सरकारी दावों का दर्द भी बेजुबान
सरकार के दावों के उलट जिला का वेटनरी अस्पताल की खस्ताहाल इमारत बद से बदतर हालतों में है। एक तरफ तो सरकार के नुमाइंदे सरकार की उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते दूसरी ओर इस अस्पताल की खस्ता हालत सरकार की पोल खोल रही है। सबसे बड़ी समस्या जिला का मुख्य पशु अस्पताल होने के बावजूद भी स्टाफ का भारी अभाव है।
नीरज शर्मा, होशियारपुर : सरकार के दावों के उलट जिला का वेटनरी अस्पताल की खस्ताहाल इमारत बद से बदतर हालतों में है। एक तरफ तो सरकार के नुमाइंदे सरकार की उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते, दूसरी ओर इस अस्पताल की खस्ता हालत सरकार की पोल खोल रही है। सबसे बड़ी समस्या जिला का मुख्य पशु अस्पताल होने के बावजूद भी स्टाफ का भारी अभाव है। दो साल से पशुओं के लिए गायनी स्पेशलिस्ट नहीं है। इसके अलावा एक्स रे मशीन तो है पर टेक्निशियन नहीं और यदि किसी पशु का एक्स रे करना पड़े तो पशु पालकों को या तो दूसरे जिलों में जाना पड़ता है नहीं तो फिर पशु भगवान भरोसे छोड़ने पड़ते हैं। इसके अलावा अस्पताल में फार्मासिस्ट का पद भी खाली है। बता दें कि 1987 में जिला होशियारपुर के रेलवे मंडी में इस अस्पताल का निर्माण करवाया था और तब अस्पताल में स्टाफ भी पूरा था, परंतु उसके बाद अस्पताल की इमारत भी खस्ता होती गई और रिटायर होकर स्टाफ भी जाता गया। इस दौरान गायनी स्पेशलिस्ट का पद भी रिक्त हो गया जो दो साल से खाली है और इसे भरने की कभी विभाग ने कोशिश ही नहीं की। हालांकि मौजूदा डॉक्टरों की मानें तो इस पद के लिए कई बार रिमाइंडर भी डाला गया। अब सर्जन ही इस ड्यूटी को निभा रहे हैं।
अस्पताल की रीढ़ होता है गायनी विभाग
अस्पताल में ज्यादातर केस पशुओं की डिलीवरी से संबंधित आते हैं और गायनी विभाग पशु अस्पताल की रीढ़ माना जाता है, परंतु हालात यह हैं कि अस्पताल में पिछले लंबे समय से यह पद रिक्त होने से पशु पालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि एक तरफ तो सरकार किसानों को डेयरी के धंधे में आने की अपील कर रही है और दूसरी तरफ डॉक्टरों की कमी किसानों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।
टेक्निशियन नहीं, कैसे करवाएं एक्स रे
सरकार व पशु पालन विभाग के निर्देशों के चलते भारी संख्या में किसानों ने डेयरी पालन को सहायक धंधे के तौर पर अपनाया है और अकसर पशु चोटों का शिकार होते हैं। सबसे गंभीर समस्या यह है कि गंभीर चोट के बाद कोई अपने पशु को अस्पताल में ले भी आए तो टेक्निशयन ना होने के कारण पशुओं पर देसी टोटके अपनाए जाते हैं जो बेजुबानों पर काफी भारी साबित होते हैं।
फार्मासिस्ट की पोस्ट भी खाली
इसके अलावा फार्मासिस्ट की पोस्ट भी कई साल से खाली है। वैसे तो डॉक्टर का काम केवल मेडिसन लिखना होता है पर आगे दवाई को किस हिसाब से देना है उसमें फार्मासिस्ट का बड़ा रोल होता है। अस्पताल में फार्मसिस्ट ना होने से पशु पालकों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है।