घर चलाने के लिए इस महिला ने शुरू किया ऐसा काम, हर जगह बना ली अलग पहचान Jalandhar News
कांता आज शहर की उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं जो हालात के आगे हथियार डाल देती हैं या फिर कुछ न कर पाने का रोना रोती रहती हैं।
जालंधर, जेएनएन। मैं मोहाली की रहने वाली हूं। 2006 में जालंधर में संत राम से शादी के बाद मैं जालंधर आ गई। मेरे पति ऑटो चलाते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक दिन पति के एक्सीडेंट के बाद जिंदगी पटरी से उतर गई। पति के इलाज में सारी जमा पूंजी खर्च हो गई और हालात यहां तक हो गए कि घर में खाने तक को कुछ नहीं होता था। ऐसे में घर चलाने के लिए कुछ करने की सोची।
मुझे एक दिन पति ने सलाह दी कि मैं एक निजी कंपनी के लिए कैब (स्कूटर) ड्राइवर बनूं। इसके बाद मैंने हां कर दी और निजी कंपनी की तरफ से स्कूटर लेकर टैक्सी के रूप में स्कूटर से सवारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने लगी। यह कहानी है कि जालंधर की पहली कैब (स्कूटर) चालक कांता चौहान की।
कांता आज शहर की उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जो हालात के आगे हथियार डाल देती हैं या फिर कुछ न कर पाने का रोना रोती रहती हैं। नारी सशक्तीकरण की जीती जागती मिसाल के रूप में एक महीने में ही कैब ड्राइवर बनने के बाद कांता की आज शहर में एक अलग पहचान बन रही है। पहले कांता को उसी के मोहल्ले के लोग नहीं जानते थे। क्योंकि पति ऑटो चलाते थे और वह घर संभालती थी। आज उसने अपनी एक पहचान बना ली है। लोग उसे महिला कैब चालक के रूप में पहचानते हैं।
पहले सिर्फ महिला सवारी लेती थी, अब कोई भी सवारी उठा रही
कांता बताती हैं कि पहले काफी सोचा कि पति कुछ कर नहीं सकते हैं। दो बच्चें हैं उन्हें खाना क्या खिलाना है। किचन में राशन नहीं होता था। पति की दवाइयों का इंतजाम करना होता था। इलाज के पैसे जुटाने होते थे। यह सब कुछ 12वीं पास कांता के लिए पहाड़ चढ़ने से कम नहीं था, लेकिन पति की सलाह काम आई और उसने एक महीना पहले ही एक अक्टूबर तो स्कूटर का हैंडल थाम लिया। पहले डर लगता था, लेकिन अब हौसले बुलंद हैं। पहले वह केवल महिलाओं की ही सवारी लेती थी। लेकिन अब पुरुषों को भी उनकी मंजिल तक पहुंचा रही हैं।
लौटने लगी है पटरी पर जिंदगी
कांता बताती हैं कि अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। मेहनत है, संघर्ष है, लेकिन अपनी मंजिल तय करने के लिए दूसरों की सारथी बनने में आत्म संतुष्टि होती है। पिता का साया छोटी उम्र में ही सिर से उठ गया था। मां ने पालकर बड़ा किया। शायद यही वजह थी कि बचपन से ही शुरू हुआ संघर्ष आज तक जारी है। कांता बताती हैं कि खुशी होती है कि जो लोग पहले सीधे मुंह बात नहीं करते थे, अब वही लोग उसे आदर के साथ देखते हैं। कांता के अंदर एक गीतकार भी छिपा है जिसे हालातों ने बाहर निकलने का मौका ही नहीं दिया।
-प्रस्तुति : प्रियंका सिंह।
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