राहत : पहली बार दिव्यांगों को परीक्षा न देने का विकल्प, पूर्व मूल्यांकन से होगा रिजल्ट तैयार
सीबीएसई की तरफ से पहली जुलाई से 15 जुलाई तक दसवीं और बारहवीं की 29 विषयों की परीक्षाएं ली जानी हैं। कोविड-19 की वजह से बने हालातों के चलते सबसे ज्यादा दिक्कत विशेष जरूरतों वाले विद्यार्थियों को उठानी पड़ सकती है। इन स्पेशल बच्चों को परीक्षा लिखने के लिए रीडर की आवश्यकता पड़ती है। इस बार परीक्षा में प्रत्येक बच्चे के मध्य शारीरिक दूरी का ख्याल रखा जाना है और ऐसे बच्चों को रीडर ना मिलने की भी समस्या आ सकती है। इसलिए सीबीएसई की तरफ से पहली बार दिव्यांग विद्यार्थियों को परीक्षा ना देने का भी विकल्प दिया है।
अंकित शर्मा, जालंधर
सीबीएसई की तरफ से पहली जुलाई से 15 जुलाई तक दसवीं और बारहवीं की 29 विषयों की परीक्षाएं ली जानी हैं। कोविड-19 की वजह से बने हालातों के चलते सबसे ज्यादा दिक्कत विशेष जरूरतों वाले विद्यार्थियों को उठानी पड़ सकती है। इन स्पेशल बच्चों को परीक्षा लिखने के लिए रीडर की आवश्यकता पड़ती है। इस बार परीक्षा में प्रत्येक बच्चे के मध्य शारीरिक दूरी का ख्याल रखा जाना है और ऐसे बच्चों को रीडर ना मिलने की भी समस्या आ सकती है। इसलिए सीबीएसई की तरफ से पहली बार दिव्यांग विद्यार्थियों को परीक्षा ना देने का भी विकल्प दिया है। इसका फैसला विद्यार्थी के अभिभावक ही ले सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में दिव्यांग बच्चों का नतीजा उनकी पहली परीक्षा के मूल्यांकन के आधार पर ही जारी किया जाएगा। विकल्प को अपनाया है तो स्कूल को दें इसकी जानकारी :
विद्यार्थियों के अभिभावकों की तरफ से यदि परीक्षा ना देने का विकल्प चुना गया है तो इसकी जानकारी स्कूल प्रबंधकों व प्रिसिपल को दे सकते हैं। इसके बाद उनका रिजल्ट पूर्व मूल्यांकन के आधार पर तैयार किया जाएगा।
अतिरिक्त समय, केल्कुलेटर और लैपटॉप ले जाने की छूट
बोर्ड की तरफ से दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए परीक्षाओं में अतिरिक्त समय तो दिया ही गया है। इसके साथ-साथ पहली बार बच्चों को परीक्षा केंद्र में केल्कुलेटर और बिना इंटरनेट कनेक्शन के लैपटॉप ले जाने की अनुमति दी गई है।
सीबीएसई की जिला कोऑर्डिनेटर व पुलिस डीएवी स्कूल की प्रिसिपल डॉ रश्मि विज का कहना है कि बोर्ड की तरफ से इस संबंध में गाइडलाइन आ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि परीक्षा केंद्रों में प्रत्येक विद्यार्थी के मध्य शारीरिक दूरी को बनाए रखते हुए ही सिटिग अरेंजमेंट किए जाने हैं। ऐसे में हो सकता है कि दिव्यांग बच्चों को उनकी सहायता के लिए रीडर ना मिल सके। इससे विद्यार्थियों में किसी प्रकार का मानसिक तनाव ना हो इसलिए इसे एक विकल्प के तौर पर दिया गया है। परीक्षा को लेकर उन्हें स्कूल को पहले सूचित करना होगा।