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ठंडे बस्ते में पुलिसिया जांच, गुनाहगारों को नहीं आई आंच

सवा दो माह पहले वन रेंज अफसर विजय कुमार की रहस्यमय मौत का मामला पुलिस के ठंडे बस्ते में चला गया है। यह दर्दनाक हत्या थी या फिर आत्महत्या, कुछ साफ नहीं हो पाया है। हालांकि पुलिस का दावा वह जांच को आगे बढ़ा रही है, लेकिन पुलिस जांच का नतीजा कीचड़ में फंसी गाड़ी की घूमती पहिया की तरह दिख रही है। यूं कहें की कि पुलिस ने जांच के नाम पर लीपापोती करके मामले को दबाने में जुट गई है। शायद इसी वजह से वह अब वह कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। दूसरी तरफ, सभी को विजय कुमार की मौत के राज को जानने का इंतजार है। उल्लेखनीय है की कि पांच अगस्त को वन रेंज अफसर विजय कुमार खड़कां के जंगल में वन मंत्री साधु ¨सह के आगमन की तैयारियों का जायजा लेने गए थे। वह चौकीदार को चाय बनाने के लिए जंगल की तरफ गए थे, लेकिन वापस नहीं लौटे। जबकि उनकी कार वहीं पर खड़ी थी। जब यह

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 11:06 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 11:06 PM (IST)
ठंडे बस्ते में पुलिसिया जांच, गुनाहगारों को नहीं आई आंच
ठंडे बस्ते में पुलिसिया जांच, गुनाहगारों को नहीं आई आंच

हजारी लाल, होशियारपुर : सवा दो माह पहले वन रेंज अफसर विजय कुमार की रहस्यमय मौत का मामला पुलिस के ठंडे बस्ते में चला गया है। यह दर्दनाक हत्या थी या फिर आत्महत्या, कुछ साफ नहीं हो पाया है। हालांकि पुलिस का दावा वह जांच को आगे बढ़ा रही है, लेकिन पुलिस जांच का नतीजा कीचड़ में फंसी गाड़ी की घूमता पहिये की तरह दिख रहा है। यूं कहें कि पुलिस ने जांच के नाम पर लीपापोती कर मामले को दबाने में जुट गई है। शायद इसी वजह से वह अब वह कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। दूसरी तरफ, सभी को विजय कुमार की मौत के राज को जानने का इंतजार है।

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पांच अगस्त को तैयारियों का जायजा लेने गए थे जंगल

उल्लेखनीय है कि पांच अगस्त को वन रेंज अफसर विजय कुमार खड़कां के जंगल में वन मंत्री साधु ¨सह के आगमन की तैयारियों का जायजा लेने गए थे। वह चौकीदार को चाय बनाने के लिए कहने जंगल की तरफ गए थे, लेकिन वापस नहीं लौटे। जबकि उनकी कार वहीं पर खड़ी थी। जब यह स्पष्ट हो गया था कि विजय कुमार लापता हो गए हैं तो वन विभाग और सदर पुलिस ने उन्हें ढूंढना शुरू किया था। विजय की तलाश में जंगल का मगर, सारे घटनाक्रम में उस समय नया मोड़ आ गया, जब विजय कुमार का शव नौ अगस्त को रिसर्च सेंटर से चार सौ मीटर की दूरी पर खुले मैदान में मिला। यह कड़वी सच्चाई है की कि जहां पर विजय कुमार शव मिला था, उस जगह पर पुलिस की टीम और वन विभाग कर्मियों ने कई बार सर्च किया था। इससे सवाल खड़े हुए थे की कि जब सर्च आपरेशन के दौरान वहां पर विजय कुमार का शव नहीं मिला था, तो पांच दिन शव वहां पर कैसे मिल गया। इससे भी हैरानीजनक बात थी कि पांच दिन बीत जाने के बावजूद विजय कुमार के शव से कोई दुर्गंध नहीं आ रही थी, जबकि बरसात के मौसम में शव चौबीस घंटे के अंदर ही खराब होना शुरू हो जाता है।

अगर मान लिया जाए की कि विजय कुमार ने मरने से पहले सुसाइड नोट लिखा था, तो उसने उस अधिकारी का नाम क्यों नहीं लिखा, जो उन्हें तंग करता था। अगर वाकई में विजय कुमार ने किसी अधिकारी से दुखी होकर आत्महत्या की थी, तो उस अधिकारी का नाम अभी तक पुलिस क्यों नहीं उजागर कर पाई है।

एक बोतल मिली जहर की, बोतल भी शंका के घेरे में

जिस समय विजय कुमार चौकीदार को चाय बनाने के लिए कह कर जंगल की तरफ गए थे, तो उस समय उनके पास जहर की बोतल नहीं थी। लेकिन शव के पास एक लीटर की बोतल मिली थी, जिसमें जहर था। अभी भी सवाल सुलग रहे हैं कि क्या विजय कुमार पूरी बोतल अपने साथ लेकर गए थे। हालांकि पुलिस ने विजय कुमार की हैंडराइ¨टग के मिलान के लिए लेबोरेटरी में भेजा है, लेकिन अभी तक उसकी रिपोर्ट ही नहीं आई है। एसएसपी जे. इलनचेलियन ने कहा कि तफ्तीश की जा रही है। लेकिन अभी तक कोई स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। सिस्टम से दुखी थे विजय कुमार

सूत्रों के मुताबिक वन रेंज अफसर विजय कुमार सिस्टम से दुखी थे। वन मंत्री के आगमन को लेकर उन पर चंदा इकट्ठा करने का बहुत दबाव था। यह दबाव कौन बना रहा था। कितनी राशि का चंदा इकट्ठा करना था। शायद इसी सिस्टम की विजय कुमार बलि चढ़े। तमाम सवाल सुलग रहे हैं। बावजूद इसके पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है।


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