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सैकड़ों वर्ष का इतिहास समेटे शहर के फूलां वाला चौक में अब नहीं महकते फूल

फूलां वाला चौक से करीब 200 मीटर दूरी पर शेखां बाजार में तवायफों के कोठे हुआ करते थे। इसी कारण चौक फूल और गजरे बेचने वालों से गुलजार रहता था।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Mon, 28 Oct 2019 12:12 PM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 09:43 AM (IST)
सैकड़ों वर्ष का इतिहास समेटे शहर के फूलां वाला चौक में अब नहीं महकते फूल
सैकड़ों वर्ष का इतिहास समेटे शहर के फूलां वाला चौक में अब नहीं महकते फूल

जालंधर [प्रियंका सिंह]। सैकड़ों साल पुराना इतिहास अपने सीने में समेटे 'फूलां वाला चौक' से आज असली फूल गायब हो चुके हैं। उनकी जगह नकली फूलों ने ले ली है। एक समय था जब मुसलमानों व पठानों के सबसे पसंदीदा स्थल के रूप में यह चौक प्रसिद्ध था। यहीं से करीब 200 मीटर दूरी पर स्थित शेखां बाजार में बने तवायफों के कोठों ने फूलां वाला चौक को गुलजार किया था। प्राचीन जालंधर को जानने वाले आज भी उन दिनों को याद करते हैं।

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फूलां वाला चौक नाम सुनकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इस चौक पर फूलों की दूकानों की भरमार होगी, लेकिन हकीकत में आज ऐसा कुछ नहीं है। फूलों की दुकानें पहले कम हुईं, फिर कुछ फूल वाले छाबे लगा कर यहां बैठने लगे और अब वे भी यहां नहीं दिखते। कोठों के साथ ही अतीत की यादों में फूलों का कारोबार करने वाले व उनकी दुकानें खो चुकी हैं। कभी महकते गजरों व मालाओं के लिए जाने जाते इस चौक पर अब महक वहीन नकली फूल बेचने वाला एक विक्रेता नाम की सार्थकता को कुछ हद तक सिद्ध करता दिखता है।

जालंधर का फूलां वाला चौक आज फूलों की महक से महरूम है। बंटवारे से पहले यहां चालीस फीसद आबादी मुस्लिमों की थी। उनके जाने के साथ ही फूलों और गजरों की खुशबू भी अतीत का हिस्सा बन गई।

तवायफों के लिए यहां से खरीदे जाते थे गजरे

जालंधर के जानकार बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले इस चौक की शाम अलग होती थी। बस्ती शेख से लेकर जालंधर के हर कोने से पठान तांगों व इक्कों पर बैठकर आया करते थे और इसी चौक से गजरे खरीद कर तवायफों के कोठों की ओर जाते थे। यह परंपरा देश के बंटवारे से पहले तक चलती रही। बंटवारे के बाद मुस्लिम परिवार यहां से पाकिस्तान शिफ्ट हो गए और उनके साथ ही वे कोठे भी यादों के दरिया में लुप्त होते चले गए। उस समय से ही इस चौक को लोग ‘फूलां वाला चौक’ के नाम से पुकारते थे, जो सिलसिला आज भी जारी है।

उस समय इस चौक पर फूलों के छोटे-बड़े दर्जनों व्यापारी होते थे जो दोपहर से ही अपनी दुकानें खोल लेते थे और पूरा चौक तथा आसपास का इलाका फूलों से महकता रहता था। विडंबना है कि आज सीवरेज के गंदे पानी की दुर्गंध फूलों की खूशबू की जगह ले चुकी है।

नाम-ए-खास अब नहीं रहा वह मंजर: मल्होत्रा

1934 से फुलां वाला चौक के पास ज्वैलरी की दुकान चलाने वाले सुरेश मल्होत्रा बताते हैं कि पहले व्यापारी टोकरियों में गजरे व अन्य फूल लेकर यहां बेचने आते थे। बंटवारे के बाद यह सिलसिला कम हो गया, जो समय के साथ खत्म भी हो गया। पहले चौक पर रौनक लगी रहती थी। हमारी दुकान भी उस कारण अच्छी चलती थी। अब न तो वह मंजर रहा न ही वैसा कारोबार।

फूलां वाला चौक पर कपड़ों का काम करने वाले बुजुर्ग रामपाल और सुरेश मल्होत्रा।

खो गई वो रौनक : रामपाल

फूलां वाला चौक पर कपड़ों का काम करने वाले रामपाल बताते हैं पहले यहां 40 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की थी। उनके परिवार बंटवारे के बाद यहां से पलायन कर गए हैं। बैंक में मैनेजर रहने के दौरान राम पाल कभी-कभार अपने पिता की 1940 में खोली गई कपड़ों की दुकान पर भी आ जाया करते थे। तब वाली रौनकें अब गायब हो चुकी हैं।

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