कैप्टन ने खुद नियंत्रित किया चुनावी अभियान का एजेंडा, बरकरार रहेगा बेअदबी का मुद्दा
अमरिंदर सिंह ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के चुनावी अभियान का एजेंडा शुरू से अंत तक खुद ही नियंत्रित किया।
जालंधर [अमित शर्मा]। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में मुद्दों को लेकर बेशक राष्ट्रीय और राज्यस्तर की राजनीति में कोई एकरूपता न देखने को मिली हो, लेकिन अगर राजनीतिक परिदृश्य और रणनीति की बात करें तो ऐसा नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान जिस कदर मुद्दाविहीन विपक्ष के चुनावी अभियान की रूपरेखा एक तरह से हर दिन स्वयं तय की, ठीक उसी तरह पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के चुनावी अभियान का एजेंडा शुरू से अंत तक खुद ही नियंत्रित किया।
अमरिंदर सिंह की रणनीति के केंद्र में था बेअदबी का मामला। वास्तव में बेअदबी का मुद्दा तो उसी समय जीवंत हो गया था जब प्रचार के मैदान में पहले कूद पड़े अकाली दल ने नशे का मुद्दा उठाने की कोशिश में कैप्टन अमरिंदर पर गुटका साहिब की कथित रूप से झूठी सौगंध खाकर बेअदबी करने का आरोप जड़ा था। समय बीतते-बीतते नशे का मुद्दा तो पीछे छूट गया, लेकिन बेअदबी का मसला कांग्रेस ने लपक कर उलटा इसे ही अकालियों के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बना लिया।
चार वर्ष पहले अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान प्रदेश में हुई श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं को अकाली दल सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल और उनके पारिवारिक सदस्यों की अति राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का नतीजा बताकर अपना अभियान शुरू करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेअदबी को इस कदर मुद्दा बनाया कि चुनावी दौर के अंतिम दिन तो सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर से लेकर बिक्रम मजीठिया तक सार्वजानिक तौर पर अपने परिवार, अपने बच्चों की सौगंध तक खाकर तमाम आरोपों को नकारने में जुटे दिखाई दिए।
दरअसल 2017 के विधानसभा चुनावों में बेअदबी के इसी मुद्दे पर सत्ता में आई कांग्रेस ने एक तय रणनीति के तहत बेअदबी को लोकसभा चुनाव में भी एक बार फिर इस तरह ढाल बनाकर पेश किया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैम पित्रोदा द्वारा 1984 के सिख दंगों को लेकर दिया अत्यंत विवादित बयान भी कांग्रेस के लिए कुछ खास मुश्किल नहीं पैदा कर सका। 84 के दंगों से जुड़े हर विषय, हर विवाद में अपने लिए राजनीतिक जमीन और संजीवनी तलाशने वाले अकाली दल को अपना परंपरागत आक्रामक रवैया त्याग रक्षात्मक होना पड़ा।
शुरुआती दौर से ही यह भांपते हुए कि कांग्रेस के लिए यह बेअदबी का मुद्दा एक ऐसी बड़ी ढाल है जो राष्ट्रवाद जैसे राष्ट्रीय विषय या फिर प्रदेश सरकार की दो साल में सामने आईं विफलताओं से बचने में कारगर है, प्रदेश कांग्रेस ने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तक की चुनावी रैली न सिर्फ बरगाड़ी (जहां बेअदबी की घटना ने एक आंदोलन का रूप लिया था) में रखवाई, बल्कि वहीं उसी मंच से दोषियों को सजा दिलाने के अतिरिक्त एक यादगार बनाने की घोषणा भी कर डाली।
बेअदबी को लेकर सूबे में चुनावी दौर के दौरान सबसे अहम बात यह रही कि जहां कांग्रेस ने अपने प्रतिद्वंद्वी अकाली-भाजपा गठबंधन को इस पर हर दिन घेरे रखा, वहीं 19 मई को चुनाव से ठीक कुछ घंटे पहले यही मुद्दा कांग्रेस के दो स्टार प्रचारकों अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सीधे टकराव का कारण बन गया। बेअदबी को लेकर अमरिंदर की आक्रामकता से उनकी बढ़ती प्रसिद्धि को देख सिद्धू जो पूरे देश में मोदी पर ही निशाना साधते रहे, उन्हें भी पंजाब में बेअदबी पर ही प्रचार केंद्रित करना पड़ा।
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