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न सुन सकते हैं, न ही बोल हैं, पर डांस में हैं कमाल

ये सुन नहीं सकते हैं। बोल नहीं सकते पर डांस की दुनिया में इनका जलवा किसी से कम नहीं है। शारीरिक अक्षमता से जूझने के बावजूद इन हौसलामंद नौनिहालों का लक्ष्य सामाजिक विसंगितयों को तोड़ना है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 12:00 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 12:00 AM (IST)
न सुन सकते हैं, न ही बोल हैं, पर डांस में हैं कमाल
न सुन सकते हैं, न ही बोल हैं, पर डांस में हैं कमाल

रजनीश गुलियानी होशियारपुर

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ये सुन नहीं सकते हैं। बोल नहीं सकते पर डांस की दुनिया में इनका जलवा किसी से कम नहीं है। शारीरिक अक्षमता से जूझने के बावजूद इन हौसलामंद नौनिहालों का लक्ष्य सामाजिक विसंगितयों को तोड़ना है। यह बच्चे शिक्षा विभाग की तरफ से चलाए जा रहे विशेष स्कूलों में पढ़ते हैं। इन बच्चों को स्कूलों में लाने के लिए भी विशेष प्रयास करने पड़े क्योंकि इनमें से अधिकतर बच्चों के अभिभावक इनको स्कूलों में पढ़ाने का ख्याल तक छोड़ चुके थे। लेकिन जैसे तैसे इन बच्चों के अभिभावकों को मोटिवेट कर इन बच्चों को विशेष रिसोर्स रुम तक( स्पेशल स्कूल) तक लाया गया। अब यह बच्चे विशेष विधि से पढ़ने लगे थे। एक बार आईईआरटी समीक्षा सैनी ने एक टीवी प्रोग्राम में डिसेबल्ड बच्चों को डांस करते देखा,तो उसने अपने सीनियर सुख¨वदर ¨सह के साथ इन बच्चों के लिए कुछ विशेष करने की बात की। दोनों ने इन बच्चों के लिए कई प्रकार के इवेंट्स तैयार किए। लेकिन बाद में इन बच्चों से डांस करवाने की बात पर सहमति बनी। परफॉर्मेंस देख रो पड़े अभिभावक

3 महीने बगैर किसी कोरियोग्राफर की मदद और कड़े परिश्रम के बाद इन बच्चों ने पहली बार जिला स्तर पर करवाए गए एक प्रोग्राम में परफॉर्मेंस दी। जिसकी लोगों ने खूब तारीफ की और इन बच्चों परफॉर्मेंस देख अभिभावकों और लोगों की आंखों में आंसू आ गए। इसी परफॉर्मेंस को देख कर एम एल गुप्ता और सल्फाज ¨सह सफी ने इन बच्चों को डांस सिखाने के लिए कोरियोग्राफर का खर्चा वहन करने का ऐलान किया।

ठोस इरादों के बल पर मूक-बधिर बच्चों ने उड़ीसा में हुए इंटरनेशनल डांस चैंपियनशिप में जगह बनाने के लिए सफल रहे हैं। डांस सिर्फ लय-ताल और भाव-भंगिमा का संगम ही नहीं, यह रुढ़ीवादी सोच को बदलने का माध्यम भी बन सकती है। इसे इन मूक-बधिर बच्चों ने सच कर दिखाया है। बेटियों को बोझ समझने की भूल करने वाले समाज को सबक सिखाते डांस और ए¨क्टग की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए इन बच्चों ने अब इंटरनेशनल स्तर पर उड़ीसा में हुए कार्यक्रम में अपनी प्रतिभा का डंका बजाया है। इस चैंपियनशिप में जिले के 6 मूक-बधिर बच्चे प्रस्तुति देकर लौटे हैं। इससे पहले राज्य स्तर पर इन बच्चों ने परचम लहराया था। बिन सुने म्यूजिक पर इन बच्चों का भाव करता है अचंभित: नेशनल डांस चैंपियनशिप का आयोजन हर साल राष्ट्रीय मूक-बधिर संघ की ओर से होता है। इसमें देश भर से राज्यस्तर पर चुने गए बच्चे शामिल हो रहे हैं। इंटरनेशनल स्तर पर उड़ीसा में हुई डांस प्रतियोगिता में पूनम, पलक, लवप्रीत, हरप्रीत, मंजीत, प्रीति पार्टिसिपेंट कर चुके हैं।इस चैंपियनशिप में अपनी कला का डंका बजाने के बाद अब इन बच्चों के हौसले बुलंदियों पर है। यह बच्चे म्यूजिक सुन नहीं सकते पर हर बीट पर इनका भाव अचंभित कर देता है।

इन मूक-बधिर बच्चों को इस प्रतियोगिता के लिए तैयारी करवाने वाली मैडम आशा और नीलम बधन कहती हैं कि राज्य स्तर पर खिताब जीतने वाले बच्चे नेशनल भी जीतने की काबिलियत रखते हैं। सरस्वती वंदना पर इनका ग्रुप डांस है। शारीरिक अक्षमता के बावजूद ये बच्चे किसी भी सामान्य बच्चों के साथ करवाई प्रतियोगिता प्रतियोगिता में दमखम दिखाने को सक्षम हैं। गरबा के गीत, डांडिया की खनक कानों में न पड़े तो इसे खेलने की कल्पना कर पाना जरा मुश्किल है, लेकिन यह बच्चे ऐसे हैं जो सुन तो नहीं सकते, लेकिन फिर भी रास के गीत बजते ही थिरकने लगते हैं। यह बच्चे बस इशारों के सहारे ही यह सब कर दिखाते हैं।

समाज के जरुरतमंद और प्राकृतिक व शारीरिक रुप से असक्षम बच्चों को शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों की सराहना करते हुए विधायक डॉक्टर राजकुमार ने कहा कि शिक्षा विभाग के कर्मचारियों द्वारा किया गया यह एक सराहनीय प्रयास है और प्रदेश व देश में अन्य लोगों को भी ऐसे प्रयासों का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां सक्षम व्यक्ति भी इशारों से काम करने में असहज महसूस करता है। वहीं ये बच्चे केवल इशारों के आधार पर ही बेहतर शिक्षा, खेल, सांस्कृतिक कला और विभिन्न प्रकार के हुनर सीखकर प्राकृतिक चुनौती का ²ढ़तापूर्वक मुकाबला कर रहे हैं।


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