बीमार को देखने जाएं तो थमाएं उनके हाथ में सहयता का शगुन : डा. बग्गा
लोकाचार के चलते खुशी के मौके पर शगुन देना अच्छा है लेकिन इससे भी बेहतर हो यदि हम इस शगुन को एक नया रूप दें और अगर कोई बीमार हो व उसका हाल-चाल जानने जाएं तो उसे यथा संभव कुछ रकम शगुन की तरह देकर आएं। यह बात समाज सुधार के लिए कृतसंकल्प सामाजिक संस्था सवेरा के संयोजक डा. अजय बग्गा ने यहां जारी एक विज्ञप्ति में उक्त बात कही।
जागरण टीम, होशियारपुर : जब भी हम किसी के खुशी के मौके पर उसकी खुशियों में शरीक होने जाते हैं तो लौटते हुए उन्हें कुछ राशि शगुन की तरह देकर आते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में लोग शिष्टाचारवश शगुन लेने से इंकार भी करते हैं, लेकिन मेहमान शगुन देकर ही लौटते हैं। इस तरह लोकाचार के चलते खुशी के मौके पर शगुन देना अच्छा है, लेकिन इससे भी बेहतर हो यदि हम इस शगुन को एक नया रूप दें और अगर कोई बीमार हो व उसका हाल-चाल जानने जाएं तो उसे यथा संभव कुछ रकम शगुन की तरह देकर आएं। यह बात समाज सुधार के लिए कृतसंकल्प सामाजिक संस्था सवेरा के संयोजक डा. अजय बग्गा ने यहां जारी एक विज्ञप्ति में उक्त बात कही।
डा. बग्गा ने कहा कि आज के दौर में जिदगी की तेज होती रफ्तार के साथ-साथ समाज में मान्यताएं बदली हैं, लिहाजा जरूरी हो गया है कि हम शिष्टाचार और लोकाचार के नाम पर दिखावे और रूढि़यों की बजाय मानवीयता से जुड़ें। आज के दौर में जरूरी हो गया है कि हम शगुन को लेकर अपनी सोच और तरीका बदलें। किसी भी व्यक्ति के बीमार होने पर स्वाभाविक रूप से इलाज पर धनराशि खर्च होती है। कई बार देखने में आता है कि किसी परिवार के मुख्य कमाऊ सदस्य के बीमार पड़ने पर आय रूक जाती है। जिससे परिवार के लिए रोजमर्रा के खर्च तक चला पाना मुश्किल हो जाता है और ऊपर से बीमारी के इलाज पर होने वाला खर्च अलग से होता है। इस सबके बावजूद इन हालात में होने के बावजूद आत्म सम्मान वश लोग किसी से अपनी व्यथा कह भी नहीं पाते। बीमार का हाल-चाल जानने के लिए जाते वक्त शगुन देने को आज एक सामाजिक व्यवस्था और रीति के तौर पर अपनाए जाने की जरूरत है। उन्होंने सभी से इसे अपने जीवन का अंग बनाने और एक अभियान के रुप में दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करने की अपील की।