशन मुहैया करवाया गया।
गरीबों के चेहरे की मुस्कान देती रही ऊर्जा
वाहेगुरु के समक्ष अरदास करके घर से निकलने वाले हरपाल चड्ढा बताते हैं कि इस काम में कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती रही। लेकिन राशन प्राप्त करने के बाद गरीब के चेहरे पर आने वाली मुस्कान उन्हें नई ऊर्जा प्रदान करती थी। यही मुस्कान अगले दिन ऐसे अन्य परिवारों की मदद को लिए प्रोत्साहित भी करती।
बदल गई दिनचर्या
पेशे से रियल एस्टेट कारोबारी, खुखरैन बिरादरी के अध्यक्ष तथा सिखों की प्रमुख संस्था सिख तालमेल कमेटी के वरिष्ठ सदस्य हरपाल सिंह चड्ढा बताते हैं कि इन दिनों में उनकी दिनचर्या ही बदल गई है। सामान्य दिनों में सुबह आराम से उठने वाले हरपाल इन दिनों तड़के 5 बजे बिस्तर छोड़ देते हैं। फिर शुरू होता है सेवा का सफर। जिसमें गरीब परिवारों के लिए किरयाना से लेकर सब्जी तथा अन्य जरूरत का सामान एकत्रित किया जाता है। इसके बाद गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा कैंट में सारा समान रखकर पैकिंग करना वह फिर गरीबों तक पहुंचाना दिनचर्या बन गई। यह परंपरा आज भी बरकरार है।
माता-पिता की प्रेरणा और परिवार का प्रोत्साहन
हरपाल चड्ढा बताते हैं कि माता स्व. सुरिंदर कौर स्कूल टीचर थी। गुरु घर की सेवा करना उनका मिशन रहा। इसी तरह स्व. पिता गुरचरण सिंह चड्ढा ने अपने संपर्क में आने वाले हर उस व्यक्ति की मदद की। बात भले किसी को रोजगार दिलाने की हो या फिर इंसाफ दिलाने की, गुरचरण सिंह चड्ढा कभी पीछे नहीं होते हटे। माता पिता के यही संस्कार सदैव सहायक रहे। कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के बीच जिले के स्लम इलाकों में जाकर राशन मुहैया करवाना खतरे से खाली नहीं था। लेकिन पत्नी कुलजिंदर कौर, कनाडा में रहेगा बेटा कंवलप्रीत सिंह तथा मुंबई में रह रही बेटी अर्षप्रीत कौर ने उन्हें इस काम के लिए रोका नहीं बल्कि प्रोत्साहित किया। हरपाल बताते हैं कि माता पिता के संस्कार तथा परिवार का प्रोत्साहन इसमें बहुत सहायक रहा।
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