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कृष्ण व गो भक्त हैं इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन एडवोकेट राकेश मरवाहा

शुरू से ही पढ़ने में होशियार था क्लास में मानिटर बनता था। मास्टर हरभजन सिंह कहते थे कि और मेहनत करोगे तो एक दिन अच्छे स्तर के अधिकारी बन सकते हो। फिर मन में लग्न लगी कि आइएएस बनना है। काफी समय तक यही सोचकर तैयारी भी की लेकिन जीवन ने ऐसी करवट ली कि सपना अधूरा रह गया। कुछ समय बीतने के बाद मुरली वाले ने मन में पल रहे उस अरमान को पूरा कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 03:52 PM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 09:13 AM (IST)
कृष्ण व गो भक्त हैं इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन एडवोकेट राकेश मरवाहा
कृष्ण व गो भक्त हैं इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन एडवोकेट राकेश मरवाहा

नीरज शर्मा, होशियारपुर

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शुरू से ही पढ़ने में होशियार था, क्लास में मानिटर बनता था। मास्टर हरभजन सिंह कहते थे कि और मेहनत करोगे, तो एक दिन अच्छे स्तर के अधिकारी बन सकते हो। फिर मन में लग्न लगी कि आइएएस बनना है। काफी समय तक यही सोचकर तैयारी भी की, लेकिन जीवन ने ऐसी करवट ली कि सपना अधूरा रह गया। कुछ समय बीतने के बाद मुरली वाले ने मन में पल रहे उस अरमान को पूरा कर दिया। आइएएस तो नहीं बना पर आज उस कुर्सी पर बैठकर काम करता हूं जिसका कार्यभार जरूरत पड़ने पर आइएएस स्तर का अधिकारी ही संभालता है। कृष्ण भगवान की ऐसी कृपा हुई कि इंप्रूवमेंट ट्रस्ट का चेयरमैन बन गया। यह कहना है गो सेवा में तत्पर और जन कल्याण में आगे रहने वाले एडवोकेट राकेश मरवाहा का। जीवन में देखे बहुत उतार-चढ़ाव, मां की प्रेरणा से अब वकील

एडवोकेट मरवाहा ने बताया कि पिता काफी समय तक गल्फ में रहे। लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां ऐसी थी कि जीवन में कई उतार चढ़ाव देखने के लिए मिले। एक बार पिता विदेश से वापस आ गए थे और पारिवारिक मजबूरी में उन्हें लौटना पड़ा। मरवाहा ने बताया कि बीए तक पढ़ाई के दौरान जिम्मेदारी को समझते हुए काम भी करना चाहते थे। एमए करते तो रेगुलर ही विकल्प था, फिर मन में कई विचार उठने लगे। कोई हल न निकलने पर मां को व्यथा सुनाई और उन्होंने वकालत के लिए प्रेरित किया। गंगानगर राजस्थान में वकालत में एडमिशन ले ली। वकालत की, लेकिन मन खुद के बिजनेस के लिए तैयार था। किसी से मिलकर फर्नीचर का काम शुरू कर लिया और वह भी नहीं चला। इसके बाद वकालत की तरफ रुख करना पड़ा। उस समय लाइसेंस के लिए भी पैसे नहीं थे। मां ने 1700 रुपये लाइसेंस के लिए दिए। आज भी वह क्षण याद है जब मां ने पैसे देते हुए कहा कि कामयाब हो, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सच कहते हैं कि मां बाप का आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता। आज जो कुछ भी हूं वह माता पिता की वजह से हूं।

कृष्ण भक्ति में जो आनंद मिलता है वह कहीं और नहीं

एडवोकेट मरवाहा प्रतिदिन सुबह व शाम को गोशाला में जाते हैं और वहीं पर बने भगवान कृष्ण के मंदिर में हाजिरी लगाते हैं। मरवाहा कहते हैं कि कृष्ण भजन गाने में जो सुख मिलता है वह कहीं और नहीं है। एक आलौकिक स्थिति बन जाती है व कोई इच्छा ही नहीं रहती, केवल कृष्ण और बस कृष्ण। मरवाहा बताते हैं कि वह मोहनानंद संकीर्तन मंडली के सदस्य हैं जो भगवान कृष्ण का गुणगान करती है। जब पहली बार मंडली के साथ जुड़े तो कुछ सदस्यों ने भजन गाने के लिए कहा। पहले तो घबराहट हुई लेकिन मुरली वाले को याद कर कुछ इस तरह भजन गया कि तारीफ हुई। अब भजन मंडली में भजन गाते हैं।

गो सेवा से मिलती है मन को संतुष्टि

एडवोकेट मरवाहा गो सेवा में भी तत्पर हैं। तड़के चार बजे उठने के बाद नहाकर घर में पूजा अर्चना करने के बाद गोशाला में जाते हैं और वहां दिन की शुरुआत सेवा से करते हैं। इसके बाद कारपोरेशन की गोशाला में जाते हैं वहां पर प्रबंध देखकर घर लौटते हैं। इसी तरह हर शाम को करीब 4:30 से पांच बजे के बीच गोशाला में जाते हैं और रात को आरती करने के बाद आठ बजे लौटते हैं। मरवाहा बताते हैं कि गो सेवा के लिए बीनेवाल के स्वामी कृष्णा नंद महाराज ने प्रेरित किया था। दिसबंर 1999 में स्वामी से मिले थे और वहीं से ही उनका कृष्ण भक्ति व गो सेवा का सफर शुरू हुआ। स्वामी ने कहा था कि जीवन में गो सेवा से उत्तम कोई सेवा नहीं है। मरवाहा ने कहा, शहर के लिए कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो राजनीति से ऊपर उठकर हो व अपने आप में मिसाल हो। लोग मुझे पार्टी के तौर पर नहीं, बल्कि जनकल्याण के किए कामों के कारण पहचानें।


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