कैंपसनामाः मास्टर साहब हैं कि बाबूगीरी से बाज नहीं आते...फारलो मारने की नई जुगाड़
सरकारी स्कूल गांव कराड़ी के एक गुरुजी आजकल चर्चा में हैं। अपनी लच्छेदार बातों से अधिकारियों को इम्प्रेस करने वाले मास्टर जी को दफ्तर स्टाफ ने नवाब साहब कहना शुरू कर दिया है।
जालंधर, जेएनएन। जिले में सप्ताह भर शिक्षकों और शैक्षणिक गतिविधियां की खबरें सुर्खियों में रहती है। इन्हीं में से कुछ चुनिंदा खबरों, चर्चाओं और कयासों को चुटीले और नुकीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं हमारे संवाददाता अंकित शर्मा। आइए डालते हैं एक नजर।
काम से भी नवाब
चाहे कुछ भी कर लो, कुछ मास्टर ऐसे हैं कि जो बाबूगीरी करने से बाज नहीं आते हैं। सरकारी स्कूल गांव कराड़ी में भी एक ऐसे ही गुरुजी हैं। जो स्कूल में अपनी ड्यूटी पर कम और अधिकारियों की चाकरी में ज्यादा नजर आते हैं। ड्यूटी के वक्त अधिकारियों की जी हजूरी करने वाले इन महोदय से अब दफ्तरों का स्टाफ भी आजिज आ चुका है और उन्होंने इनका नामकरण ही कर दिया है। अपनी लच्छेदार बातों से अधिकारियों को इम्प्रेस करने में जुटे रहने वाले मास्टर जी को दफ्तर स्टाफ ने 'नवाब साहब' कहना शुरू कर दिया है। दरअसल, इसमें मास्टर जी की भी कोई गलती नहीं है। अधिकारियों ने विभाग के हर प्रकार के समारोहों को सफल बनाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप रखी है। जब खुदा हुस्न देता है तो नजाकत खुद ब खुद आ ही जाती है। अब समारोह ही करवाने हैं तो शायरी के साथ-साथ नवाबों जैसी हरकतें मास्टर जी में भी आई हैं। लेकिन आगे मास्टर जी को यह भी समझ लेना चाहिए कि रखो चाहे जितने भी फूंक-फूंक के कदम पर जवानी बल खा ही जाती है।
डंडे का फंडा
पिछले दिनों गुरु गोबिंद सिंह स्टेडियम में युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए स्पार्क मेला करवाया गया। निजी कंपनियों के संयुक्त कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सरकार ने प्रशासन को आदेश दिए। अब प्रशासन का तो काम ही सरकार के आदेश पर डंडा चलाना होता है। डंडे का सीधा फंडा, ऊपर से आता है नीचे वाले पर चलता है। प्रशासन ने भी ऐसा ही किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सरकारी स्कूलों के प्रमुखों की जिम्मेदारी तय कर दी। स्कूल प्रमुखों ने भी डंडा अध्यापकों पर चला दिया कि अपना भविष्य बचाना है तो युवाओं के भविष्य के कार्यक्रम को सफल बनाना है। अध्यापक भी आदेश मिलते ही कार्यक्रम में जी-जान से जुट गए। सारा कार्यक्रम सफलता पूर्वक निपट गया तो प्रशासन से लेकर शिक्षा विभाग को याद आया कि वह कार्यक्रम में पढ़ो पंजाब, पढ़ाओ पंजाब का स्टाल लगाना तो भूल ही गए। कार्यक्रम में अमला तो सारा सरकारी झोंक दिया पर सरकार का अपना वहां कोई स्टाल नहीं था।
बदले-बदले से जनाब
शिक्षा विभाग में एक प्रमुख पद पर आसीन अधिकारी से कर्मचारी कुछ खुश नहीं है। इन साहब को विभाग के प्रमुख फैसले लेने के भी अधिकार दिए गए हैं। महोदय की जिले में दूसरी पारी है, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि इस बार जनाब का मिजाज कुछ बदला-बदला सा है। उन्होंने जी हजूरी की आदत डाल ली है। दफ्तर के बाहर धूप में चाय की चुस्कियां ले रहे मुलाजिम आपस में फुसफुसा रहे थे कि नवें साल च कुछ नई बदलेया, जे कुझ बदलेया ए तां जनाब दा स्टाइल। कई सालां तक साहब ऐत्थे ही रहे, ते ऐत्थे ही साडे वड्डे साहब बन गए। सरकार बदली तां ओह वी चले गए। किसे तरां उहनां ने जुगाड़ ला के अफसरी तां वापिस लै लई। पर जदों दे साहब वापस आए ने ओह आपणो नाल जी हजूरी दियां आदतां भी लै आए ने। कर्मचारियां दे नाल भी रुक्खे-रुक्खे जहे रैहंदे ने। पता नई की डर उहनां नूं सतांदा ए।
मास्टरां दी फरलो मारने की नई जुगाड़
फरलो मारने वाले मास्टरों की अब खैर नहीं है। स्कूल से गैरहाजिर रहने वाले मास्टरों पर नकेल के लिए सरकार ने पूरे बंदोबस्त कर दिए हैं। हाजिरी के लिए स्कूलों में बायोमीटिक मशीनें लगने जा रही हैं। लेकिन फरलो मारने वाले भी कहां कम हैं। उन्होंने भी अभी से इसके तोड़ निकालने शुरू कर दिए हैं। कई अध्यापक तो इसे नई बीमारी का नाम देकर इसके माहिरों से भी राय ले रहे हैं। उसी बीच छन के सूचना आई है कि माहिरों ने सलाह दी है कि स्कूल में यदि दो अध्यापक हैं तो एक-दूसरे के खाते में एक फिंगर अपनी और दूसरी साथी अध्यापक की स्कैन करवा लें। दोनों में से जो भी स्कूल में रहेगा वह एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से साथी अध्यापक की हाजिरी लगा सकता है।
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