हिदी भारत की भाषाओं की सरताज, माथे की बिदी है
संवाद सहयोगी दातारपुर आज हिदी दिवस है। एक बार पुन हिदी की महिमा का स्मृति दिवस आ पहुंचा है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर
आज हिदी दिवस है। एक बार पुन: हिदी की महिमा का स्मृति दिवस आ पहुंचा है। हिदी आज अपने प्रभाव से पूरे विश्व की नंबर एक भाषा बनने की ओर अग्रसर है। इस उपलक्ष्य में दैनिक जागरण ने कुछ प्रबुद्ध लोगों के साथ बात की। वासिष्ठ भारती स्कूल दातारपुर के चेयरमैन गिरिधर शर्मा, प्रिसिपल दिनकर पराशर व भाजपा के मीडिया प्रभारी अरुण शर्मा ने कहा कि दुनियाभर में फैले लोगों में से लगभग 100 करोड़ से अधिक लोगों का हिदी बोला जाना इस भाषा का विश्वजन समुदाय में निरंतर बढ़ते वर्चस्व का उदाहरण है। इतना ही नहीं हिदी भाषियों में एक अरब से ज्यादा लोग हिदी लिखते, बोलते और समझते हैं। विश्वमंच पर आज इस भाषा का लोहा माना जा रहा है। अफसोस इस बात का है कि हिदी 'राजभाषा' होने के बावजूद स्वदेश में तिरस्कृत है। दक्षिण भारत के नेताओं को किस संविधान ने अधिकार दिया है कि वे किसी भी नागरिक को हिदी बोलने से रोक सकते हैं। यह तो सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के अनुच्छेद (2), मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 19(1) तथा अनुच्छेद 29 के अधिकारों का हनन है। देश की बात छोड़िए राजधानी दिल्ली में भी विश्वविद्यालय केवल अंग्रेजी माध्यम में व्याख्यान तथा अंग्रेजी का ही बोलबाला है। यह कैसी विडंबना है कि हिदी को अपने ही देश में तिरस्कार सहना पड़ रहा है। स्वदेश में हिदी का विरोध असंवैधानिक है। यदि ये नेता भाषाई दादागिरी पर उतर आए तो वे यह क्यों भूल रहे हैं कि मुंबई के विकास की नींव में हिदी है। यदि हिदी फिल्में मुंबई में न बनती तो मुंबई आज कहाँ होती? आज जरूरत हिदी को भारत माता के भाल की बिदी बनाने की है।