युवक ने बयां किया दर्द... इराक में ऐसे खाई आठ माह ठोकरें, न Work permit मिला न नौकरी
कोमलजोत आर्थिक तंगी दूर करने का सपना लेकर दिसंबर 2018 में इराक गया था लेकिन वहां उसे अपराधियों की तरह छिप-छिप कर रहना पड़ा।
फगवाड़ा [अमित ओहरी]। 28 साल का कोमलजोत खूब सारा पैसा कमाकर बढिय़ा जिंदगी जीने और घर की आर्थिक तंगी दूर करने का सपना लेकर दिसंबर 2018 में इराक गया था, लेकिन वहां उसे अपराधियों की तरह छिप-छिप कर रहना पड़ा। न नौकरी मिली न रहने का ठिकाना। मोहल्ला कौलसर का रहने वाला कोमलजोत छह अन्य युवकों के साथ दर-दर की ठोकरें खाने के बाद बड़ी मुश्किल से वतन लौटा है। कोमलजोत घर तो पहुंच गया है, लेकिन अब उसे घर चलाने और विदेश जाने के लिए लोगों से लिया कर्ज उतारने की चिंता सता रही है।
कोमलजीत समेत व अन्य युवकों के लौटने में शिरोमणि अकाली दल की अहम भूमिका रही। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने यह मामला विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से उठाया था। युवकों की वापसी के लिए टिकटों का इंतजाम शिअद कार्यकर्ताओं ने किया था। गौरतलब है कि इराक से लौटे युवाओं में जालंधर के गांव छोकरां के बलजीत कुमार, सौरव कुमार, रणदीप, संदीप कुमार, अट्टा के अमनदीप कुमार, फगवाड़ा (कपूरथला) के कोमलजोत सिंह व भुलत्थ (कपूरथला) के प्रभजोत सिंह शामिल हैं।
चुकानी पड़ी रोजाना 20 डॉलर की पेनल्टी
कोमलजोत के पिता मोहन लाल ने बताया कि वे दिहाड़ीदार हैं। उसके दो बेटे हैं। वे भी मजदूरी करते थे। छोटे बेटे कोमलजोत को दिसंबर 2018 में 2.80 लाख का कर्जा लेकर इराक भेज दिया। घर में कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था, इसलिए वे एजेंट के बहकावे में आ गए। एजेंट ने कहा था कि इराक में पहुंचते ही कोमलजोत को वर्क परमिट व नौकरी मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वह आठ माह तक इराक के इरबिल शहर में छिप-छिप कर रहने को मजबूर था। उसे प्रति दिन 20 डॉलर की पेनल्टी भी देनी पड़ रही थी। अब उसे लौटने से परिवार बेहद खुश है, लेकिन भविष्य की चिंता सता रही है। बेटे के घर पहुंचते ही पारिवारिक सदस्यों ने कोमलजोत का माथा चूमा और भगवान का शुक्रिया अदा किया। उनका कहना है कि अब वे कभी बेटे को विदेश नहीं भेजेंगे।
दो बेटियों की जिम्मेदारी
कोमलजोत का कुछ वर्ष पहले ही विवाह हुआ था। उसकी दो बेटियां हैं। इनमें उसकी बड़ी बेटी तान्या की उम्र दो साल और छोटी बेटी सोफिया की उम्र सिर्फ चार माह है। परिवार में कोमलजोत की पत्नी सिमरन, माता सुरजीत कौर और पिता मोहन लाल और भाई मनजिंदर शामिल हैं।
भेजना था अमेरिका, भेज दिया इराक
कोमलजोत के भाई मनजिंदर कुमार शम्मी ने बताया कि उनके भाई कोमलजोत ने दिसंबर 2018 में विदेश जाना था। एजेंटों ने उसे अमेरिका भेजने की बात कहीं थी, लेकिन बाद में उसे अमेरिका भेजने की बजाय इराक भेज दिया।
एक कमरे में रखे थे 22 लोग, न बैठ पाते न सो पाते
इराक से लौटे युवकों ने बताया कि कंपनी ने उन्हें यह भरोसा दिया था कि जाते ही उनको नौकरी मिल जाएगी और उनके रहने व खाने का प्रबंध कंपनी की तरफ से किया जाएगा, लेकिन वहांं जाने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ। कई दिनों बाद उन्हें काम दिया गया, लेकिन न ही खाना और रहने के लिए जगह। पांच दिन तक बिना खाने के रहने के बाद अमृतसर के पहलवान नामक व्यक्ति ने उन्हें खाना उपलब्ध करवाया और रहने का आश्रय दिया। एक छोटे से कमरे में 22 युवाओं को रखा गया था। न वह पूरी तरह से उस कमरे में सो पाते थे और न ही लेट सकते थे। दो फीट जगह भी एक युवक को लेटने के लिए मुश्किल से नसीब हो पाती थी।
घर लौटे इराक से लौटने के बाद रणदीप कुमार, सौरव कुमार, संदीप कुमार, अमनदीप व कमलजोत ने बताया कि उन्हें उसी व्यक्ति ने एक वकील से मिलवाया और वकील ने 4700 डॉलर लेकर कहा कि वह उनके मामले की पैरवी करेगा। पैसे लेने के बाद भी उन्हें वहां रहने के लिए कार्ड बना कर नहीं दिया गया, जिसके लिए उन्हें 20 डॉलर जुर्माना देना पड़ता था।
सभी युवकों ने करीब 1500 डॉलर के हिसाब से जुर्माना दिया। उसके बाद मामला अदालत में गया और अदालत ने उक्त वकील का लाइसेंस रद्द कर उसके ऊपर करीब 12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इतनी जिल्लत झेलने के बाद वे किसी तरह से सारी खबर अपने परिजनों तक पहुंचा पाए, जहां से उन्होंने बलदेव खैहरा के सहयोग से इराक से लौटने में उनकी मदद की। युवकों ने कहा कि अब वे किसी भी सूरत में विदेश नहीं जाएंगे। चाहे जो मर्जी हो जाए।
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