बहुत आसानी से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ : शिवशास्त्री
शिव महापुराण का सम्बन्ध शैव मत से है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : शिव महापुराण का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में शिव की भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। डेरा बाबा साधूराम सथवां में महंत रमेश दास महाराज की अध्यक्षता में हो रही कथा के समापन के अवसर पर कथा प्रवक्ता शिवशास्त्री ने प्रवचन करते हुए कहा कि शिव जल्द ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु शिव पुराण में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है। उन्होंने कहा कि भगवान शिव सदैव हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। उन्होंने कहा अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को वेशभूषा की आवश्यकता भी नहीं है। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उन्होंने कहा कि उनकी वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का शिव पुराण में अभाव है। शनिवार को समापन समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं ने भजनों का आनंद लिया, इस दौरान लंगर भी लगाया गया। इस अवसर पर सुरजीत सिंह दिलावर सिंह, वंदना, कृष्णा देवी, राजिन्द्र कुमार, कैप्टन नन्द किशोर, सुदर्शन, सुधा, ओंकार सिंह उपस्थित थे।