जालंधर का आभार, विक्टर टूल्स ने दुनिया के कई देशों तक फैलाया कारोबार
Gems of Jalandhar अश्वनी विक्टर ने कहा कि आज हमारी कंपनी विक्टर टूल्स यूरोप मिडिल ईस्ट चीन व अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों में हमारे उत्पादों की सप्लाई कर रही है। हमने कभी भी उत्पादों की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया।
जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। मेरे दादा दूनी चंद का अखंडभारत के स्यालकोट में सोने का काम था। बंटवारे के बाद वह पिता सुखदेव राज के साथ जालंधर आ गए। पिता जी बताते हैं कि बंटवारे के बाद जिस समय पाकिस्तान से जालंधर शिफ्ट हुए थे तो उस समय उनके पास दो हजार रुपये होते थे। उसी से जालंधर आने के बाद पिता जी ने दादा जी के साथ मिलकर हैंड टूल्स बनाने का काम शुरू किया। सारा सामान पाकिस्तान में ही छूट गया था। बस कुछ कपड़े व जरूरी सामान के अलावा दो हजार रुपये ही पास में थे। अश्वनी विक्टर कहते हैं जालंधर का आभार है कि हमारा कारोबार तमाम देशों तक फैलाने में इस शहर ने हमेशा हमारा साथ दिया।
उन्हीं दो हजार से जालंधर में हैंड टूल्स का काम शुरू किया। आज हमारी कंपनी विक्टर टूल्स यूरोप, मिडिल ईस्ट, चीन व अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों में हमारे उत्पादों की सप्लाई कर रही है। हमने कभी भी उत्पादों की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। पिता जी को जब मैं मेहनत करते हुए देखता था तो शुरू से ही हमारे अंदर भी वही जज्बा बनता रहा।
मैंने पहली अप्रैैल 1979 से कंपनी में काम शुरू किया। मेरी स्कूलिंग जालंधर के साईं दास स्कूल व उसके बाद आगे की पढ़ाई डीएवी कालेज से हुई। पहले कंपनी चुनंदा उत्पाद ही तैयार करती थी। उत्पादों की गुुणवत्ता के दम पर हमने बाजार में अपनी जगह बनाई और आज हमारी कंपनी में 250 से ज्यादा हैंड टूल्स के उत्पाद तैयार होते हैं। पिता जी का सामाजिक दायरा काफी बड़ा था। उन्हीं के नक्शे-दकम पर मैं भी चलता रहा। जिंदगी में हमेशा एक बात ध्यान रखी कि व्यापार से लेकर उद्योग जगत व सामाजिक तौर पर पिता जी ने जो जमीन तैयार की हमें उसे और आगे बढ़ाना है। इसी लक्ष्य के साथ मैं आज भी काम कर रहा हूं।
संयुक्त परिवार के बिना तरक्की संभव नहीं
संयुक्त परिवार के बिना स्थाई तरक्की संभव नहीं है। भले ही लोग यह कहते हों कि उन्हें परिवार से अलग होकर रहने में मजा आता है, लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरा अऩुभव है कि अगर आपका परिवार संयुक्त परििवार है तो आप अपने काम पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं। संयुक्त परिवार में रहने का मजा ही कुछ और है। सभी एक दूसरे का हाथ थाम कर आगे निकलते हैं। परिवार का हर सदस्य अपने-अपने रोल में रहता है। उससे तमाम कठिनाइयों का सामना आप एकजुट होकर कर लेते हैं। अकेले आप कई बार मुसीबतों से घिर पर कमजोर पड़ जाते हैं।
पत्नी ने साथ देकर यहां तक पहुंचाया
अश्वनी कहते हैं कि मेरी पत्नी किरन ने मुझे यहां तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। संयुक्त परिवार में होने के साथ-साथ पत्नी ने हमेशा मेरा साथ दिया और मैं शुरुआती दौर में बिजनेस टूर पर रहता था तो परिवार को संभालने का काम पत्नी करती थी। यही मेरी शक्ति है। इसी के दम पर मैने यह मुकाम हासिल किया और आगे बढ़ता रहा। पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मेरे साथ मेरी पत्नी का भी अहम योगदान है।
मां से हमेशा मिलती रही प्रेरणा
मेरी मां कमला रानी ने हमेशा प्रेरणा दी और कहती रही कि मेहनत और ईमानदारी से काम करते रहो तरक्की भगवान देकर ही रहेंगे। मैने अपनी जिंदगी में हमेशा उन्हें फालो किया। पिता सुखदेव राज जी से मैने संघर्ष करना सीखा तो मां से परिवार नामक संस्था को और मजबूत करने का गुण सीखा। जब भी परेशान हुआ तो मैं से उनकी सलाह जरूर ली।
युवा अपने लक्ष्य पर काम करें
अश्वनी कहते हैं कि आज के दौर में युवा बहुत जल्दी भ्रमित हो रहे हैं। उनके अंदर ऊर्जा का भंडार है। उन्हें जरूरत है कि वह अपने लक्ष्य पर फोकस रखें। वह दिन दूर नहीं होगा कि जब उन्हें उनकी मेहनत का फल न मिले। वह थोड़ा सब्र करना सीखें। सब्र व फोकस करके काम करने के बाद सार्थक परिणाम मिलना तय होता है।
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