कैग रिपोर्ट में हुआ खुलासा, पंजाब में एफसीआइ का 700 करोड़ रुपये का गेहूं खराब
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पंजाब में 700 करोड़ रुपये का गेहूं गलत रखरखाव के कारण बर्बाद हुआ है।
जेएनएन, जालंधर। पंजाब में मार्च 2016 तक फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआइ) का 700 करोड़ रुपये का गेहूं भंडारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण खराब हो गया। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने किया है। कैग ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। नष्ट हुआ गेहूं समय पर राशन की दुकानों को सप्लाई नहीं किया गया। यह गेहूं खुले आसमान के तले ही पड़ा रहा।
राज्य में अन्न भंडारण की क्षमता बढ़ाने के लिए शुरू की गई निजी उद्यम गारंटी (पीईजी) योजना के ऑडिट में यह तथ्य सामने आया है। इस योजना के तहत एफसीआइ को अपनी ऋण व्यवस्था, श्रम और प्रबंधन में सुधार करना था। रिपोर्ट के अनुसार एफसीआइ ने थोक उपभोक्ताओं को 2013-14 के रेट से भी कम कीमत पर गेहूं बेची, जिसमें से 38.99 करोड़ रुपये की रिकवरी नहीं हो पाई है। डिपो में महंगी लेबर और सरप्लस लेबर के चलते एफसीआइ ने 237.65 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट ठेकेदारों को लंबी दूरी के लिए 14.73 करोड़ रुपये और 37.89 करोड़ रुपये का ज्यादा भुगतान किया। यह भुगतान वास्तविक परिवहन लागत से ज्यादा था।
पीईजी योजना पर लेखा परीक्षक ने कहा कि योजना का कार्यान्वयन प्रारंभिक वर्षों व आगामी सात वर्षों के बाद भी न के बराबर था। भंडारण की पूरी क्षमता विकसित नहीं की गई। स्कीम को विभिन्न प्रकार की कमियों का सामना करना पड़ा। राज्य में 53.56 लाख टन गेहूं ही पक्के फर्श व छत वाले गोदाम में रखा गया, जबकि शेष एफसीआइ और अन्य एजेंसियों के अस्थायी गोदामों में स्टॉक किया गया। 700.70 करोड़ रुपये का 4.72 लाख टन गेहूं उचित भंडारण न होने के कारण खराब हो गया, जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (मार्च 2016) के तहत लोगों में न बांटे जाने योग्य घोषित किया गया था।
संगरूर व फरीदकोट में 2,400 करोड़ का गेहूं खुले में
संगरूर व फरीदकोट जिलों में पीईजी योजना सही ढंग से लागू न हो पाने के कारण बड़ी मात्रा में गेहूं खुले क्षेत्र में ही पड़ा रहा। इससे यह स्टॉक 2011-12 के मुकाबले 2012-13 में 103.36 लाख टन से 132.68 लाख टन तक पहुंच गया। जून 2015 तक संगरूर और फरीकोट जिलों से केवल 12.94 लाख टन गेहूं की पीईजी स्कीम के तहत उठाया जा सका, जबकि 14.40 लाख टन खुले में ही पड़ा रहा, जिसकी कीमत 2,413.04 करोड़ रुपये थी। सितंबर 2012 से लेकर मार्च 2016 तक 6 लाख टन गेहूं एफसीआइ उठाने में नाकाम रहा। जिस कारण बड़ी मात्रा में गेहूं बारिश के कारण खराब हो गया।
प्राइवेट एजेंसियों को पहुंचाया लाभ
कैग ने पाया कि अपात्र बोलीकर्ताओं को गोदामों के निर्माण के लिए ठेके देने में अनुचित लाभ दिया गया। वर्ष 2012-13 से 2015-16 के दौरान प्राइवेट एजेंसियों को 21.04 करोड़ रुपये के किराए का भुगतान किया गया। इसके अलावा 2012-13 के दौरान गोदामों के लिए 9.77 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया। रेलवे का सहयोग न लेने के चलते 2015-16 में ट्रांसपोर्टेशन पर 8.36 करोड़ रुपये ज्यादा खर्चे गए। राज्य की एजेंसी पनग्रेन और एफसीआइ के माप में भी अंतर पाया गया।
श्रम प्रबंधन पर उठाए सवाल
कैग ने एफसीआइ के श्रम प्रबंधन पर भी सवाल उठाए हैं। कैग ने कहा कि एफसीआइ को अपने घटिया श्रम प्रबंधन के कारण घाटा उठाना पड़ा। निर्धारित नियमों को पालन न करते हुए अधिक भुगतान किया गया। एफसीआइ डिपो में लेबर के फर्जीवाड़े से निपटने में भी नाकाम रहा। ऐसे मामलों में कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया। खाद्य मंत्रालय भी समय पर सब्सिडी जारी नही कर पाया।
ब्याज की मार और खर्च में बढ़ोतरी
2011-2016 के दौरान एफसीआइ पर ब्याज भार 35,701.81 करोड़ था, जबकि 2,897.17 करोड़ रुपये की राशि अन्य मंत्रालयों और राज्य सरकारों को देना बाकी है। वहीं, एफसीआइ के खर्च में 35 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। यह खर्च 2011-16 के बीच 1,05,355 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,42,487 करोड़ रुपये हो गया। इसके अलावा खाद्य सब्सिडी में भी 53 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। यह सब्सिडी 2015-16 में 67,694 रुपये थी, जो 2015-16 में 1,03,283 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
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