ब्लड मनी देकर साढ़े आठ साल बाद घर लौटा दल¨जदर
माहिलपुर आज से लगभग साढ़े आठ साल पहले अपनी व परिवार की आर्थिक दशा सुधार
रा¨जदर ¨सह, माहिलपुर
आज से लगभग साढ़े आठ साल पहले अपनी व परिवार की आर्थिक दशा सुधारने के चक्कर में घर से अबू धाबी गया दल¨जदर ¨सह आखिरकार जेल से छूटकर सकुशल अपने घर पंहुच गया है। इसके उपलक्ष्य में उसके परिजनों ने उसके घर पंहुचने से पहले गुरुद्वारा श्री गुरु रविदास माहिलपुर में श्री सुखमणि साहिब का पाठ करवाया और फिर दलजिंदर ने अपने घर में प्रवेश किया।
शुक्रवार को अपने घर पंहुचे दल¨जदर ¨सह पुत्र बनारसी दास निवासी वार्ड नंबर 7 माहिलपुर ने बताया कि वह 9 नवंबर, 2009 को अपने घर से अबू धाबी स्थित कंट्रक्शन कंपनी रॉयल इंटरनेशनल कंट्रक्शन में काम करने के लिए गया था। वहां उसने एक वर्ष बहुत बढि़या काम किया। 4 नवंबर, 2011 को वह अपनी कंपनी में ही था। इस दौरान कुछ युवकों का यूपी के आजमगढ़ के रहने वाले राज¨वदर चौहान से झगड़ा हो गया, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके आरोप में 5 लोगों पर मामला दर्ज किया था। इसके बाद दलजिंदर को 9 दिसंबर, 2011 को भी इस मामले में काबू कर शारजाह जेल में डाल दिया, जबकि मैं निर्दोष था। मैंने उक्त युवक को नहीं मारा था। मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने इस मामले की पुलिस को सूचना नहीं दी। इसलिए मुझे झगड़ा कर रहे युवक को मारने वाले लोगों के साथ उतना ही दोषी माना गया और सेंट्रल जेल शारजाह में डाल दिया गया। वहां पर मेरे जैसे और भी कई पंजाबी युवक थे। बाद में उक्त मामले में हम पांचों को मौत की सजा का फरमान हो गया।
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ओबराय बने मसीहा, लड़ा केस
इस दौरान हमारे लिए एसएस ओबराय मसीहा बनकर आए और उन्होंने हमारा केस अपने हाथ में लिया। उन्होंने केस की पैरवी शुरू की और हमारे व मृतक राज¨वदर चौहान के परिवार के बीच समझौता कराया और हमारा 20 लाख रुपये में राजीनामा करवाया। जिसमें से 15 लाख रुपये हम पांचों युवकों के परिजनों ने और 5 लाख रुपये ओबराय के संगठन ने मृतक के परिजनों को ब्लड मनी दी। सारा कुछ देने के बाद अबू धाबी की अदालत ने उन्हें 11 अप्रैल, 2018 को आजाद किया। सारी प्रक्रिया खत्म कर हमें वीरवार को दुबई से भारत भेज दिया गया। वीरवार देर शाम भारत पंहुच कर अपनी धरती को प्रणाम किया और कभी भी विदेश न जाने की कसम खाई, क्योंकि जेल में बिताया एक-एक पल कई वर्षो जैसा लगता है।
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भगवान का शुक्र है बेटा वापस घर पहुंचा : पिता
उधर, घर पहुंचने पर दल¨जदर के पिता बनारसी दास ने बताया कि दल¨जदर उसके तीन बच्चों में सबसे बड़ा था। मैंने उसे यह सोचकर विदेश भेजा था कि अब वह सहारा बनेगा। मगर, अभी भी भगवान का लाख शुक्र है कि मौत के मुंह से उनका बेटा वापस घर पंहुच गया। इस दौरान घर में खुशी का माहौल रहा और सभी सगे संबंधी बधाई देने पहुंचे।