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अंदर की बात : SDM दफ्तर में क्लर्क के चर्चे, अधिकारी व साथी भी आए लपेटे में

भ्रष्टाचार मामले में आरोपित क्लर्क ने लिस्ट में शिक्षक का नाम काट अपना लिख दिया। एसडीएम ने उसे सम्मानित तो कर दिया लेकिन घंटे बाद सस्पेंड कर डाला।

By Vikas_KumarEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 08:43 AM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 08:43 AM (IST)
अंदर की बात : SDM दफ्तर में क्लर्क के चर्चे, अधिकारी व साथी भी आए लपेटे में
अंदर की बात : SDM दफ्तर में क्लर्क के चर्चे, अधिकारी व साथी भी आए लपेटे में

जालंधर, [मनीष शर्मा]। सरकारी कर्मचारी सिर्फ पब्लिक को ही चालाकी नहीं दिखाते, कभी-कभार साथी और अधिकारियों को भी लपेट लेते हैं। यकीं न हो तो ये पढि़ए... नकोदर एसडीएम दफ्तर के जूनियर सहायक पर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं। जूनियर सहायक के इस कारनामे के विभाग में पूरे चर्चे हैं। इस चक्कर में उसकी ढाई साल से प्रमोशन तक अटकी है। इसके बावजूद स्वतंत्रता दिवस समारोह में अचानक सम्मानित हो गए। हुआ यूं कि सम्मानित तो एक शिक्षक को होना था लेकिन जो कर्मचारी नाम की घोषणा कर रहा था, उससे लिस्ट लेकर इसने शिक्षक का नाम काटकर अपना लिख दिया। यकायक देख एसडीएम ने सम्मानित किया और फिर घंटे बाद सस्पेंड कर डाला। अपनी करतूत बताए बिना डीसी दफ्तर कर्मचारी यूनियन को साथ ले लिया कि कहा सस्पेंड करना था तो सम्मानित क्यों किया? प्रदर्शन शुरू हुआ लेकिन जब सबको हकीकत पता चली तो यूनियन भी शर्मसार होकर किनारे हो गई।

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यहां अस्पताल ही दे रहा जख्म

अस्पताल में हर जख्म का इलाज होता है, लेकिन ईएसआइसी अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण अब यह अस्पताल ही जख्म देने लगा है। सिविल अस्पताल कोरोना के लिए आरक्षित है और बाकी सब इलाज की सुविधा ईएसआइसी में तब्दील की जा चुकी हैं। सामान्य बीमारियों से लेकर मारपीट के केस भी ईसएसआइसी अस्पताल में आ रहे हैं। एक हफ्ते में दो बार ऐसा हो चुका है कि मारपीट के बाद जख्मी होकर आए दो पक्ष अस्पताल में ही भिड़ पड़े। जो पहले से जख्मी थे, उनका जख्म गहरा गया और जो जख्मियों को इलाज के लिए लाए थे, वो भी जख्मी होकर इलाज के लिए बेड पर लेटने को मजबूर हो गए। विभाग ने सिविल का कामकाज तो यहां तब्दील कर दिया, लेकिन चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था वहीं रह गई। अस्पताल में पड़ा जख्मी भी सोचता है कि उसका जख्म ठीक होगा या फिर कहीं और गहरा तो नहीं हो जाएगा।

खाकी व कोरोना की आंखमिचौली

अक्सर कहा जाता है कि पुलिस चाहे तो मंदिर के बाहर से चप्पल तक चोरी नहीं हो सकती। बड़े-बड़े अपराधी भी पुलिस से नहीं बच पाते, लेकिन कोरोना खाकी पर भारी पड़ रहा है। पुलिस कमिश्नरेट में पहले गेट पर तापमान की जांच, सैनिटाइजर इस्तेमाल व मास्क अनिवार्य किया गया, फिर भी कमिश्नर दफ्तर का कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव आ गया। इसके बाद एक गेट बंद कर दिया गया तो फिर कुछ और कर्मचारी संक्रमित हो गए। अब तो पुलिस ने लोगों के आने पर ही पाबंदी लगा दी है, पुलिस कमिश्नरेट अघोषित तरीके से सील है, इसके बावजूद खाकी में केस थम नहीं रहे हैं। शहर के चौराहों से लेकर थानों तक कोरोना खाकी को जकड़ रहा है। बीएमसी चौक पर खड़ा कर्मचारी बोला, '100 दे नेड़े मुलाजिम हो गए ने पॉजिटिव, नजर आवे तां ऐस करोने नूं वी बंदा बणा देइए, पर इसतों तां आप ही बचणा पैणा सारेयां नूं।'

सरकार मुकरी, लापरवाही ने गवाही दी

बात सिविल अस्पताल की है। यहां तैनात एक महिला अधिकारी को करीब दो महीने पहले बदल दिया गया था। इसका कारण ये था कि एक कोरोना पॉजिटिव महिला की मौत हो गई। नियमानुसार शव को पीपीई किट में पैक करके परिजनों को सौंपना होता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शव को सामान्य अवस्था में ही घरवालों को सौंप दिया गया। घर जाकर परिवार ने आखिरी किरया कर्म किए। अंतिम संस्कार में पूरा गांव शामिल हुआ। इससे कई लोग कोरोना वायरस का शिकार बन गए। लापरवाही दिखी तो सरकार ने अधिकारी को बदल दिया। नया अधिकारी आया, दो महीने सब ठीकठाक चलता रहा। जब सब कुछ सामान्य होने लगा तो सरकार ने गुपचुप तरीके से फिर अधिकारी को वापस भेज दिया। अभी कुछेक दिन ही हुए थे कि सिविल अस्पताल से एक बच्चा चोरी हो गया। अधिकारी ने सिविल अस्पताल के प्रबंधन पर ध्यान न दिया तो लापरवाही गवाही देती रहेगी।


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