जल संरक्षण का पाठ भी पढ़ाता है निर्जला एकादशी पर्व : शास्त्री
निर्जला एकादशी के व्रत के दिन आप इस बात को समझते हैं कि भूखे-प्यासे रहने की स्थिति का सामना कैसे किया जाए।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : निर्जला एकादशी के व्रत के दिन आप इस बात को समझते हैं कि भूखे-प्यासे रहने की स्थिति का सामना कैसे किया जाए। लगातार चौबीस घंटे बिना पानी रहना मजबूत संकल्प शक्ति के बिना संभव नहीं है। यह बात शिक्षाविद सतपाल शास्त्री ने कही। उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी के व्रत से मिला संयम और संकल्प बहुत सहायक साबित होता है। ऐसे व्रत हमारे धर्म में किसी न किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किए गए हैं। निर्जला एकादशी की तरह करवाचौथ का व्रत भी महिलाओं को आपात स्थिति से निपटने के एक प्रशिक्षण जैसा है। यह पर्व हमें जल संरक्षण का पाठ भी पढ़ाता है।
शास्त्री ने कहा कि सृष्टि में जल संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि लोग इसकी महत्ता को समझें और उसके संरक्षण के लिए प्रयास करें। गर्मी से समाज के सभी वर्गों को राहत मिले, इसलिए इन दिनों मीठे व ठंडे जल की छबील लगाने की प्रथा शुरू हुई। जेठ की तपती गर्मी में जल और छाया दोनों का महत्व बढ़ जाता है। इसलिए हमारे धर्म में आज के दिन खरबूजे, पंखे, छतरियां, फल, जूते, अन्न, भरा हुआ जल कलश आदि दान करने का प्रावधान है। जिससे निर्बल और असहायों की सहायता हो सके।