दोआबे के गांधी थे पंडित मूलराज शर्मा
जागरण संवाददाता, जांलधर : समाज की सेवा व देश की आजादी के लिए जीवन लगा देने वाले पंडित मूलराज को दोआब
जागरण संवाददाता, जांलधर : समाज की सेवा व देश की आजादी के लिए जीवन लगा देने वाले पंडित मूलराज को दोआबे का गांधी कहा जाता था। 31 जनवरी को अंतिम सांस लेने वाले पंडित जी शिक्षा ग्रहण करते हुए ही समाज सेवा के कार्यो में डट गए। इस दौरान वह लाला लाजपत राय व स्वामी सत्यानंद महाराज के संपर्क में आए। इसके साथ ही वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
जालंदर के गांव खानखाना में जन्मे पंडित मूलराज शर्मा की जवानी में ही जेल यात्रा शुरू हो गई। जीवन के महत्वपूर्ण आठ वर्ष जेल में गुजारने वाले पंडित मूलराज जब भी किसी जुर्म में सजा पूरी करते साथ ही आजादी के संग्राम में पूरी उर्जा के साथ शामिल हो जाते। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्याग्रह के दौरान जेल भरो अंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले पंडित जी ने अंग्रेजों के खिलाफ 50 के करीब जलसे किए। उनके साथी रहे तिलक राज के मुताबिक पंडित जी भारत छोड़ो आंदोलन में मियांवाली जेल में बंद रहे। उन्होंने जेल में ही तीन रंग के कपड़े एकत्रित करके तिरंगा लहरा दिया। इसके चलते पंडित जी को डंडा बेड़ी की जेल भुगतनी पड़ी। समाज सेवा के चलते उनका नाम राजा राम मोहन राय के नाम से जाना जाता रहा। लाला लाजपत राय की प्रेरणा से उन्होंने विधवा विवाह सहायक सभा की स्थापना की व लंबे समय तक इसके संचालक रहे। इस क्रम में उन्होंने तीन हजार से अधिक विधवाओं की शादी करवाई। इस दौरान विधवाओं को समाज में सम्मान बढ़ाया व नशाबंदी के खिलाफ मुहिम चलाई। इसके लिए पंडित जी ने लाडोवाली रोड पर विधवा भवन का निर्माण किया। इस रोड को पंडित मूलराज शर्मा मार्ग के नाम से जाना जाता है। बेहतर सेवाओं के चलते उन्हें पंजाब विधानसभा का सदस्य मनोनित किया गया था। वे कहा करते थे कि राजनीति बिना असूल के व कारोबार बिना नैतिकता के सबसे बड़ा पाप है। आज उनकी 35वीं पुण्यतिथि है।