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साग के शौकीन ने देश के लिए पिया शहादत का जाम

हरभजन कौर ने बताया कि 1994 में फोन बहुत कम होते थे, आंध्रा प्रदेश से वॉयरलैस द्वारा ही मैसेज पास हुआ था कि संतोख ¨सह शहीद हो गए।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 12:44 AM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 12:44 AM (IST)
साग के शौकीन ने देश के लिए पिया शहादत का जाम
साग के शौकीन ने देश के लिए पिया शहादत का जाम

नीरज शर्मा, होशियारपुर

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बात 1994 की है, मेरे पति ड्यूटी से घर आए और कहा कि मेरी इलेक्शन के लिए ड्यूटी लगी है, मुझे आंध्र प्रदेश जाना पड़ेगा। सर्दी शुरू हो रही थी, सरसों का साग अभी शुरू ही हुआ था, मैंने पूछा कब निकलना है तो वह बोले कल सुबह। मैंने कहा साग बना दूं, तो कहा नहीं वापिस आकर खाऊंगा। साग मेरे पति को बहुत पंसद था। पर 15 दिन बाद उनके शहीद होने की खबर आ गई। सरपंच को शायद एक दिन पहले इस खबर का पता चल गया था परंतु उन्होंने मुझे घबराते हुए अगली सुबह सारी बात बताई। मेरा तो जैसे सारा संसार ही खत्म हो गया। सरपंच ने बताया कि रात को पुलिस वाले आए थे बोल रहे थे बड़ा दम रखते थे डीएसपी साहिब ने मरते दम तक मोर्चा नहीं छोड़ा। यह कहना है 1994 में आंध्र प्रदेश में इलेक्शन ड्यूटी के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए शहीद डीएसपी संतोख ¨सह की पत्नी हरभजन कौर का। हरभजन कौर ने बताया इस एक खबर ने उनका सारा संसार तबाह कर दिया। मन में पति के बिछड़ने का दुख है पर पति की शहादत पर गर्व भी। लेकिन आज भी वह उस मनहूस घड़ी को भुला नहीं पाई जब उनके पति ड्यूटी के लिए रवाना हुए थे। हंसमुख स्वभाव के थे शहीद संतोख ¨सह

हरभजन कौर ने बताया कि उनके पति बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे और गांव में यदि किसी को परेशानी होती थी तो वह लोगों के लिए दिन रात खड़े रहते थे। हरभजन कौर ने बताया कि वह ड्यूटी के पक्के व बहादुर थे। कभी उन्होंने उसे गुस्सा होते नहीं देखा, बस जो भी मिलता था वह उससे बड़े प्यार से मिलते थे, शायद इसलिए आज भी गांव के लोग उन्हें याद करते हैं और बातों बातों में उनका जिक्र आ ही जाता है। बाहर का खाना खाने से करते थे गुरेज

हरभजन कौर ने बताया कि उनके पति सख्त मेहनत करने वाले थे और इसके साथ साथ खाने पीने के शौकीन भी थे। उन्हें आज भी याद है कि उनके पति बाहर का खाना खाने से बहुत गुरेज करते थे। कहीं बाहर खाना खाना पड़ जाए तो वह बहुत ही दिक्कत महसूस करते थे। जब भी घर लौटते थे तो पहला सवाल यही होता था कि खाने में क्या बना है, यदि साग व सब्जी के बारे में बताया जाता तो कहते थे जल्दी खाना लगाओ बहुत भूख लगी है। हरभजन कौर ने बताया कि पर उस समय बहुत बखेड़ा खड़ा हो जाता था जब कभी मैं खाने के बारे में पूछने पर यह जवाब देती थी कि आज मूंगी मसूर की दाल बनी है बस वह उसी वक्त नाराज हो जाते थे कि क्या बना दी यह दाल। यह भी कोई दाल है मूंगी मसूर। भाग्यवान यह दाल तो बीमारों का खाना है मैं नहीं खाऊंगा मूंगी मसूर की दाल कुछ और है तो वह दो नहीं तो आज अपना ढाबा बंद कर दे मैंने नहीं खानी रोटी। चिढ़ाने के कह देती थी, दाल बनी है

हरभजन कौर ने कहा कई बार तो वह जानबूझ कर पति को चिढ़ाने के लिए ही कह देती थी कि आज दाल बनी है बिमारों वाली। यह कहकर हरभजन कौर पहले तो खिल-खिलाकर हंस पड़ी पर पति की यह बात याद आते ही उनका मन भर गया। कहा कि यदि आज उनके पति ¨जदा होते तो हमारा भी रौब होता।

दो दिन बाद पता चला था पति की शहादत का

हरभजन कौर ने बताया कि 1994 में फोन बहुत कम होते थे, आंध्र प्रदेश से वॉयरलेस द्वारा ही मैसेज पास हुआ था कि संतोख ¨सह शहीद हो गए। पहले तो पुलिस मुलाजिमों को कुछ समझ नहीं लगा और न ही यकीन हुआ। उन्होंने तुरंत दोबारा वॉयरलैस की गई तो सारी बात साफ हुई की इलेक्शन के दौरान हुए ब्लास्ट में डीएसपी संतोख ¨सह शहीद हो गए। मैसेज गढ़शंकर पुलिस को पास किया गया। चूंकि हमारा पुश्तैनी मकान पंजोड़ा है तो पुलिस मुलाजिम मैसेज लेकर पंजोड़ा पहुंच गए और पहले तो वह सीधा घर आने लगे पर मैं घर में अकेली थी और सूरज ढल चुका था। सूचना लेकर सरपंच के घर पहुंचे थे मुलाजिम

पुलिस मुलाजिम सरपंच कमलजीत के घर पहुंच गए। उन्होंने गांव के सरपंच को सारी बात बतलाई। धीरे धीरे गांव में बात फैल गई पर किसी ने उन्हें नहीं बताया क्योंकि वह घर में अकेली थी। अगली सुबह जब हुई तो पति की मौत को दो दिन हो चुके थे और गांव के सरपंच कलमजीत व गांव के कुछ अन्य गणमान्य घर आए और ढंडास बंधाते हुए कहा कि आपके पति शहीद हो गए हैं।


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