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कंडी इलाके में किसानों के आफत बने बेसहारा पशु

कभी सूखा तो कभी अत्यधिक वर्षा की दोहरी मार झेलने वाले जिले के माहिलपुर व गढ़शंकर ब्लॉक के पहाड़ी इलाकों में किसानों की फसलों पर तिहरी मार भी पड़ रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 08:47 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jan 2019 08:47 PM (IST)
कंडी इलाके में किसानों के आफत बने बेसहारा पशु
कंडी इलाके में किसानों के आफत बने बेसहारा पशु

संवाद सहयोगी, माहिलपुर/गढ़शंकर : कभी सूखा तो कभी अत्यधिक वर्षा की दोहरी मार झेलने वाले जिले के माहिलपुर व गढ़शंकर ब्लॉक के पहाड़ी इलाकों में किसानों की फसलों पर तिहरी मार भी पड़ रही है। इसका मुख्य कारण बेसहारा पशु हैं। पशु किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। पशुओं के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान भी उठना पड़ रहा है। जंगली जानवर भी किसानों के लिए आफत बन गए हैं। जो कि रात के समय किसानों की फसल को बर्बाद कर जाते हैं।

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इस क्षेत्र के किसान वर्ग के लिए आजीविका का एक मात्र साधन कृषि है। यह वर्ग आर्थिक रूप से कंगाल होकर बदहाली के आलम में दिन काटने को विवश हो रहा है। आलम यह है कि विषम परिस्थितियों में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद किसानों को अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी दूभर हो गया है।

गौरतलब है कि पहले ही पहाड़ी इलाकों में सूबे के मैदानी भागों की तुलना में कम खेती होती है। क्योंकि यहां ¨सचाई के लिए एक मात्र साधन वर्षा ही है। वहीं वर्षा भी समय पर नहीं होती है व कम हो तो कृषि के लिए पर्याप्त नहीं होती। वहीं कई बार फसलों की बुआई होने के बाद अधिक वर्षा होती है। तब भी किसानों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है। वहीं जंगली जानवरों व बेसहारा पशुओं के रूप में पड़ रही मार से किसान वर्ग अब कंगाल होने की कगार पर पहुंच चुका है। जो झुंडों के रूप में आते है और फसल को बर्बाद कर निकल जाते हैं। किसानों का कहना है कि पशु खेतों में खड़ी 20 प्रतिशत फसल हुड़दंग मचाकर तबाह कर देते हैं। वहीं 25 प्रतिशत अन्य जंगली जानवरों की भेंट चढ़ जाती है तथा महीनों की मेहनत के बाद किसानों के हिस्से आती है, सिर्फ 55 प्रतिशत फसल की पैदावार है। जोकि लागत मूल्य भी पूरा नहीं कर पाती है। बढ़ती लागत व कम होती आय के बीच इस क्षेत्र के किसानों के लिए सामंजस्य स्थापित करना चुनौती बनकर रह गया है। कृषि है आजीविका का साधन

इलाके के अधिकांश परिवारों के लिए खेती ही आजीविका का साधन है। ऐसे में क्षेत्र की जनता करे तो क्या करे। किसानों का मानना है कि जंगली जानवरों द्वारा जो तबाह करने के बाद आधी फसल ही बचती है उसे पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है। क्योंकि हमला करने वाले जानवरों को खेतों से भगाने के लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। कई बार मवेशी किसानों पर कर देते हैं हमला

किसानों के लिए यह समस्या की बात है कि कई बार फसल को बचाने के चक्कर में मवेशी किसानों पर जानलेवा हमला भी कर देते हैं। वहीं कई बार जंगली जानवर महिलाओं व बच्चों पर भी हमला बोल देते हैं। इससे स्थिति भयावह बन जाती है तथा किसान वर्ग की परेशानियां बढ़ जाती हैं।


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