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नाबालिग सड़कों पर सरपट दौड़ा रहे वाहन

सरकार, जिला ट्रैफिक पुलिस और जिला प्रशासन यहां ट्रैफिक नियमों की जानकारी देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और जन तक सेमिनार लगाकर सभी लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए लोगों को जागरूक करने का दावे करती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 05:04 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 05:04 PM (IST)
नाबालिग सड़कों पर सरपट दौड़ा रहे वाहन
नाबालिग सड़कों पर सरपट दौड़ा रहे वाहन

रामपाल भारद्वाज, माहिलपुर/गढ़शंकर

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सरकार, जिला ट्रैफिक पुलिस और जिला प्रशासन यहां ट्रैफिक नियमों की जानकारी देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और जन तक सेमिनार लगाकर सभी लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए लोगों को जागरूक करने का दावे करती है। वहीं शहरों में सैकड़ों नाबालिग उनके सामने से वाहन चलाते हुए निकल जाते हैं। इन बच्चों के अभिभावक ही असल मे हादसों की चाबी पकड़ा कर 10 से 12 साल के बच्चों को स्कूटी और मोटरसाइकिल पर चढ़ा दिया जाता है। वह यह नहीं सोचते कि बच्चे इन वाहनों पर कैसे कंट्रोल करेंगे। माहिलपुर और गढ़शंकर इलाके में 10-12 साल के बच्चे स्कूल और बाजारों में सरेआम स्कूटी और मोटरसाइकिल चलाते नजर आते हैं। इस ओर न तो परिजन और न ट्रैफिक पुलिस और स्कूल प्रबंधन ध्यान देकर उचित कदम उठाने का प्रयास करते हैं। यहां बिना लाइसेंस दोपहिया वाहनों को चलाने वाले बच्चों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। वहीं कुछ परिजन तो अपने इन छोटे बच्चों के वाहन के पीछे बैठकर बाजार में घूमते आम नजर आते हैं। आमतौर पर पुलिस के मुलाजिम स्कूलों और बाजार के आसपास खड़े होते हैं पर वह इन बच्चों को वाहन चलाते देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं। नाबालिग बच्चों द्वारा वाहनों को चलाने से रोकने के लिए जिला प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस के पास कोई नीति नहीं है जिसके चलते ये सिलसिला बिना रोक-टोक चल रहा है। आमतौर पर अधिकतर अविभावक अपना समय बचाने के लिए अपने नाबालिग बच्चों को दोपहिया वाहन पकड़ा देते हैं ऐसा कर वह अपने बच्चों के साथ साथ लोगों की जान भी खतरे में डाल देते हैं वह यह नहीं समझते हर किसी के पास समय कम होने के कारण भाग दौड़ की ¨जदगी में ऐसे समझौते करना भारी पड़ सकता है। शहरों में अविभावक आमतौर पर स्कूल बैन के पैसे बचाने के लिए नाबालिग बच्चों को स्कूटी व मोटरसाइकिल जैसे वाहन खरीद कर दे देते हैं। वहीं स्कूल संचालकों के कहना है कि उनका काम स्कूल के अंदर की व्यवस्था देखना है बच्चे स्कूल कैसे आते हैं यह देखना उनके परिजनों का काम है। उनकी जिम्मेदारी स्कूल वैन में बैठकर स्कूल आने वाले बच्चों की है। यह बात भी सही है कि स्कूल प्रबंधन का कार्य स्कूल के अंदर की व्यवस्था चलाने का है जबकि अविभावक ही अपने बच्चों को लेकर सुरक्षित पंहुचाने के लिए गंभीर नहीं है तो स्कूल प्रबंधन को दोष देना ही गलत है।

परिजन भी बैठे होते हैं पीछे

नाबालिग वाहन चालकों को रोकना पुलिस के लिए यह मुश्किल हो रहा है क्योंकि इनके पीछे कई बार अविभावक बैठे होते हैं। पुलिस ऐसे किसी वाहन चालक को रोकती है तो वह चालक फोन पर किसी प्रभावशाली नेता से बात करा कर उन्हें अपनी ड्यूटी निभाने से रोक देते हैं। बच्चों को न दें वाहन: हुंदल

थाना माहिलपुर के प्रभारी इंस्पेक्टर बलजीत ¨सह हुंदल ने कहा कि बच्चों के परिजनों को चाहिए कि वह अपने बच्चों को वाहन न दें ताकि हर प्रकार के गंभीर हादसों से बचा जा सके। स्कूलों में बच्चों को किया जाता है जागरूक

थाना गढ़शकर के प्रभारी इंस्पेक्टर न¨रदर कुमार ने कहा कि पुलिस तो बच्चों को वाहन चलाने से रोकने के लिए स्कूलों में सेमिनार करवाती है जिसमें उनके परिजनों को बच्चों को वाहन देने से मनाही की जाती है फिर भी लोग पुलिस द्वारा दी सलाह को अनदेखा कर देते हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस संबंध में व्यवस्था की जाएगी।


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