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होशियारपुर की इन दो बेटियों ने बदल दी पिता की किस्मत, जमीन उगल रही सोना

होशियारपुर के हरियाना के गांव शहाबुद्दीन की सिमरन और प्रदीप ने यह धारण बदल दी कि बेटियों को खेती के काम से कोई वास्ता नहीं। दोनों बहनें ट्रैक्टर चलाने से लेकर बिजाई खाद डालने व पानी लगाने की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 04:26 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 09:54 AM (IST)
होशियारपुर की इन दो बेटियों ने बदल दी पिता की किस्मत, जमीन उगल रही सोना
खेतों में काम करतीं सिमरन और प्रदीप। जागरण

होशियारपुर [हजारी लाल]। कस्बा हरियाना का गांव शहाबुद्दीन। किसी जमाने में यहां लड़कियां घर की दहलीज से बाहर कदम नहीं रखती थीं। कुछ समय बदला तो लड़कियां स्कूल जरूर जाने लगीं, लेकिन खेती के काम से उनका कोई वास्ता नहीं था।

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इस गांव की दो बहनों ने बरसों से चली आ रही परंपरा को तोड़ खेतों में काम करने की ऐसी पहल की कि फसल के रूप में सोना उगलकर धरती भी इनके हौसले को सलाम करने लगी। छोटी सी उम्र में ही सिमरन और प्रदीप कौर पिता की ढाल बन गईं। दोनों के आदम्य साहस ने न केवल गांव की धारणा बदली, बल्कि गांव की किस्मत भी जाग उठी। अब गांव की बाकी बेटियां भी सशक्त होने की राह पर हैं। कुछ खेतों में काम करवाती हैं तो कुछ गांव से बाहर निकलकर विदेश में भी पढऩे गईं।

किसान दिलबाग सिंह ने बताया कि उनके पास कम जमीन होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति पर संकट के बादल छाए रहते थे। सिमरन और प्रदीप ने होश संभालने के बाद खेतों में जाकर काम करने की इच्छा जताई। आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से उन्होंने भी इजाजत दे दी। फिर क्या था। दोनों बहनों ने पहले ट्रैक्टर चलाना, फिर खेती के अन्य काम सीखे।

बेटियों के हौसले को देखते हुए दिलबाग ने करीबन दस किल्ले जमीन ठेके पर ले ली। अपनी बेटियों के साथ जमीन में गेहूं, धान, आलू और तरह-तरह की सब्जियां उगाते हैं। खेती के काम में बेटियां इस तरह से परिपक्व हो चुकी हैं कि बीज बोने से लेकर खाद डालने और पानी लगाने तक सबकी जानकारी है।

खेतों में दोनों ट्रैक्टर भी चलाती हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि खेती के कामों के साथ-साथ दोनों बहनें पढ़ाई कर रही हैं और उसमें भी अव्वल हैं। सिमरन कौर बारहवीं पास कर चुकी है और प्रदीप कौर 11वीं में पढ़ रही है। दोनों बहनें कहती हैं कि खेती करने में कोई हर्ज नहीं है। आज के जमाने में लड़के और लड़कियों में कोई फर्क नहीं है। धीरे-धीरे अन्य लड़कियां भी खेतों के कामों में आगे आने लगी हैं।

आत्मनिर्भर बनाना ही मकसद: पिता दिलबाग

पिता दिलबाग सिंह ने कहा कि उन्हें बेटियों पर फख्र है। इनके हौसले ने उनके कंधों का भार हल्का कर दिया। खेतों का काम बेटियां संभाल लेती हैं। मंडी में फसलों को बेचने का काम वह खुद संभाल लेते हैं। तीन साल से उन्हें बहुत सुकून मिल रहा है। गांव में बेटियों के कारण मान-सम्मान भी बढ़ा है।


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