Independence Day 2022: जालंधर में जन्मे बंता सिंह संघवाल ने गांव-गांव में बोए क्रांति के बीज, ट्रेन लूट कर 70 किलोमीटर तक भागे थे पैदल
Independence Day 2022 अंग्रेजों का सामना करने के लिए क्रांतिकारियों को हथियारों की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर 12 जून 1915 को जालंधर के बल्लां पुल के पास हथियार लेकर जा रही ट्रेन को लूट लिया। इसके बाद कई पुलिसकर्मी उनके पीछे लग गए।
प्रियंका सिंह, जालंधर। बंता सिंह संघवाल आजादी के संग्राम में वह नाम है, जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध पंचायत का गठन किया। इसकी मदद से उन्होंने गांव-गांव में क्रांतिकारी खड़े कर दिए। जालंधर के संघवाल गांव में 1890 को पिता बूटा सिंह और माता गुजरी के घर जन्मे बंता सिंह का नाम पूरा नाम बलवंत सिंह था।
समृद्ध परिवार से संबंध रखने वाले बंता सिंह को आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा। वहां से क्रांतिकारी बनकर जब वह 1913 में भारत लौटे और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू की। उन्होंने इसकी शुरुआत अपने गांव संघवाल से ही की। उन्होंने लोगों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।
लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए बच्चों के लिए स्कूल व अस्पताल का निर्माण करवाया। गदरी साहित्य छापने को प्रिंटिंग प्रेस भी लगाई। कपूरथला असलहाखाने में हमला करके हवलदार भगवान सिंह को भी इस मुहिम में शामिल कर लिया। इसके बाद उन्होंने पंजाब के विभिन्न शहरों और लाहौर तक गदर मुहिम का प्रचार शुरू किया। गदर साहित्य बांटने पर अंग्रेजों ने उन्हें कई बार पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे हर बार नाकाम रहे। बंता सिंह के नाम से अंग्रेज कांपते थे।
एक बार लाहौर के अनारकली बाजार में एक थानेदार को उन पर क्रांतिकारी होने का शक हुआ। वह उनकी तलाशी लेने लगा, लेकिन बंता सिंह ने उस पर गोली चला दी और भाग निकले। कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने उनके एक साथी को पकड़ लिया गया। जब उन्हें पता चला कि उसकी गिरफ्तारी में नंगल कलां होशियारपुर टोडी के जैलदार चंदा सिंह का शामिल है तो बंता ने उसकी हत्या कर दी। 26 अप्रैल, 1915 को 82 क्रांतिकारियों पर पहला केस दर्ज हुआ और बंता सिंह को फरार घोषित कर दिया गया।
ट्रेन लूट कर 70 किलोमीटर पैदल भागे
अंग्रेजों का सामना करने के लिए क्रांतिकारियों को हथियारों की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर 12 जून, 1915 को जालंधर के बल्लां पुल के पास हथियार लेकर जा रही ट्रेन को लूट लिया। इसके बाद कई पुलिसकर्मी उनके पीछे लग गए। पैदल भागते हुए यह 70 किलोमीटर दूर अपने रिश्तेदार के घर जा पहुंचे। उनके पैर पूरी तरह से जख्मी हो गए, खून बहने लगा, लेकिन वह रुके नहीं। लहू लगातार बहता रहा, लेकिन वह रुके नहीं। 25 जून, 1915 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अंग्रेजों को देखकर उन्होंने हंसते हुए कहा, सामने से तो कभी पकड़ नहीं पाए, अब चुपके से वार किया।’ गदर लहर के हीरो बंता सिंह संघवाल तब ऐसे पहले क्रांतिकारी बने, जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने मौत की सजा सुनाई गई।फांसी की सजा से बंता सिंह जरा भी मायूस नहीं हुए। बल्कि इस दौरान डेढ़ माह में उनका वजन करीब पांच किलो (साढ़े 11 पौंड) तक बढ़ गया। अंग्रेज भी यह देखकर काफी हैरान थे। 1994 में जालंधर के पठानकोट बाइपास चौक का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया। वहां उनका बुत भी लगा है।
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