परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं
संवाद सहयोगी, दातारपुर मानवीय व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य की अपनी सूझ-बूझ, एकाग्रता, परिश्रम औ
संवाद सहयोगी, दातारपुर
मानवीय व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य की अपनी सूझ-बूझ, एकाग्रता, परिश्रम और पराक्रम का प्रतिफल है। ऐसा प्रतिफल, जो जगत के अन्य उपार्जनों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण और कहीं अधिक प्रयत्न-साध्य है। इस प्रतिफल की प्राप्ति में संकल्प शक्ति, साहसिकता और दूरदर्शिता का परिचय देना पड़ता है। फतेहपुर के शिव मंदिर में सोमवार को प्रवचन करते हुए तपोमूर्ति स्वामी महेश पुरी जी ने कहा कि जनसाधारण द्वारा अपनाई गई रीति-नीति से ठीक उल्टी दिशा में चलना उस मछली के पराक्रम जैसा है, जो जल के प्रचंड प्रवाह को चीरकर प्रवाह के विपरीत तैरती चलती है।
उन्होंने कहा कि आम तौर पर ज्यादातर लोगों को किसी भी कीमत पर संपन्नता और वाहवाही चाहिए। इसके विपरीत अपने व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले लोगों को जहां सादा जीवन और उच्च विचार की नीति पर अमल कर संतोषी बनना पड़ता है, वहीं कभी-कभी उन्हें अपने साथियों के उपहास का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग अपने गुणों के कारण महानता को उपलब्ध होते हैं। आत्म-विजेता को विश्व विजेता की उपमा अकारण ही नहीं दी गई है। दूसरों को उबारने और उन्हें दिशा देने की क्षमता मात्र ऐसे ही लोगों में होती है। आत्म-निर्माण या दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्तित्व का परिष्कार कर लेने वाले व्यक्ति एक दूसरा कदम और उठाते हैं। वह है दूसरों का कल्याण करना। ऐसे लोग पुण्य कमाने के लिए ऐसा नहीं करते, बल्कि आत्म-संतोष के लिए ही वे परोपकार करते हैं।
स्वामी महेश पुरी जी ने कहा प्रत्येक महामानव लोक मंगल के कार्यो में अपने जीते-जी संलग्न रहता है। शाश्वत सुख-संतोष रूपी सौभाग्य मात्र ऐसे ही लोगों को प्राप्त होता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस शख्स ने दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास किया है या जिसके मन में परोपकार करने का जज्बा रहा है, वह समय की शिला पर अपनी अमिट छाप छोड़ गया है। परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। जीवन के सभी गुणों में इस गुण का सर्वाधिक महत्व इसलिए है, क्योंकि यह हमें मानव होने का अहसास कराता है।
इस अवसर पर रा¨जदर कुमार, शास्त्री वीरेंद्र, सु¨रदर कुमार, अनु बाला, दलजीत ¨सह उपस्थित थे।