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त्योहारों में मिठास फीकी न हो इसलिए किसान तरसेम हर साल लगाते हैं गन्ने के रस का लंगर

धार्मिक स्थानों और हर रोज कहीं न कहीं चलने वाले लंगरों के कारण लोगों में अधिक धार्मिक आस्था ही शायद जिले को मिनी काशी बनाती है। यदि कोई त्योहार आ जाए तो क्या ही बात हर कोई इसे धार्मिक रीति रिवाज से मनाता है। श्रद्धा के हिसाब से जगह-जगह लंगर लगते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 07:15 AM (IST)Updated: Fri, 15 Jan 2021 07:15 AM (IST)
त्योहारों में मिठास फीकी न हो इसलिए किसान तरसेम हर साल लगाते हैं गन्ने के रस का लंगर
त्योहारों में मिठास फीकी न हो इसलिए किसान तरसेम हर साल लगाते हैं गन्ने के रस का लंगर

नीरज शर्मा, होशियारपुर

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धार्मिक स्थानों और हर रोज कहीं न कहीं चलने वाले लंगरों के कारण लोगों में अधिक धार्मिक आस्था ही शायद जिले को मिनी काशी बनाती है। यदि कोई त्योहार आ जाए तो क्या ही बात, हर कोई इसे धार्मिक रीति रिवाज से मनाता है। श्रद्धा के हिसाब से जगह-जगह लंगर लगते हैं। ऐसे ही एक लंगर के लिए मशहूर है कंडी के जंगलों के साथ सटा गांव ऐतबारपुर। यहां हर साल माघी व लोहड़ी को गन्ने के रस का लंगर लगाया जाता है और आसपास से दर्जनों गांवों के लोग इसका आनंद उठाते हैं। सुबह से ही लोगों का तांता लग जाता है और लोगों को सारा दिन रस पिलाया जाता है। घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाने के लिए भी रस दिया जाता है ताकि उनके त्योहार की मिठास फीकी न हो। यह सेवा कर रहे हैं किसान तरसेम सिंह, उनके बेटे जतिदर सिंह। तरसेम सिंह बताते हैं कि लंगर में गांववासी भी पूरा साथ देते हैं। गन्ने के रस के लिए सारा दिन लोगों का आना लगा रहता है। यह लंगर आठ साल से हर लोहड़ी व माघी को लगाया जा रहा है। वाहेगुरु की कृपा से आठ साल से कर रहे हैं सेवा

किसान तरसेम सिंह बताते हैं कि लोहड़ी व माघी पंजाब के लिए बहुत खास है और इसका धार्मिक महत्व भी है। लोहड़ी को हर घर में सरसों का साग व मीठे चावल जो गन्ने के रस से तैयार होते हैं, बनाने का रिवाज है। कंडी का इलाका होने के कारण आम सुविधाओं के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कुछ साल पहले गन्ने के रस के लिए लोगों को भीखोवाल या फिर हरियाना की तरफ जाना पड़ता था। कुछ लोग ऐसे भी थे जो गन्ने का रस न मिलने के कारण मीठे चावल नहीं बना पाते थे। यह देखकर मन में विचार आया कि लोगों की इस समस्या का हल जरूर करेंगे। इसके चलते आठ साल पहले लोहड़ी वाली सुबह वाहेगुरु के आगे अरदास की कि उन्हें सेवा की शक्ति दे। वाहेगुरु के आशीर्वाद के बिना कुछ भी संभव नहीं था। बस उस सुबह गांव में अनाउंसमेंट करवा दी कि जिसे गन्ने का रस चाहिए वह ले जा सकता है। गन्ना भगवान की दया से अपने ही खेतों में था। वहीं से काटना शुरू किया, गांव के कुछ लोगों को साथ लेकर लंगर लगा दिया। अपने खेतों में उगाते हैं गन्ना

तरसेम सिंह ने बताया कि पहले साल लगभग 35 गट्ठे गन्ने के लगे थे। हर साल अपने खेतों में लंगर के लिए गन्ना लगाते हैं और भगवान की दया से हर साल फसल अच्छी होती है। अब लंगर के दौरान 100 से 150 गट्ठे गन्ने के लग जाते हैं और सारा दिन अटूट लंगर वितरित होता है। आसपास के गांव जैसे जनौड़ी, नीला नलोआ, छमेड़ी पत्ती के लोग इस लंगर में आते हैं।


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