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ये कैसी सरकार! पंजाब में पानी की कमी, फिर भी खुद करवा रही धान की बिजाई Jalandhar News

जालंधर में भू-जल स्तर में लगातार गिरावट हो रही है। जिले के सभी 10 ब्लॉक खतरनाक डार्क जोन को भी पार करते हुए ओवर एक्सप्लोइटेड श्रेणी में शुमार हो गए हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 01:28 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 01:28 PM (IST)
ये कैसी सरकार! पंजाब में पानी की कमी, फिर भी खुद करवा रही धान की बिजाई Jalandhar News
ये कैसी सरकार! पंजाब में पानी की कमी, फिर भी खुद करवा रही धान की बिजाई Jalandhar News

जालंधर [ मनुपाल शर्मा]। सूबे की जनता तेजी से गिरते जा रहे भू-जल स्तर डरी हुई है लेकिन पंजाब सरकार भूमिगत जल के दोहन में सर्वाधिक जिम्मेदार मानी जाती धान की फसल की बिजाई में कोई कमी नहीं लाना चाहती। किसानों को धान की बिजाई से रोकने की बजाय पंजाब सरकार अपने कृषि विभाग के जरिए उन्हें प्रोत्साहित कर रही है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि, सरकारी खरीद, किसानों को फसल का ज्यादा झाड़ निकालने के लिए उन्नत किस्म के बीज, दवाइयां और फ्री बिजली आदि देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश में इस बार 28 लाख हेक्टेयर रखबे में धान की बिजाई की जा रही है। जिला जालंधर में यह आंकड़ा करीब एक लाख 70 हजार हेक्टेयर है।

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एक किलो चावल के पीछे खर्च हो रहा 3700 लीटर पानी

धान की फसल को लगातार पानी चाहिए होता है और फसल पकने से पहले तक धान के खेतों में पानी खड़ा रखा जाता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक धान की फसल से एक किलो चावल की पैदावार लेने के लिए लगभग 3700 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। हैरानीजनक है कि जालंधर में लगभग दो लाख 42 हजार रकबा कृषि योग्य है जिसमें से 1.70 लाख हेक्टेयर रकबे पर धान की काश्त हो रही है। बाकी बचे लगभग 72 हजार रकबे पर गन्ना, सब्जियां, कुछ फलों के बाग और मक्की की खेती की जाती है।

अत्याधिक भू-जल दोहन से जालंधर के सभी ब्लॉक ओवर एक्सप्लोइटेड

जालंधर में भू-जल स्तर में लगातार गिरावट हो रही है। जिले के सभी 10 ब्लॉक डार्क जोन को भी पार करते हुए ओवर एक्सप्लोइटेड श्रेणी में शुमार हो गए हैं। डार्क जोन वह वर्ग है जहां पर पानी खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया है।

एक किलो मक्की को चाहिए मात्र 12 सौ लीटर पानी पर सरकार खरीदती नहीं

सरकारी बेरुखी के चलते कृषि विविधीकरण मुहिम दिशाहीन होई गई है। किसानों को परंपरागत गेहूं-धान की बजाए अन्य फसलों की बिजाई की तरफ आकर्षित करने के लिए दिखावा तो बहुत होता है लेकिन असलियत यही है कि सरकार गेहूं धान के अलावा किसी भी अन्य फसल की सरकारी खरीद ही नहीं कर रही। कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार धान की फसल के साथ ही उगाई जाने वाली मक्की की फसल भूमिगत जल स्तर के लिए कोई खतरा नहीं है। एक किलो मक्की की पैदावार लेने के लिए मात्र 12 सौ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। मक्की की फसल की मार्केट में भारी डिमांड भी है लेकिन सरकार खरीदारी नहीं करती।

फ्री बिजली के प्रलोभन ने बिगाड़ी भू-जल स्तर की स्थिति

समय-समय पर पंजाब में आई सरकारों ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए किसानों को फ्री बिजली मुहैया करवानी शुरू कर दी। इसका नतीजा यह निकला कि गहरे ट्यूबवेल लगाकर अंधाधुंध भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है। बिजली बिल की चिंता न होने के कारण बारिश में भी ट्यूबल चलते रहते हैं।

सरकारी अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी चुप

कृषि विभाग समेत तमाम संबंधित विभागों के अधिकारी भूमिगत जलस्तर गिरने की उपरोक्त वजहों से पूरी तरह से सहमत तो हैं लेकिन सरकार के खिलाफ बोलने से इंकार कर रहे हैं। तर्क है कि अगर सरकार ही धान की बिजाई के लिए कहती है तो वह कैसे मना करवा सकते हैं। इस वर्ष भी किसानों को उन्नत किस्म का धान का बीज मुहैया करवाया गया है। सीजन शुरू होने से पहले ही एमएसपी की घोषणा कर दी गई है और समय पर खरीद करवाने के लिए भी सरकारी एजेंसियां अब कमर कस रही हैं।


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