फटे हाल में सड़कों पर दौड़ रहीं रोडवेज की बसें
सरकार की जब आय के बड़े स्त्रोतों के बारे में बात की जाए तो रोडवेड का नाम भी आता है।
जागरण संवाददाता, होशियारपुर: सरकार की जब आय के बड़े स्त्रोतों के बारे में बात की जाए तो रोडवेड का नाम भी आता है। पैसों की खान कहे जाने वाले इस विभाग की बसों की हालत पतली हो गई। इन बसों से केवल आमदन ही ली जाती है, लेकिन इनमें सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते। यदि बात होशियारपुर डिपो की हो तो 60 प्रतिशत बसों की स्थिति ठीक नहीं है। जो बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं, वह काम चलाऊ हैं। कुछ बसों के इतने बुरे हाल हैं कि सीटें भी फटी हुई हैं। वहीं कई बसों की खिड़कियों का बुरा हाल है जो सही ढंग से बंद ही नहीं होती और कड़ाके की सर्दी में इन बसों में सफर करना अपने आप पर जुल्म करने जैसा लगता है। कई बसों के खिड़कियों के शीशे भी टूटे हुए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि होशियारपुर में रोडवेज का बसों का बेड़ा कंडम हो चुका है।
जिले में रोडवेज के बेड़े में कभी 123 बसें होती थीं। समय के साथ-साथ बसों का फ्लीट कम होता गया और अब बेडे़ में मात्र 116 बसें हैं और लगभग 60 फीसद बसें कंडम हो चुकी हैं, जिन्हें रोड पर दौड़ाना खतरे से खाली नहीं। जो कंडम बसें चल रही हैं वह यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ है। इन बसों की रिपेयरिंग भी राम भरोसे है। यदि गणना की जाए तो 116 में 34 नई हैं, बाकी पुरानी हैं। पुरानी बसों को लोकल रुटों पर बेखौफ दौड़ाया जा रहा है। सरकारी बसों के मुकाबले प्राइवेट बसों की तरफ ध्यान दिया जाए तो 500 से ऊपर बसें हैं, जो कि सही हालत में हैं। लोकल सवारिया पुरानी बसों में ढोई जा रहीं
इस समय होशियारपुर डिपो में रोडवेज की 38 बसें, पनबस व पेंडू बस सर्विस को मिला कर 63 बसें और किलोमीटर स्कीम की 12 बसें चल रही हैं। वहीं इसके मुकाबले सभी कंपनियों की बसों को मिला कर पाच सौ के करीब निजी बसें चल रही हैं। सबसे बुरी बात यह है कि लगभग 60 प्रतिशत बसें खस्ताहालत में हैं। पिछले दिनों छह वाल्वों बसों का इजाफा किया गया था। कुछ बसें तो ऐसी हैं जिनकी लाइफ लगभग समाप्त हो चुकी है जो बादसतूर दौड़ रही हैं। चाहे सरकार ने कुछ नई बसें दी भी हैं, लेकिन लोकल सवारिया फिर भी पुरानी बसों में ढोई जा रही हैं। अधिकतर बसों की सीटें फटी हुई मिलीं
दैनिक जागरण टीम ने जब बस स्टैंड का दौरा किया तो वहा सरकारी बसों की जगह प्राइवेट बसों की संख्या अधिक थी। सरकार की कहनी और कथनी में जमीन आसमान का फर्क है। सरकार सुविधा देने के वादे तो करती है पर वह वादे केवल वादे बन कर ही रह जाते हैं। सरकारी बसों की सीटों का बुरा हाल था और बसों की खिड़किया भी पूरी तरह से बंद नहीं होती। सर्दी के मौसम में यह खुली खिड़कियों से पास होने वाली हवा किसी आफत से कम नहीं है। बसों के हालात ठीक ने होने के कारण लोगों का रुझान प्राइवेट की तरफ
सरकारी बसों के हालत बढि़या न होने के कारण लोगों का रुझान इस तरफ कम हो रहा है। चाहे सरकार समय-समय पर नई बसें रोड पर उतारती है पर जिस हिसाब से बसें चलनी चाहिए, उस हिसाब से बसें काफी कम हैं। सवारी बस पर चढऩे से पहले बस की कंडीशन चेक करती है और यदि बस की कंडीशन ठीक नहीं तो वह बस पर चढ़ता ही नहीं है।