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निराशाजनक नतीजे फिर भी निजी कंपनी को सुविधा सेंटर ठेका देने की तैयारी

सूबे में साल 2005 में सुविधा सेंटर के नाम पर लोगों को बड़ी राहत देने वाली कांग्रेस की कैप्टन सरकार अब बादल सरकार के नक्शेकदम पर ही चल पड़ी है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 05:39 PM (IST)Updated: Tue, 19 Jun 2018 05:39 PM (IST)
निराशाजनक नतीजे फिर भी निजी कंपनी को सुविधा सेंटर ठेका देने की तैयारी
निराशाजनक नतीजे फिर भी निजी कंपनी को सुविधा सेंटर ठेका देने की तैयारी

सत्येन ओझा, जालंधर : सूबे में साल 2005 में सुविधा सेंटर के नाम पर लोगों को बड़ी राहत देने वाली कांग्रेस की कैप्टन सरकार अब बादल सरकार के नक्शेकदम पर ही चल पड़ी है। जुलाई में सरकार ने नए सिरे से सुविधा सेंटर का टेंडर प्राइवेट कंपनी को देने की तैयारी कर ली है। ये स्थिति तब है जब वर्तमान में काम कर रही सेवा प्रदाता कंपनी लोगों को समय पर सेवाएं दे पाने में असमर्थ साबित हो रही है। निजी कंपनी का अनुभव बेहद निराशाजनक रहा है। इस संबंध में जिले से डिप्टी कमिश्नर के स्तर पर रिपोर्ट भी सरकार को भेजी जा चुकी है। साल 2005 में जब कैप्टन सरकार ने ये सुविधा सेंटर की योजना शुरू की थी, तब इसका संचालन संबंधित जिले के डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटियां करती थीं। ये कमेटी समय पर लोगों को सेवाएं प्रदान कर रही थीं। बड़ी संख्या में नौजवानों को रोजगार भी मिला था।

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क्या है वर्तमान स्थिति

जिले के 147 सुविधा केंद्रों के लिए सरकार को हर साल लगभग 300 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। फिर भी लोगों को सही तरीके से सुविधा नहीं मिल पा रही है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद सुविधा सेंटरों पर सेवा देने वाली निजी कंपनी डीएलएफ प्राइवेट लिमिटेड को भुगतान नहीं कर पा रही है। 64 सुविधा सेंटरों के बिजली कनेक्शन भी बकाया के आधार पर कट चुके हैं, जिससे लोगों को सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। टाइप-3 सुविधा सेंटर बंद हो चुके हैं। जो चल रहे हैं, उनमें भी लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। समय पर काम नहीं हो रहे हैं। जिला प्रबंधकीय कांप्लेक्स स्थित टाइप-1 सुविधा सेंटर में ही लोगों को सिर्फ टोकन लेने के लिए सेंटर खुलने से दो से तीन घंटे पहले आकर लाइन में लगना पड़ता है। इसमें सबसे ज्यादा पेंशन की उम्मीद में आने वाले सीनियर सिटीजन को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिले में कुल संख्या

टाइप-वन -1

टाइम-टू 38

टाइप-3 108 (अधिकांश बंद हो चुके हैं)

कुल 147

असुविधा

सुविधा सेंटर पर हर सेवा के लिए अलग काउंटर हैं। हर काउंटर का अलग टोकन मिलता है। डिजिटल डिस्प्ले की सुविधा उपलब्ध कराई थी ताकि लोगों को लाइन में न लगना पड़े। टोकन नंबर डिस्प्ले होने पर लोग काउंटर पर पहुंचें लेकिन डिजिटल डिस्प्ले बंद पड़ी हैं। लोगों को घंटों लाइन में लगना पड़ता है। महिलाओं व युवतियों को पुरुषों के साथ ही एक ही लाइन में लगने को मजबूर होना पड़ता है। सेंट्रलाइज एसी की सुविधा है, लेकिन चलता नहीं है। ज्यादा भीड़ आधार कार्ड वाले काउंटर पर उमड़ती है। पूरे दिन में बनते सिर्फ 80 हैं। टोकन लेने के लिए सुबह 7 बजे से ही लाइन लग जाती हैं, जबकि सेंटर 9 बजे खुलता है। टोकन लेने में ही कई दिन लग जाते हैं। जिले के टाइप-2 व टाइप-3 में ये सुविधा बंद होने से यहीं पर भीड़ उमड़ती है। सुविधा सेंटर में मिलने वाली सेवाओं व उसके प्रकार को लेकर अवेयर करने वाला कियोस्क कई महीनों से बंद है। ये है समस्या का हल

2005 में सुविधा सेंटर का कॉन्सेप्ट मोगा के तत्कालीन एडीसी नीलकंठ आवाड़ ने तैयार किया था। ट्रायल के रूप में मोगा में शुरू की इस योजना के परिणाम काफी अच्छे रहने पर इसे अगले साल पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया था। हजारों लोगों को प्रदेश भर में जॉब और साथ ही काम करवाने के लिए आने वाले लोगों को बड़ी राहत मिली थी। तब 36 सेवाओं से शुरू हुआ सुविधा सेंटर आज 140 से ज्यादा सुविधाएं देने का तो दावा कर रहा है, लेकिन असल में यह असुविधा सेंटर बन गया है। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का कहना है कि सरकार निजी कंपनी को 300 करोड़ सालाना दे रही है। डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी को फिर से बहाल कर 30 करोड़ सालाना भी मिल जाएं तो बेहतर सेवाएं दी जा सकती हैं। संचालन निजी कंपनी के हाथ में होने के कारण डीसी को सीधे कार्रवाई का भी अधिकार नहीं है। राज्य में बादल सरकार आने के बाद डीसी की अध्यक्षता वाली कमेटियां खत्म कर निजी कंपनी के हाथ में संचालन सौंप दिया था, तभी से सुविधा सेंटरों की स्थिति लगातार बदतर होती गई। सुविधा केंद्रों को लेकर मिल रही शिकायतों के आधार पर अब तक लाखों रुपये का जुर्माना किया जा चुका है। जुलाई में नए सिरे से सरकार टेंडर करने जा रही है।

-डॉ.दीपक भाटिया, सहायक कमिश्नर जनरल।


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