होशियारपुर में इन महिलाओं ने तोड़ी मुसीबत की जंजीरे, चौका-चूल्हा करने वाले हाथ थाम रहे स्टेयरिंग
होशियारपुर की पचास से अधिक महिलाएं ई-रिक्शा चला रही। परिवार पर मुसीबत आई तो इन महिलाओं ने किसी के सामने हाथ फैलाने के बजाय खुद हिम्मत दिखाई और बच्चों की परवरिश करने की ठानी। आज वह अपने काम से बेहद खुश हैं।
होशियारपुर [हजारी लाल]। दो साल पहले मुसीबतों की जंजीरें तोड़ने के लिए बस्सी ख्वाजू की लिपिका वर्मा ने ई-रिक्शा की स्टेयरिंग थामा तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। लिपिका की मजबूरी थी, क्योंकि पति रवि वर्मा को दिल की बीमारी हो गई और डाक्टरों ने ई-रिक्शा चलाने से मना कर दिया था, लेकिन लिपिका ने हिम्मत नहीं हारी और खुद ई-रिक्शा चलाकर घर का गुजारा करने का सिलसिला जारी रखा।
आज लिपिका की प्रेरणा से पचास से ज्यादा महिलाओं ने ई-रिक्शा चलाकर अपनी जिंदगी को नई राह दी है। इनमें से ज्यादातर विधवा हैं। कुछ तलाकशुदा हैं। ये महिलाएं पहले आर्थिक तंगी से जूझती थीं, लेकिन इन्होंने अपने बुलंद हौसले से मुसीबत को मुट्ठी में कैद कर लिया है। हर रोज सात सौ से आठ सौ रुपये कमाकर जिंदगी खुशहाल बना ली है। समाज में मान-सम्मान भी बढ़ा है। इन महिलाओं के प्रयास से होशियारपुर पंजाब का पहला ऐसा शहर बना जहां इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं ई-रिक्शा चला रही हैं। उनको इस दिशा में बढ़ता देख कैबिनेट मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा ने मुफ्त में ई-रिक्शा भी मुहैया करवाया।
ऐसे बनती गई हर जरूरतमंद महिला 'लिपिका वर्मा'
डगाना कलां की परमिंदर कौर की कहानी भी लिपिका जैसी ही है। पति सुरिंदर कुमार की नौ साल पहले मौत से जिंदगी में अंधेरा छा गया। बेटे अमनदीप व रमनदीप की परवरिश की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। लोगों के घरों में सफाई शुरू की, लेकिन बमुश्किल से ढाई हजार रुपये ही मिलते थे, जिससे घर का गुजारा नहीं होता था। इसी बीच उसकी नजर ई-रिक्शा चलाने वाली लिपिका वर्मा पर पड़ी। खुद को घर से बाहर निकाला और ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। अब हर रोज अच्छे पैसे कमा लेती है और किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलाना पड़ता।
इन्होंने ने भी ली सीख
बस स्टैंड पर परमिंदर के साथ खड़ी बस्सी ख्वाजू की मधु अरोड़ा की कहानी बहुत दुखद है। नौ साल पहले पति नरेंद्र पाल की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। सिलाई का काम करके चार हजार रुपये ही कमा पाती थी। अब ई-रिक्शा चलाने से जिंदगी खुशहाल है। यही नहीं, कमालपुर की रहने वाली लीला देवी के पति चरणजीत की भी मौत हो चुकी है।
बेटी मीनू और बेटा आकाश की परवरिश लोगों के घरों में काम करके करती थीं। पैसे कम मिलने से बच्चों की इच्छाओं को दफन करना पड़ता लेकिन जब से ई-रिक्शा शुरू की, तब से कोई कमी नहीं। कमालपुर की तलाकशुदा अनु बताती हैं कि दो मासूम बच्चों की देखभाल दुकान पर काम करके करती थीं। तीन हजार रुपये मिलते थे। इससे गुजारा नहीं होता था, तब जाकर उन्होंने ई-रिक्शा चलाने की ठानी और खुद को अपने पैरों पर खड़ा किया।