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411 करोड़ रुपये से मुकेरियां तलवाड़ा रेल ट्रैक का निर्माण होगा

बरसों से निर्माणाधीन नंगल-तलवाड़ा रेलवे लाइन के निर्माण की आसा अब बंध गई है। उक्त लाइन जो नंगल से तलवाड़ा-ऊना मुकेरियां तक अनुमानित 120 किमी लंबी है दशकों से प्रस्तावित है। ऊना स्थित भूमि अर्जन कार्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पहले दौलतपुर से तलवाड़ा तक इस लाइन पर कुल 30 मीटर चौड़ी लाइन के लिए जमीन अधिगृहीत की जा रही थी जो अब घटा कर मात्र आठ मीटर कर दी गई है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 09:49 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 09:49 PM (IST)
411 करोड़ रुपये से मुकेरियां तलवाड़ा रेल ट्रैक का निर्माण होगा
411 करोड़ रुपये से मुकेरियां तलवाड़ा रेल ट्रैक का निर्माण होगा

सरोज बाला, दातारपुर : बरसों से निर्माणाधीन नंगल-तलवाड़ा रेलवे लाइन के निर्माण की आसा अब बंध गई है। उक्त लाइन जो नंगल से तलवाड़ा-ऊना मुकेरियां तक अनुमानित 120 किमी लंबी है दशकों से प्रस्तावित है। ऊना स्थित भूमि अर्जन कार्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पहले दौलतपुर से तलवाड़ा तक इस लाइन पर कुल 30 मीटर चौड़ी लाइन के लिए जमीन अधिगृहीत की जा रही थी, जो अब घटा कर मात्र आठ मीटर कर दी गई है। यह लाइन अभी तक दौलतपुर स्टेशन तक ही कार्यरत है और इस ट्रैक पर अभी दिल्ली जयपुर बरेली आदि स्टेशनों तक ट्रेनें चलती हैं।

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अब लाइन पर दातारपुर के नजदीक पुरानी लाइन जहां से ट्रैक गुजरता था, उसकी साफ सफाई हो रही है। इस पर दैनिक जागरण ने सीनियर सेक्शन इंजीनियर व‌र्क्स कंस्ट्रक्शन उत्तर रेलवे के संदीप कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि इस लाइन जो मुकेरियां से तलवाडा तक कुल 28 किलोमीटर लंबी है में ट्रैक बिछाने, सफाई और अर्थ वर्क तथा पुल निर्माण के लिए 411 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए है और काम शुरू किया गया है। विभाग ने तीन साल की अवधि में इस कार्य को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा इस मार्ग पर सफाई का कम तेजी से हो रहा है। दौलतपुर से तलवाड़ा रेललाइन के लिए भूमि अधिग्रहण का काम पूरा करने के लिए हिमाचल के जिला ऊना प्रशासन ने तीन महीने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, पंजाब में अभी तक रेललाइन के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन हिमाचल में दौलतपुर से तलवाड़ा रेलवे लाइन के लिए 87.8 प्रतिशत भूमि अधिग्रहण का काम पूरा कर लिया गया है। दौलतपुर से पंजाब सीमा तक तलवाड़ा रेललाइन के लिए 7-3788 हेक्टेयर भूमि रेलवे के नाम होनी थी। इसमें 6-20-47 हेक्टेयर भूमि रेलवे के नाम हो चुकी है। इसके बाकी हिस्से जो कि हिमाचल सीमा से तलवाडा तक अनुमानित 17 किलोमीटर है के अधिग्रहण की प्रक्रिया अभी चल ही रही है और अब विश्वास जगा है की यह रेलवे लाइन तीन साल में पूरी हो जाएगी। जिससे यहां के बाशिदों को भी सुविधा प्राप्त होगी। 2016 वर्ष के बजट में कुल 100 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे

2016 वर्ष के बजट में कुल 100 करोड़ रुपये ही इस लाइन के लिए आबंटित किए गए, जोकि अपर्याप्त था। इसमें से ज्यादातर राशि तो जमीन अधिग्रहण करने में, स्टेशन निर्माण आदि में ही खर्च हो गई और अब निर्माण लागत को घटाने के लिए रेलवे ने इसकी चौड़ाई 30 मीटर से घटा कर मात्र आठ मीटर कर दी है। यह सारा इलाका ही शिवालिक पर्वतमाला में है। इसलिए विभाग ने यह निर्णय लिया है कि मार्ग में आने वाली कई खड्ढों व चोअ में भी बाढ़ से बचाव के लिए लाइन को पिल्लरों पर ले जाया जाएगा। क्षेत्र के संजीव कुमार आदि के मुताबिक राजनीतिक दबाव में उसका भी साइज छोटा कर दिया गया है और मूलत: उसे हिमाचल के कुनेरन में शिफ्ट कर दिया गया है, जो सरासर न इंसाफी है। वहीं तलवाड़ा से आगे मुकेरियां तक लगभग 30 किमी ट्रैक 1970 में बीबीएमबी ने पौंग बांध निर्माण के समय बिछाया हुआ था। जिस पर पुल भी बने हुए थे। मगर, विभाग की अदूरदर्शिता के कारण 12 साल पहले वह बना बनाया ट्रैक भी उखाड़ दिया गया। इतना ट्रैक मिलने से इस लाइन को जालंधर-पठानकोट ट्रैक से जोड़ने में बहुत सुविधा होती। विशेष सामरिक महत्व

पठानकोट-जम्मू व घाटी को जोड़ने का काम करेगी। लाइन के आज तक न बनने का मुख्य कारण इस ट्रैक के लिए बजट में पर्याप्त फंड जारी न होना है। रेलवे लाइन के लिए बजट आबंटित करने की मांग होती रही है। इलाके के प्रबुद्ध नागरिकों सुशील पिकी, कंवर रत्न चंद, कैप्टन रविदर शर्मा, सतपाल शास्त्री, दीपक राणा, अनिल वशिष्ट ने केंद्रीय रेल मंत्री सेम कई बार अनुरोध किया कि इस लाइन के लिए ज्यादा राशि आबंटित की जाए। ज्यादा राशि मिलने पर ट्रैक शीघ्र बने और क्षेत्र का भी समुचित विकास हो। 1974 में तत्कालीन रेलवे मंत्री ने रखा था नींव पत्थर

नंगल-तलवाड़ा रेलवे लाइन को जालंधर-पठानकोट रेलवे लाइन से जोड़ने के काम का नींव पत्थर तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने 1974 में रखा था। मगर, पांच दशकों बाद भी यह काम अभी अधूरा ही है और यहां के बाशिदों के लिए मृग मरीचिका ही बना हुआ है।


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