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जब छूट गई नशे की लत तब जीवन में आया बदलाव, मासूम चेहरे भी खिले

नशा मुक्ति को लेकर डिप्टी कमिश्नर (डीसी) व¨रदर कुमार शर्मा व पुलिस कमिश्नर (सीपी) प्रवीन सिन्हा का प्रयास रंग लाने लगा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 01:50 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 03:14 PM (IST)
जब छूट गई नशे की लत तब जीवन में आया बदलाव, मासूम चेहरे भी खिले
जब छूट गई नशे की लत तब जीवन में आया बदलाव, मासूम चेहरे भी खिले

जागरण संवाददाता, जालंधर : नशा मुक्ति को लेकर डिप्टी कमिश्नर (डीसी) व¨रदर कुमार शर्मा व पुलिस कमिश्नर (सीपी) प्रवीन सिन्हा का प्रयास रंग लाने लगा है। करीब तीन माह पहले शुरू किए गए ड्रग एब्यूज प्रिवेंशन अफसर (डेपो) योजना से जिले में अब सामाजिक परिदृश्य बदलने लगा है। जवानी में जो बेटे ड्रग्स के लगातार सेवन से गंभीर बीमारियों के चलते मौत के मुंह में जाते दिखने लगे थे, डेपो ने उन्हें नई ¨जदगी दी है। ड्रग्स ने जिन मासूम बेटियों से उनके पिता का दुलार छीन लिया था, दो वक्त की रोटी का गुजारा मुश्किल हो गया था, उन मासूम बेटियों को फिर से पिता का प्यार मिलने लगा है। हर रोज जिले के नशा छुड़ाओ केंद्र में बड़ी संख्या में लोग नशा मुक्ति के लिए आ रहे हैं।

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केस-1

काजी मंडी चौक पर एक चाय विक्रेता के गंभीर बीमार होने पर उसके दो जवान बेटों ने टी स्टॉल संभाला था। कुछ ही दिन में दोनों को ड्रग्स की लत लग गई। धीरे-धीरे ड्रग्स की लत टी स्टॉल के पैसों से पूरी करने के कारण टी स्टॉल भी बंद हो गया। मां एक स्कूल में मिड डे मील तैयार कर मुश्किल से परिवार पाल रही थी। इनमें से 20 साल के बड़े बेटे को टीबी व अन्य गंभीर बीमारियों ने घेर लिया था, चिकित्सकों ने हालत बेहद चिंताजनक बताई थी। डेपो योजना के तहत दोनों भाइयों ने ड्रग्स को अलविदा कहकर नशा उन्मूलन केंद्र में लगातार इलाज कराया। दो महीने के इलाज के बाद अब दोनों भाई ठीक हैं, टी स्टॉल चलाकर फिर से परिवार का पेट पाल रहे हैं। केस-2

भीमनगर के एक व्यक्ति की दो छोटी बेटियां हैं। वह सिगरेट, तंबाकू बेचता था। ड्रग्स की लत में पड़ने के बाद वह सिगरेट का स्टॉल चलाने में भी असमर्थ हो गया। मजबूरन स्टॉल पर उसकी पत्नी ने बैठना शुरू कर दिया। वह अपनी लत पूरी करने के लिए स्टॉल की आमदनी ड्रग्स में उड़ा देता था जिससे परिवार में दो वक्त का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया था। डेपो योजना आने के बाद व्यक्ति ने ड्रग्स छोड़ इलाज कराया। लगभग ढाई महीने बाद अब वह काफी हद तक ठीक हो चुका है, वह फिर से स्टॉल चलाने लगा है। नन्हीं बेटियों को भी फिर से पिता का दुलार मिलना शुरू हो गया है।

बढ़ रही है नशा छोड़ने वालों की संख्या

गांव शेखे स्थित सरकारी नशा छुड़ाओ केंद्र में जून में ड्रग्स पर निर्भर 600 लोगों ने नशा छोड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। इनमें से लगभग 350 ने रेगुलर इलाज कराया। निरंतर इलाज से अब ड्रग्स को पूरी तरह से अब ये अलविदा कह चुके हैं। डेपो योजना से प्रभावित होकर अब यहां हर दिन 25-30 लोग नशा मुक्ति के लिए आ रहे हैं। जालंधर व नूरमहल स्थित नशा छुड़ाओ केंद्र में भी हर दिन बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। समाज जब किसी भी समस्या के खिलाफ खड़ा हो जाता है, तो समस्या फिर ज्यादा दिन नहीं टिकती है। ड्रग्स के खिलाफ आज पूरा समाज खड़ा हो गया है, उसी के परिणाम दिखने लगे हैं। लोगों के सहयोग के बिना किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है।

-व¨रदर कुमार शर्मा, डीसी समस्या कितनी भी गंभीर हो, इमानदारी से जमीन पर उतरती है, तो उसके परिणाम तो दिखते ही हैं, पुलिस व प्रशासन ने जिस सकारात्मक ढंग से लोगों के साथ सीधे जुड़कर नशे के खिलाफ जंग छेड़ी है, परिणाम सबके सामने हैं।

-प्रवीन कुमार सिन्हा, पुलिस कमिश्नर


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