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संस्कृत बनी संस्कृति की संजीवनी

महंत रमिंदर दास जी बच्चों को संस्कृति की शिक्षा दे रहे हैं। पैसे के अभाव में एक बच्चे की पढ़ाई छूटने पर उनका नजरिया बदला। अब 1000 बच्चों संस्कृत की शिक्षा को दिला चुके हैं ।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 12:24 PM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 12:37 PM (IST)
संस्कृत बनी संस्कृति की संजीवनी
संस्कृत बनी संस्कृति की संजीवनी

होशियारपुर [हजारी लाल]। उदासीन आश्रम डेरा बाबा चरणशाह बहादुरपुर संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों के लिए न केवल सहारा बना हुआ है, बल्कि उनको संस्कृत में सुशिक्षित कर संस्कृति बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। आश्रम के महंत रमिंदर दास के समक्ष कुछ वर्ष पूर्व एक ऐसा वाकया सामने आया, जिसमें एक बच्चे की पढ़ाई पैसे के अभाव छूट गई। इस घटना के बाद उन्होंने फैसला किया कि उनके पास आने वाले ऐसे बच्चों की शिक्षा अधूरी नहीं रहेगी। इसके बाद से वह अब तक करीब 1000 बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा चुके हैं।

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महंत रमिंदर दास ऐसे बच्चों के लिए न केवल फीस का प्रबंध करते हैं, बल्कि उनके रहने और खाने का भी निशुल्क प्रबंध करते हैं। उनके इस प्रयास से पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू के गरीब बच्चे शिक्षित हो रहे हैं। इस समय महंत जी सात जरुरतमंद बच्चों की फीस का खर्च उठा रहे हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि वह फीस देने की प्रक्रिया को बेहद गुप्त रखते हैं। वह जिन बच्चों की मदद करते हैं, उनके नाम का खुलासा भी नहीं करते। महंत जी संस्कृत के बच्चों को भी खूब प्रोत्साहित करते हैं। होशियारपुर के संस्कृत कॉलेज में पढऩे वाले करीब एक हजार बच्चों की पढ़ाई में सेतु बनने का काम किया है। इस समय पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू के पांच गरीब बच्चे यहां रहकर संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं।

महंत जी का कहना है कि उनका उद्देश्य यही है कि गरीबी के कारण बच्चा पढ़ने से न रह जाए। बच्चे के अंदर कुछ बनने का जज्बा है तो वह उसके साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत के उत्थान का उनका यह प्रयास ताउम्र चलता रहेगा, क्योंकि उनका सपना है देश में ज्यादा से ज्यादा से संस्कृत का प्रसार हो जिससे हमारी संस्कृत बची रहे।

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