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महिला सशक्तीकरण की प्रतीक झांसी की रानी को जयंती पर किया नमन

वीरांगना नाम सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में महारानी लक्ष्मीबाई की छवि उभरने लगती है। भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवांवित करने वाली झांसी की रानी की जयंती पर वशिष्ठ भारती इंटरनेशनल स्कूल दातारपुर में समारोह करवाया गया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2020 03:31 PM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 03:31 PM (IST)
महिला सशक्तीकरण की प्रतीक झांसी की रानी को जयंती पर किया नमन
महिला सशक्तीकरण की प्रतीक झांसी की रानी को जयंती पर किया नमन

संवाद सहयोगी, दातारपुर

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वीरांगना नाम सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में महारानी लक्ष्मीबाई की छवि उभरने लगती है। भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवांवित करने वाली झांसी की रानी की जयंती पर वशिष्ठ भारती इंटरनेशनल स्कूल दातारपुर में समारोह करवाया गया। प्रिसिपल दिनकर पराशर ने कहा कि लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में वीरांगना ही थीं। वे भारतीय महिलाओं के समक्ष अपने जीवन काल में ही ऐसा आदर्श स्थापित करके विदा हुईं जिससे हर कोई प्रेरणा ले सकता है। वह वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की जीवंत मिसाल भी हैं।

वीरांगना के मन में हमेशा यह बात कचोटती रही कि देश के दुश्मन अंग्रेजों को सबक सिखाया जाए। इसी कारण उन्होंने यह घोषणा की कि वह अपनी झांसी नहीं देंगी। इतिहास बताता है कि इस घोषणा के बाद रानी ने अंग्रेजों से युद्ध किया।

दिनकर पराशर ने कहा कि वीरांगना लक्ष्मीबाई के मन में अंग्रेजों के प्रति किस कदर घृणा थी वह इस बात से पता चल जाता है कि जब रानी का अंतिम समय आया, तब ग्वालियर की भूमि पर स्थित गंगादास की बड़ीशाला में रानी ने संतों से कहा कि कुछ ऐसा करो कि उसका शरीर अंग्रेज न छू पाएं। इसके बाद रानी स्वर्ग सिधार गईं और बड़ीशाला में स्थित एक झोंपड़ी को चिता का रूप देकर रानी का अंतिम संस्कार कर दिया गया और अंग्रेज देखते ही रह गए। हालांकि इससे पूर्व रानी के समर्थन में बड़ी शाला के संतों ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया, जिसमें 745 संतों का बलिदान भी हुआ।

समारोह के दौरान उपस्थित गणमान्यों ने महारानी लक्ष्मीबाई को शत-शत नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर कवीश शर्मा, अनु शर्मा, सुनयना, दीपशिखा तथा अन्य स्टाफ सदस्य उपस्थित थे।


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