एक कमरे में रखे थे 22 लोग, न बैठ पाते न सो पाते
इराक से भारत सरकार के प्रयास से वापस लौटे युवकों ने बताया कि कंपनी ने उन्हें यह भरोसा दिया था कि जाते ही उनको नौकरी मिल जाएगी और उनके रहने व खाने का प्रबंध कंपनी की तरफ से किया जाएगा।
संवाद सहयोगी, फिल्लौर/अपरा
इराक से भारत सरकार के प्रयास से वापस लौटे युवकों ने बताया कि कंपनी ने उन्हें यह भरोसा दिया था कि जाते ही उनको नौकरी मिल जाएगी और उनके रहने व खाने का प्रबंध कंपनी की तरफ से किया जाएगा। लेकिन वहां जाने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ। कई दिनों बाद उन्हें काम दिया गया लेकिन न ही खाना और रहने के लिए जगह। पांच दिन तक बिना खाने के रहने के बाद अमृतसर के पहलवान नामक व्यक्ति ने उन्हें खाना उपलब्ध करवाया और रहने का आश्रय दिया। एक छोटे से कमरे में 22 युवाओं को रखा गया था। न वह पूरी तरह से उस कमरे में सो पाते थे और न ही लेट सकते थे। दो फीट जगह भी एक युवक को लेटने के लिए मुश्किल से नसीब हो पाती थी।
घर लौटे इराक से लौटने के बाद रणदीप कुमार पुत्र राम लुभाया, सौरव कुमार पुत्र गुरविदर, संदीप कुमार पुत्र जोगिन्दर, अमनदीप पुत्र सतनाम, कमलजीत पुत्र सोहन लाल फगवाड़ा प्रभजोत सिंह पुत्र सरबजीत सिंह भुलत्थ ने बताया कि उन्हें उसी व्यक्ति ने एक वकील से मिलवाया और वकील ने 4700 डॉलर लेकर कहा कि वह उनके मामले की पैरवी करेगा। पैसे लेने के बाद भी उन्हें वहां रहने के लिए कार्ड बना कर नहीं दिया गया जिसके लिए उन्हें 20 डालर जुर्माना देना पड़ता था। सभी युवकों ने करीब 1500 डालर के हिसाब से जुर्माना दिया। उसके बाद मामला अदालत में गया और अदालत ने उक्त वकील का लाइसेंस रद्द कर उसके ऊपर करीब 12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इतनी जिल्लत झेलने के बाद वे किसी तरह से सारी खबर अपने परिजनों तक पहुंचा पाए जहां से उन्होंने बलदेव खैहरा के सहयोग से इराक से लौटने में उनकी मदद की। युवकों ने कहा कि अब वे किसी भी सूरत में विदेश नहीं जाएंगे। चाहे जो मर्जी हो जाए।
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