मुनाफे का सौदा नहीं पावर प्लांट को पराली बेचना, किनारा करने लगे पंजाब में किसान
पंजाब में खेतों में किसानों द्वारा पराली जलाने की समस्या समाप्त नहीं हो रही है। राज्य में इसके लिए पराली से बिजली बनाने वाले पावर प्लांट स्थापित किए गए। इन प्लांटों में किसानों के लिए पराली बेचना मुनाफे का सौदा नहीं रहा है। वह इससे किनारा कर रहे हैं।
रामपाल भारद्वाज, माहिलपुर (होशियारपुर)। पंजाब में किसानाें द्वारा खेतों में पराली जलाने की समस्या से निजात नहीं मिल रही है। इसको काबू करने के लिए पराली से बिजली बनाने के लिए पावर प्लांट लगाए गए। 11 वर्ष पहले होशियारपुर जिले के गांव बिंजो में छह मेगावाट क्षमता का पराली से चलने वाला पावर प्लांट लगाया गया। इसके बाद भी क्षेत्र में पराली की समस्या से निजात नहीं दिला पा रही है। इसका कारण यह है कि किसानों को पराली बेच कर कोई खास मुनाफा नहीं हो रहा। इस कारण किसान अब पावर प्लांट को पराली बेचने से किनारा करने लगे हैं।
पराली इकट्ठा करने व प्लांट तक पहुंचाने में प्रति एकड़ खर्च हो रहे 2500 से तीन हजार, कमाई भी इतनी ही
एक एकड़ जमीन में 15 से 20 क्विंटल पराली इकट्ठा हो जाती है, जबकि इतनी जमीन में पराली के गट्ठे बनाने पर 1500 रुपये का खर्च आता है। ट्रांसपोर्ट का खर्च अलग से जोड़ लें तो यह खर्च 2500 से तीन हजार रुपये तक पहुंच जाता है, जबकि किसानों को इसकी एवज में अधिकतम तीन हजार रुपये ही मिल पाते हैं। यानी मुनाफा न के बराबर है।
हाेशियारपुर जिले के गांव बिंजो में स्थापित पराली से चलने वाला पावर प्लांट।
नवांशहर के गांव गुज्जरपुर से पराली लेकर आए जगदीप सिंह ने बताया कि सरकार खेत से पराली उठाने की व्यवस्था करे। वरना घाटा खाकर कोई भी किसान यहां पराली बेचने नहीं आएगा। हमें इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। अगली फसल के लिए खेत भी तैयार करना है। यही कारण है कि किसानों का इस प्लांट से मोहभंग होता जा रहा है। बहुत से किसानों ने तो पराली बेचना बंद कर दिया है। वे खेत में ही पराली जला देते हैं। मशीनरी पर वादे के मुताबिक सब्सिडी भी नहीं मिल रही।
किसान मनजिंदर सिंह।
नवांशहर से आए किसान मनजिंदर सिंह ने कहा, 'मैंने पराली के अवशेष इकट्ठा करने वाली मशीन 16 लाख रुपये में खरीदी थी। राज्य सरकार ने 50 फीसद सब्सिडी देने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक मिली नहीं। पराली बेचने से कोई फायदा नहीं हो रहा।
गांव पचनंगल के किसान संजीव ने कहा कि इस पावर प्लांट की वजह से पराली खेत में जलाने की घटनाओं में कमी जरूर आई है, लेकिन मुनाफा नहीं है। पराली उठाने की व्यवस्था प्लांट की होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि ऐसे किसानों की सहायता करे। वहीं, प्लांट संचालकों का कहना है कि प्लांट की बिजली पावरकाम सात रुपये प्रति यूनिट की दर पर खरीदता है, जबकि इस पर प्रति यूनिट लगभग इतना ही खर्च आ जाता है। इसलिए सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए।
किसान संजीव और जगदीप सिंह।
2009 में शुरू हुआ था पावर प्लांट
मुंबई के उद्यमियों कमलेश और गोमानी ने वर्ष 2009 में यह प्लांट लगाया था। इसका उद्घाटन पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल व तत्तकालीन केंद्रीय मंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला ने किया था। छह मेगावाट क्षमता वाले प्लांट में अभी 135 कर्मी कार्यरत हैं। यहां पराली के साथ-साथ, गन्ने का वेस्ट, गेहूं की तूड़ी, सफेदा, पापलर की वेस्ट लकड़ी व सरसों के सूखे डंठल जलाकर बिजली तैयार की जाती है। यहां पैदा होने वाली बिजली 66 केवी के दो सब स्टेशन कोटफतूही व माहिलपुर को दी जाती है।
पावर प्लांट में रोजाना 80 से 90 टन पराली की खपत
प्लांट में होशियारपुर, कपूरथला, लुधियाना, नवांशहर व जालंधर के किसान अपनी फसलों के अवशेष बेचने आते हैं। पराली प्रति क्विंटल 135 रुपये, गन्ने का वेस्ट 150 रुपये, गेहूं की तूड़ी 200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीदी जाती है। प्लांट में रोजाना 80 से 90 टन पराली की खपत करने की क्षमता है।
उद्यमियों को प्रोत्साहित करे सरकार
पर्यावरण प्रेमी विजय बंबेली ने कहा कि फसलों के अवशेष से बिजली पैदा करने के लिए 60 किलोमीटर की दूरी पर ऐसे प्रोजेक्ट लगाने चाहिए, ताकि किसानों की ट्रांसपोर्ट का खर्च कम हो।