मेहनत, इमानदारी और नई तकनीक के इस्तेमाल से उद्योगपति राजेश जैन ने हासिल की सफलता
Make Small Strong Jalandhar एनवीआर ग्रुप के राजेश जैन ने कोरोना काल में ग्राहकों के साथ फोन कॉल फेसबुक पेज इंस्टाग्राम व अन्य डिजिटल माध्यम से तालमेल बनाए रखा। लगातार संवाद से विश्वास बना रहा। फिर अनलाक प्रक्रिया शुरू होते ही ग्राहकों की आमद शुरू हो गई।
जालंधर, जेएनएन। परिवर्तन संसार का नियम है। यह कारोबार पर भी लागू है। अगर समय रहते इंसान खुद के साथ-साथ अपने व्यवसाय में परिवर्तन नहीं करता तो उसका निश्चित रूप से पीछे रह जाना तय है। किसी भी काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिए उसमें रमना पड़ता है। इसमें मेहनत, ईमानदारी और समर्पण की भावना का होना जरूरी है। इन्हीं बातों को जीवन में अपनाकर उद्योगपति राजेश जैन ने चौक सूदां स्थित हार्डवेयर की दुकान से एनवीआर ग्रुप तक का सफर तय किया। एनवीआर ग्रुप से आज भी ग्राहक उसी अंदाज में खरीदारी करने आते हैं, जैसे 50 के दशक में चौक सूदां स्थित हार्डवेयर की दुकान से पर आते थे। समय के साथ कारोबार में परिवर्तन तथा ग्राहकों के साथ बेहतर संवाद व तालमेल का ही यह परिणाम है।
ग्रुप के संचालक राजेश जैन बताते हैं कि फर्श से अर्श तक पहुंचने में कई तरह की बाधाएं पेश आती हैं। अगर उन बाधाओं से इंसान हताश हो जाए तो असफलता तय है। अगर इन बाधाओं से सीख लेकर आगे बढ़ा जाए तो सफलता जरूर मिलती है। इसका अंदाजा लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद की कारोबार की स्थिति से सहज ही लगाया जा सकता है।
लाकडाउन में ग्राहकों के साथ संवाद के कारण नहीं हुई ज्यादा मुश्किल
राजेश जैन बताते हैं कि करोना काल के दौरान अधिकतर कारोबारियों ने लेबर के वेतन से लेकर कच्चे माल के भुगतान तक पर ब्रेक लगा दी थी। भुगतान एक दिन करना ही था, इसलिए उन्होंने हर भुगतान किया। साथ ही ग्राहकों के साथ फोन कॉल, फेसबुक पेज, इंस्टाग्राम व अन्य डिजिटल माध्यम से तालमेल बनाए रखा। यह तालमेल केवल कारोबार से संबंधित नहीं बल्कि ग्राहकों के निजी जीवन तथा उनके स्वास्थ्य को लेकर भी किया जाता रहा। उन्होंने कारोबार के साथ इसे नैतिक जिम्मेदारी माना। उन्हें इसके बेहतर परिणाम लॉकडाउन खुलते ही मिले। जिन फर्मों ने अनलॉक प्रक्रिया में केवल कैश पर माल देने का नियम बनाया था, उन्होंने भी एनवीआर को केवल एक फोन पर माल उपलब्ध करवाया। यही स्थिति ग्राहकों को माल बेचने की भी रही। लॉकडाउन से राहत मिलते ही ग्राहकों की आमद लगभग उसी तरह होने लगी जैसे सामान्य दिनों में हुआ करती थी।
पिता ने समाज की भलाई के साथ कारोबार की प्रेरणा दी
राजेश जैन बताते हैं कि कारोबार की जो सीख पिता संतोष कुमार जैन से हासिल की थी, वह आज भी प्रासंगिक है। पाकिस्तान के सियालकोट से विस्थापित होकर आए पिता संतोष कुमार जैन पहले मेरठ, जम्मू और फिर जालंधर आकर बसे। उन्हें कारोबार की अच्छी जानकारी थी। 50 के दशक में उन्होंने चौक सूदां में हार्डवेयर का कारोबार शुरू किया। तब जिले के आसपास भी लोग हार्डवेयर की खरीदारी यहीं से करते थे। पिता ने काम के प्रति समर्पण, जमकर मेहनत और कारोबार में ईमानदारी को सफलता का मूल मंत्र बताया था। उन्होंने समाज की भलाई के साथ कारोबार करने की प्रेरणा दी। पिता देर रात 2 बजे तक दुकान पर काम करते थे।
ग्राहकों की मांग के साथ कारोबार का दायरा बढ़ाया
पिता के साथ 1975 से दुकान पर हार्डवेयर का काम संभाल रहे राजेश जैन बताते हैं कि ग्राहकों की मांग के साथ कारोबार का दायरा बढ़ाया गया। इसमें आधुनिकता का योगदान भी अहम रहा। ग्राहक कई तरह के नए उत्पादों की मांग करने लगा। इनका निर्माण पंजाब ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों में भी नहीं होता था। आखिरकार नए उत्पादों के डिजाइन, उनके निर्माण, इनकी क्लाइंटेज से लेकर तमाम तरह का होमवर्क सोशल साइट्स से किया। धीरे धीरे इन उत्पादों के निर्माण पर खुद हाथ आजमाया। पिता की सीख, आधुनिकता तथा ग्राहकों के साथ बेहतर तालमेल ने यहां पर भी सफलता उनकी झोली में डाली।
लाकडाउन में हर मुश्किल पार की
वह बताते है कि 45 वर्ष के कारोबारी कैरियर में यह पहला अवसर था जब लॉकडाउन के बीच लेबर से लेकर मालिक तक को घर की चारदीवारी में रहना पड़ा। लेबर के सामने रोटी का जुगाड़ करने की चुनौती थी जबकि उनके सामने कच्चे माल के प्रदाताओं को भुगतान, लेबर को वेतन की अदायगी देकर साथ जुड़े रहने, आर्डर का भुगतान करने और कारोबार को पटरी पर लाने सहित कई तरह की चुनौतियां थीं। प्रतिस्पर्धा के दौर में पहले से कम मार्जिन पर कारोबार करते हुए नए सिरे से पैठ जमाना अपने आप में किसी चुनौती से कम ना था। वह लॉकडाउन में सभी के साथ संपर्क बनाए रखकर तमाम तरह की चुनौतियां का सहजता के मुकाबला करते हुए फिर से नए आयाम छूने को तैयार हैं।