यह है जालंधरः बाबा शेख फरीद ने 40 दिन तक की थी इमाम नासिर में इबादत Jalandhar News
बाबा शेख फरीद को बहुत चमत्कारी एवं दीन दुनिया से प्यार करने वाला फकीर माना जाता था। उनकी मजार मस्जिद बन जाने के बाद भी सभी धर्मों के लिए सम्मानीय है।
जालंधर, जेएनएन। इस्लाम धर्म में पीरों-फकीरों को बहुत आदर दिया जाता है। मध्य काल में जालंधर नगर के बाहर मुस्लिम बस्तियों का निर्माण हो रहा था। तब देश पर सुल्तानों का शासन था। उन्हीं दिनों जालंधर की चारदीवारी के भीतर फकीरों के आने का रास्ता खुला । यह बात चौदहवीं शताब्दी के अंतिम काल की कही जाती है। तब इमाम नासिर दरगाह के चारों तरफ सपाट मैदान थे। यहां बाबा शेख फरीद के 40 (चालीस) रोज तक ठहर कर इबादत करने की बात भी कही जाती है। इमाम नासिर के बारे में भी कई जनश्रुतियां मिलती हैं। सुन्नी समाज में शेख फरीद को बहुत चमत्कारी एवं दीन दुनिया से प्यार करने वाला फकीर माना जाता था। उनकी मजार मस्जिद बन जाने के बाद भी सभी धर्मों के लिए सम्मानीय है।
कव्वाल लोग यहां आकर अपनी हाजिरी लगाया करते थे। अजीब बात यह है कि इस्लाम धर्म में मजारों के लिए कोई पूजा का स्थान नहीं। जैसे सिख धर्म में कहा जाता है कि मढिय़ां पूजन ऊत। फिर भी कई दरगाहों और मजारों पर लोगों का चिरागों के लिए तेल चढ़ाना, चादर चढ़ाना और फूल चढ़ाना जारी है। अब इस मस्जिद के चारों तरफ बहुत भीड़-भाड़ वाले बाजार बन चुके हैं।
अमीर खुसरो की तरह आए थे किसी मुस्लिम देश से
हजरत इमाम नासिर के बारे में कहा जाता है कि यह अमीर खुसरो की तरह किसी मुस्लिम देश से यहां आए थे। यहां आकर उन्होंने मुसलमानों को कुरान के अनुसार चलने की शिक्षा दी। समय के साथ-साथ इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रत्येक जुम्मा (शुक्रवार) और ईद के रोज जब यह नमाजियों के मुखातिब होते तो धारावाह सरल भाषा में इंसानियत और प्रेम का संदेश देते हुए कुरान में दीं गई शिक्षाओं के बारे में बताते और उसी के अनुसार चलने को कहते। विभाजन के समय भी जब यहां के मुसलमान पलायन करके पाकिस्तान चले गए, तब हिंदू समाज ने इमाम नासिर की पवित्रता और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया। इमाम नासिर के प्रवेश द्वार के मीनार बहुत ऊंचे और उनके मध्य एक घड़ी भी लगा दी गई थी, जो समय का ज्ञान कराती रही। बाबा शेख फरीद का आगमन भी इसीलिए इस दरगाह पर संभव हो सका, क्योंकि इमाम नासिर ने बाबा फरीद की तरह ही मानवता का संदेश सबको दिया।
इस मज़ार के बारे में कुछ इतिहासकार कहते हैं कि यहीं कभी जलंधरी नाथ की समाधि भी थी, परंतु अधिकतर इतिहासकार ऐसा नहीं मानते। इसे लेकर अभी भी संशय बरकरार है। यह दरगाह सात शताब्दी पुरानी मानी जाती है।
(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी- लेखक शहर की जानी-मानी शख्सियत और जानकार हैं)
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