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बात-बेबाक... पंजाब में बिजली भी गुल और मंत्री भी

चर्चा है कि जब अमरिंदर के यह दूत हाईकमान द्वारा सिद्धू के खिलाफ कार्रवाई करने में ढील को लेकर नाराजगी जता रहे थे तो हाईकमान के विश्वस्त ने ऐसी बात कह दी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 09 Jul 2019 04:15 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jul 2019 09:02 PM (IST)
बात-बेबाक... पंजाब में बिजली भी गुल और मंत्री भी
बात-बेबाक... पंजाब में बिजली भी गुल और मंत्री भी

जालंधर [अमित शर्मा]। प्रदेश की कांग्रेस सरकार में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धू के बीच जारी वर्चस्व की लड़ाई अब किसी से छिपी नहीं है, दिल्ली दरबार से भी नहीं। अमरिंदर सिंह और सिद्धू द्वारा दिल्ली दरबार में अपनी-अपनी हाजिरी लगाने के बाद अब पिछले सप्ताह प्रदेश सरकार के तीन कैबिनेट मंत्री सिद्धू के खिलाफ एक पुलिंदा लेकर इसी दरबार में पहुंचे।

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अमरिंदर के इन ‘सिपहसलारों’ की वरिष्ठ नेता अहमद पटेल से गुफ्तगू का क्या नतीजा निकला, यह तो अभी तक किसी को भी नहीं मालूम, शायद सिद्धू और अमरिंदर को भी नहीं। लेकिन हां, इतना जरूर है कि पंजाबियों का दर्द एक बार कांग्रेस हाईकमान के कानों तक जरूर पहुंच गया। चर्चा है कि जब अमरिंदर के यह ‘दूत’ हाईकमान द्वारा सिद्धू के खिलाफ कार्रवाई करने में ढील को लेकर नाराजगी जता रहे थे तो दस जनपथ के विश्वसनीय प्रतिनिधि ने गुफ्तगू का समापन यह कहते हुए कर डाला कि ‘अब तक पंजाब वासियों को बिजली गुल रहने की शिकायत करते तो सुना था, लेकिन अबकी बार तो शिकायत बिजली मंत्री के ही गुल होने की है’।

खैर, यह तो पटेल साहब ही जानें कि उन्होंने यह तंज अमरिंदर सिंह सरकार की कारगुजारी पर कसा या फिर सिद्धू पर। दस जनपथ की मेहरबानी से पंजाब कांग्रेस में बढ़ती बौखलाहट (नामोशी) की गंभीरता को मापा, लेकिन उनके इस तंज (न बिजली और न बिजली मंत्री) ने वास्तव में सूबे के पावर सेक्टर का हाल छह शब्दों में जरूर बयान कर दिया। आधिकारिक तौर पर तो पंजाब बीती बादल सरकार के दौरान ही पावर सरप्लस स्टेट घोषित कर दिया गया था। पावर सरप्लस स्टेट का टैग तो अब भी सरकार के साथ है लेकिन पिछले दो सालों में पावर सेक्टर में हालात कुछ ऐसे बदले कि राज्य में बत्ती आज भी गुल रहती है।

वक्त-बेवक्त लग रहे अघोषित बिजली कटों से जूझते लोग सोशल मीडिया पर सरकार के साथ-साथ बिजली विभाग को कोसते दिख रहे हैं। गांव में किसान और शहरों में उद्योगपति इन कटों के खिलाफ सड़कों पर आवाज बुलंद करने के लिए संघर्षरत हैं। संगरूर , मुक्तसर, मानसा और फिरोजपुर जैसे कृषि प्रधान जिलों में बिजली विभाग के अफसरों और गांववासियों के बीच झड़पें और विभाग के कर्मचारियों को बंधक तक बनाए जाने की घटनाएं अख़बारों की सुर्खियां बन रही हैं।

हाल ही में लोकसभा चुनावों के नतीजों के तुरंत बाद सिद्धू को ‘नॉन परफार्मिंग’ मंत्री करार देते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग छीन उन्हें बिजली मंत्रालय का जिम्मा सौंपा। इस बदलाव का खुल कर विरोध कर रहे सिद्धू ने विभाग का कार्यभार संभालने से इंकार कर दिया। बेशक उनके इंकार के बाद मुख्यमंत्री ने कुछ आकस्मिक मसलों को लेकर स्वयं विभाग की बैठकें ली हों लेकिन लगभग डेढ़ माह से बिना मंत्री के इस विभाग में केवल बिजली कटौती को लेकर आधिकारिक तौर पर रोजाना तीस हजार शिकायतें दर्ज हो रही हैं।

इनमें से बमुश्किल एक चौथाई शिकायतों का ही निपटारा हो पा रहा है। बाकी शिकायतों का हश्र कुछ वैसा ही है जैसा प्रदेश में वायरल हुए उस वीडियो में दिखता है जिसमें गुरदासपुर के एक गांव में दो दिन से बिजली गुल होने की शिकायत का निवारण करने पहुंची एक विभागीय टीम की मांग के अनुसार उनका ‘शुकराना ’ अदा करने के लिए सभी गांववासी 50-50 रुपये इकट्ठा करते हैं और वीडियो बना रहे शख्स को चुनौती देकर कहते हैं कि जाओ जिस मंत्री को या जिस अफसर को शिकायत करनी है कर दो... यहां तो ऐसा ही होना है। होगा भी क्यों नहीं?

आखिर जिस विभाग का मंत्री ही डेढ़ महीने से ‘गुल’ हो वह विभाग ऐसी शर्मनाक घटनाओं से ‘गुलजार’ तो होगा ही। इसके साथ - साथ विभाग के उन तमाम नीतिगत मुद्दों, जिनका असर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभाग की कारगुजारी और फिर आमजन की समस्याओं पर पड़ता है, उन पर अंतिम फैसला लंबित होना भी स्वाभाविक है। अब बात चाहे रियायती दरों पर बिजली देने, ट्यूबवेल कनेक्शन कब और कितने जारी करने है जैसे नीतिगत फैसलों की हो या फिर प्रदेश के वित विभाग पर दवाब डाल पॉवरकॉम के हिस्से की सब्सिडी के 5000 करोड़ रूपये वसूलने की, ऐसे तमाम मसले मंत्री की गौरमौजूदगी में प्रदेश की जनता पर भारी पड़ रहे हैं।

यह बोझ जनता पर तब पड़ेगा जब पॉवरकॉम इस अदायगी को हमेशा की तरह बिजली की दरें बढ़ाकर कर सकता है। बहरहाल, मुख्यमंत्री इस बात से असमंजस में हैं कि सिद्धू विभाग संभालते हैं या नहीं या यह विभाग किसी अन्य को दे दिया जाए, हाईकमान असमंजस में है कि कोई कार्रवाई करे या न करे, अफसर असमंजस में हैं कि विभागीय कार्यों को लेकर क्या निर्णय लें...और जनता इस असमंजस में है कि .. अब अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा ! ...लेकिन सिद्धू तो बिजली की तरह फिलहाल गुल हैं।

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