Hoshiarpur: सुरक्षा में छेद से मौतें, इंश्योरेंस न होने पर क्लेम लेना टेढ़ी खीर
Hoshiarpur सड़कों पर असुरक्षा के आलम में जिंदगी की डोर टूटती रहती है। आए दिन खून से रंगने वाली सड़कें न जाने कितने घरों की खुशियों पर ग्रहण लगा रही है। हादसे होने पर पुलिस घटना स्थल पर पहुंचती है। मामला दर्ज करके अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लेती है।
होशियारपुर, जागरण टीम: सड़कों पर असुरक्षा के आलम में जिंदगी की डोर टूटती रहती है। आए दिन खून से रंगने वाली सड़कें न जाने कितने घरों की खुशियों पर ग्रहण लगा रही है। बावजूद इसके होने वाले हादसों को रोकने के लिए वैज्ञानिक स्तर कोई नहीं है। हादसे होने पर पुलिस घटना स्थल पर पहुंचती है। बयान दर्ज करती है। फिर, मामला दर्ज करके अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लेती है।
हादसे के दौरान यह जानने की कतई कोशिश नहीं की जाती है कि हादसे के पीछे कारण क्या है। दोबारा ऐसा हादसा न हो, इसके लिए क्या बंदोबस्त करने की जरूरत है। ऐसे किसी भी पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता है। बस, पुलिस मौके पर पहुंचती है। शव को कब्जे लेकर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल पहुंचाती है और वाहन को कब्जे में थाने में। और तो और सड़कों पर हादसे को कम करने के लिए ट्रैफिक पुलिस को ट्रेंड नहीं किया जा रहा है।
1600 के करीब केस अदालतों में पेंडिंग
जिले की बात करें तो औसतन एक माह में दस के करीब मौतें हादसे में हो जाती हैं। पचास से ज्यादा जख्मी हो जाते हैं। पांच साल के आंकड़ा पर गौर करने पर मालूम पड़ता है कि सड़क हादसे में होने वाली मौतों का क्लेम लेने के लिए 16 सौ के करीब केस अदालतों में पेंडिंग में हैं। पीड़ित परिवार इंसाफ के लिए चक्कर पर चक्कर लगाते रहते हैं।
क्लेम मिलने में लग गए थे दो साल
बहादुरपुर के रहने वाले दिव्यांग दीपक सैनी का करीबन पांच साल पहले माल रोड पर कार की टक्कर से मौत हो गई थी। कार वाली पार्टी गुरदासपुर की थी। पारिवारिक सदस्यों के मुताबिक कोर्ट में दो साल तक केस चला था। लग रहा था कि इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, लेकिन इसी बीच कार वाली पार्टी से राजीनामा हो गया था। फिर, दो साल का वक्त लग गया था।
एडवोकेट गोरेश सैनी के मुताबिक सड़क हादसे में होने वाली मौतों में दो तरह के केस करने पड़ते हैं। एक केस इंश्योरेंस का करना पड़ता है। एक केस क्रिमनल का होता है। दोनों केस अलग-अलग चलते हैं। दोनों की प्रक्रिया भी अलग होती है। एक केस को अंजाम तक पहुंचाने में चार से पांच साल का समय लग जाता है।
वाहनों का इंश्योरेंस हो जरूरी: एडवोकेट सैनी
प्रसिद्ध एडवोकेट एचएस सैनी के मुताबिक पीड़ित परिवार को उस समय बहुत ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जब आरोपित के वाहन का इंश्योरेंस न हो। वाहन मालिक भी आर्थिक तौर पर संपन्न न हो और उसका ड्राइवर भी। ऐसी सूरत में पीड़ित परिवार को क्लेम नहीं मिल पाता है। चूंकि वाहन का इंश्योरेंस नहीं होता है और मालिक अथवा ड्राइवर भी संपन्न नहीं होते हैं।
ऐसे में पीड़ित परिवार को क्लेम नहीं मिल पाता है। प्रशासन को चाहिए ऐसी व्यवस्था बनें कि हरेक वाहन का इंश्योरेंस हो ताकि क्लेम लेने में कोई भी दिक्कत न आए। उनके पास इस तरह के बहुत सारे केस आते रहते हैं, जिनमें इंश्योरेंस नहीं होते हैं। ऐसे में पीड़ित परिवार बहुत परेशान होते हैं।