प्रथम पूज्य व गणों के स्वामी हैं श्री गणेश
दातारपुर गणेश जी शिवजी और माता पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है और गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर: गणेश जी शिवजी और माता पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है और गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में गणेशोत्सव पर प्रवचन करते हुए तपोमूर्ति महंत राज गिरी जी ने कहा कि जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेश जी हैं। हाथी की तरह का सिर होने के कारण उन्हें गजानन कहा जाता है। गणेश जी का नाम हिंदू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिए पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते हैं। महंत ने कहा गणपति आदि देव हैं ,जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिदु लड्डू और मात्रा सूंड है। महंत ने कहा चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं। वह लंबोदर हैं , क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। उन्होंने कहा गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शिवजी आए और बोले ''पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो। गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है। कथा प्रवचन के दौरान कवि राजिंद्र मेहता, सुदर्शन ऐरी व डॉ. राविन्द्र सिंह तथा अन्य भी उपस्थित रहे।