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आस्था का केंद्र है मां इच्छरां का शिवालय

पंजाब व हिमाचल की सीमा पर स्थित पवित्र ब्यास नदी तट से मात्र 50 मीटर दूर और पौंग बांध के स्पिल वे के सामने मां इच्छरा का शिवालय श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 04:22 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 05:16 AM (IST)
आस्था का केंद्र है मां इच्छरां का शिवालय
आस्था का केंद्र है मां इच्छरां का शिवालय

सरोज बाला, दातारपुर

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पंजाब व हिमाचल की सीमा पर स्थित पवित्र ब्यास नदी तट से मात्र 50 मीटर दूर और पौंग बांध के स्पिल वे के सामने मां इच्छरा का शिवालय श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। हर साल लाखों श्रद्धालु मंदिर में नतमस्तक होने पहुंचते है। सावन माह व शिवरात्रि को मेले जैसे माहौल होता है। मान्यता है कि जो सच्चे मन से आता है उसकी सभी मनोकमानाएं पूरी होती हैं।

मंदिर का इतिहास

तलवाड़ा से सात किमी दूर स्थित मंदिर को लेकर कथा प्रचलित है कि यहां पूर्ण भक्त की माता इच्छरा ने तप किया था। माता इच्छरा राजा सलवान की पत्नी थी। पुत्र पूर्ण को पिता ने पहले 12 बरस एक गुफा में रखा। जब समय पूरा होने के बाद पूर्ण गुफा से बाहर आया तो राजा सलवान की दूसरी पत्नी लूना ने झूठा इल्जाम लगाया जिस पर पूर्ण को कटवा कर कुंए में फिकवा दिया गया। इस दौरान कुएं पर प्यास बुझाने के लिए गुरु गोरखनाथ अपने चेलों के साथ पहुंचे तो उन्होंने पूर्ण को कुएं से निकाल नया जीवनदान दिया व अपने शिष्यों में शामिल किया। उधर, पुत्र के वियोग में रानी रोते-रोते अंधी हो गई। सालों बाद संत के रूप में पुत्र से मिलाप होने के बाद मां इच्छरा ने इस स्थान पर तप किया जिसके चलते उनका मंदिर विद्यमान है। इससे पहले यहां स्वामी पूर्ण गिरी विराजमान थे। उनके देहावसान के बाद वर्तमान में 108 महंत मंगल गिरी निवास करते हैं।

श्रद्धालुओं के लिए सराए व लंगर का प्रबंध

मंदिर में इन दिनों मंगल गिरी पंच दशनामी अवान अखाडा काशी से संबंधित संत हैं। भव्य प्रवेश द्वार पर लगी श्री गणेश की प्रतिमा श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। प्रांगण में भगवान रूद्र शिवजी की प्रतिमा स्थापित है, जो अति सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है। मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए सराय व भोजनालय की अच्छी व्यवस्था है।

सावन की तैयारियां

महंत मंगल गिरी ने बताया कि सावन माह के अलावा नवरात्र व महाशिवरात्रि, श्री कृष्ण जन्माष्टमी और गुरु पूर्णिमा पर भंडारे लगाए जाते हैं। जलाभिषेक के लिए पूरी तैयारी है। सावन में मंदिर में मेले जैसा माहौल बना रहता है।


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