जालंधर में बायो माइनिंग प्रोजेक्ट की लागत में 30 करोड़ के अंतर, पार्षद समराय ने उठाई जांच की मांग
जालंधर में बायो माइनिंग प्रोजेक्ट करीब 72 करोड़ रुपए का था लेकिन बाद में इसमें बदलाव करके इसे 41 करोड़ का किया गया है। पार्षद जगदीश समराय ने कहा कि प्रोजेक्ट की कीमत में भारी अतंर जांच का विषय है।
जालंधर, जेएनएन। पार्षद जगदीश समराय ने स्मार्ट सिटी कंपनी के बायो माइनिंग प्रोजेक्ट की लागत में 31 करोड़ रुपए के अंतर पर सवाल खड़े किए हैं। समराय ने यह सवाल खड़ा किया है कि पहले यह प्रोजेक्ट करीब 72 करोड़ रुपए का था लेकिन बाद में इसमें बदलाव करके इसे 41 करोड़ का किया गया है। उनके एतराज के बाद ही पुराने प्रोजेक्ट को रोककर नया प्रोजेक्ट बनाया गया है। पार्षद ने कहा कि यह जांच जरूरी है कि पुराने और नए प्रोजेक्ट में 31 करोड़ रुपए का अंतर कैसे आया है। वरियाणा डंपर पर करीब आठ लाख क्यूबिक टन कूड़े को खत्म करने के लिए बायो माइनिंग प्रोजेक्ट के 41 करोड रुपए के टेंडर को मंजूरी मिल चुकी है।
पार्षद जगदीश समराय ने कहा कि वह इस नए प्रोजेक्ट का स्वागत करता हूं,क्योंकि शहर के लिए इस डंप को खत्म करने की बहुत सख्त जरूरत है और इस टेंडर की मैं पूरी जानकारी लेना चाहता हूं, जो अभी तक मुझे नहीं मिल रही है।पहले इस टेंडर को जनवरी महीने में लगाया गया था, जिस टेंडर की रकम 60 करोड थी, जीएसटी पाकर के इसकी कीमत 71/ 72 करोड बन रही थी, लेकिन इसकी कीमत ज्यादा होने के कारण मेरे हस्तक्षेप करने से इस टेंडर को पहले होल्ड और उसके बाद इस टेंडर को रद कर दिया गया था। अब दोबारा इस टेंडर को लगाया जा रहा है, जिसकी कीमत बहुत कम कर दी गई है, लेकिन संदेह हो रहा है कि टेंडर की इतनी ज्यादा कैसे घट गई। 10 महीने से कूड़ा भी बड़ा है और फर्क भी 30 करोड का है। इसका स्पष्टीकरण दिया जाए।
समराय ने कहा कि ताजा कूड़े को बिना प्रोसेसिंग किए उसे डंप पर नहीं ले जाया जा सकता। कूड़ा और पुराना कुड़े को जो पहले से डंप है, उसको प्रोसेसिंग करवाने की तकनीक अलग-अलग है। मैं चाहता हूं कि जनता के पैसे का दुरुपयोग न हो, इसलिए मैं इस बारे पूरी तरह से स्पष्टीकरण कारपोरेशन के उच्च अधिकारियों से लेना चाहता हूं।